मां के नाम हाथ पर सुसाइड नोट लिख दी जान....

मां के नाम हाथ पर सुसाइड नोट लिख दी जान….

Mother's name on hand ..... poverty or system, whom was Ganesha lost?

ganesh sahu

  • मां के नाम हाथ पर सुसाइड नोट लिखकर किशोर ने दी जान

  • पूरी ईमानदारी से मेहनत करने के बाद भी मां का खयाल नहीं रख पाने पर जताया मलाल

नवप्रदेश संवाददाता

रायपुर। मां अपना ख्याल रखना…maa apana khyaal rakhana मैं ऐसी जिंदगी नहीं जी सकता, मैं पढऩा चाहता था, लेकिन मुझे अभी..। यह उस जवान बेटे की गुरबत भरी जिंदगी बयां करने वाली लाइन है। जो राजधानी में रहने के बाद भी बेतरतीब सिस्टम की वजह से सरकारी योजना के लाभ से महरूम रह गया।

गरीबी और खपरैल व कच्चे झोपड़े में अपनी विक्षिप्त मां की देखभाल और पढ़ाई के साथ ही 9-9 घंटे की हाड़ तोड़ मशक्कत करने वाला बेटा आखिरकार हार गया। उसकी हि मत आज टूट गई। गरीबी के सामने घुटने टेक चुके गणेश ganesh  जैसे एक मजबूर बेटे ने खुद के हाथों अपनी जान ले ली। यह दर्दनाक वाक्या राजधानी रायपुर के धरसींवा विधानसभा का है।

ganesh
मिली जानकारी के मुताबिक कक्षा 11वीं में पढ़ाई कर रहा गणेश साहू gnaesh sahu ने अपने झोपड़े में ही मां की साड़ी से फांसी का फंदा तैयार कर जान दे दी। जानलेवा कदम उठाने से पहले अपनी कॉपी का कोरा पन्ना तक उसने बर्बाद करना उचित नहीं समझा। यह उसकी गरीबी को बयां करता है।

बाप ने पहले ही साथ छोड़ दिया था और धरसींवा निवासी गणेश ganesh की मां विक्षिप्त है। इकलौती बहन का विवाह हो चुका है। पूरे घर की जि मेदारी, मां का ईलाज और अपनी पढ़ाई के साथ ही घर का चुल्हा-चौका तक गणेश की जि मेदारी था। इसलिए पढ़ाई के साथ ही साथ वह भवानी पाइप फैक्ट्री में मजदूरी भी करता था।

रोजाना 9 घंटे ड्यूटी करता,इसके ऐवज में उसे 200 रुपए रोजाना मिलता था। बताते हैं कि कभी-कभी दो घंटे ओवर टाइम ड्यूटी कर 50 रूपए अधिक कमा लेता था। मजदूरी कर कुछ पैसे तो कमा लेता था, लेकिन घर का गुजर बसर नहीं हो रहा था। वो पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन अच्छे से पढ़ भी नहीं पा रहा था।

आखिरकार बदहाली व गरीबी से तंग गणेश मौत को गले लगा लिया। शुक्रवार सुबह गणेश घर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस मामले की जांच कर रही है और हाथ में मां के नाम से लिखा संदेश का मतलब भी निकाल रही है।

सब कुछ बयां कर रहा थी कच्ची जर्जर झोपड़ी

सरकार द्वारा पीएम आवास योजना चलाई जा रही है, लेकिन मरते दम तक मृतक गणेश ganesh का घर पक्का नहीं बन सका। बारिश में छतें टपक रही हैं, जर्जर दरोदीवारें उसके हालात खुद बयां कर रहे थे। घर की रसोई में महज चांवल के अलावा कुछ नहीं था। सरकारी योजना से कोसों दूर गणेश के परिवार को अगर इसका लाभ मिलता या पहुंचता तो शायद आज घर का इकलौता चिराग नहीं बुझता।

अपने कमाऊ बेटे और घर के चिराग गणेश ganesh के जाने का समझते ही विक्षिप्त मां की सिसकारियां वहां मौजदू सभी को यह सोचने मजबूर कर रही थी कि काश सरकारी योजना का अगर ऐसा सिस्टम होता कि गणेश को एक दिन की पूरी रोजी छोड़े बिना उसे घर पहुंच लाभ देती तो यह नहीं होता।

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