BREAKING : किसान कानून के खिलाफ कृषक संगठनों का कल छग बंद का ऐलान, वामदलों का समर्थन… ऐसे गिनाईं खामियां
रायपुर/नवप्रदेश। मोदी सरकार द्वारा बनाये गए कॉर्पोरेटपरस्त तीन किसान कानूनों (kisan kanoon 2020) के खिलाफ छत्तीसगढ़ के बीस से ज्यादा किसान संगठनों ने 25 सितम्बर को ‘छत्तीसगढ़ बंद’ (chhattisgarh band on 25th September) का आह्वान किया है और जनता के सभी तबकों, राजनैतिक दलों और संगठनों से खेती-किसानी, खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और देश की संप्रभुता को बचाने के लिए इस आह्वान का पुरजोर समर्थन करने की अपील की है।
उल्लेखनीय है कि 300 से ज्यादा किसान संगठनों से मिलकर बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (all india kisan sangharsh coordination committee) ने किसान कानूनों (kisan kanoon 2020) को कृषि विरोधी बताते हुए इन्हें पारित पारित किए जाने के खिलाफ 25 सितंबर को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है।
किसान संघर्ष समन्वय समिति के अनुसार इन कानूनों से भारतीय किसान देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के गुलाम बनकर रह जाएंगे। उनका माल सस्ते में लूटा जाएगा और महंगा-से-महंगा बेचा जाएगा। कुल नतीजा यह होगा कि किसान बर्बाद हो जाएंगे और उनके हाथों से जमीन निकल जायेगी। आम जनता भी अभूतपूर्व महंगाई की मार का शिकार होगी।
सरकार को संसदीय जनतंत्र को कुचलने में नहीं आई शर्म : पराते
छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि जिस तरीके से राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत को कुचलते हुए इस कानून (kisan kanoon 2020) को पारित किया गया है, उससे स्पष्ट है कि अपने कॉर्पोरेट मालिकों की चाकरी करते हुए इस सरकार को संसदीय जनतंत्र को कुचलने में भी शर्म नहीं आ रही है। ये कानून कॉरपोरेटों के मुनाफों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की वर्तमान व्यवस्था को ध्वस्त करते है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अनाज को बाहर करने से जमाखोरी, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी और महंगाई बढ़ेगी।
छग में लामबंद हुए 20 से ज्यादा संगठन
दोनों ने कहा कि वास्तव में इन कानूनों के जरिये सरकार कृषि के क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती है। किसान सभा नेता ने बताया कि किसानों के व्यापक हित में प्रदेश के किसानों और आदिवासियों के 20 से ज्यादा संगठन फिर एकजुट हुए हैं और 25 सितम्बर को ‘छत्तीसगढ़ बंद’ (chhattisgarh band on 25th September) के आह्वान के साथ ही पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का फैसला लिया गया है।
अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएंगे किसान : संगठन
एक संयुक्त बयान में इन किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि उत्पादन के क्षेत्र में ठेका कृषि लाने से किसान अपनी ही जमीन पर गुलाम हो जाएगा और देश की आवश्यकता के अनुसार और अपनी मर्जी से फसल लगाने के अधिकार से वंचित हो जाएगा। इसी प्रकार कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से वह समर्थन मूल्य से वंचित हो जाएगा।
जोखिम किसान का फायदा कॉर्पोरेट का
इस बात का भी इन कानूनों में प्रावधान किया गया है कि कॉर्पोरेट कंपनियां जिस मूल्य को देने का किसान को वादा कर रही है, बाजार में भाव गिरने पर वह उस मूल्य को देने या किसान की फसल खरीदने को बाध्य नहीं होगी। यानी जोखिम किसान का और मुनाफा कार्पोरेटों का! कुल मिलाकर ये तीनों कानून किसान विरोधी है। इससे किसान आत्महत्याओं में और ज्यादा वृद्धि होगी।
साझा मोर्चा के इन सदस्यों ने दी है जानकारी
छत्तीसगढ़ में किसान संगठनों के साझा मोर्चे की ओर से विजय भाई, संजय पराते, ऋषि गुप्ता, बालसिंह, आलोक शुक्ल, सुदेश टीकम, राजिम केतवास, तेजराम विद्रोही, मनीष कुंजाम, रामा सोढ़ी, पारसनाथ साहू, अनिल शर्मा, केशव शोरी, नरोत्तम शर्मा, रमाकांत बंजारे, आत्माराम साहू, नंदकिशोर बिस्वाल, मोहन पटेल, संतोष यादव, सुखरंजन नंदी, राकेश चौहान, विशाल वाकरे, कृष्णा कुमार लकड़ा, बिफन यादव, वनमाली प्रधान, लंबोदर साव, सुरेन्द्रलाल सिंह, पवित्र घोष, मेवालाल जोगी, मदन पटेल ने विज्ञप्ति जारी कर उक्त जानकारी दी है।
‘भारत बंद – छत्तीसगढ़ बंद’ को वामपंथी दलों का समर्थन
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और छत्तीसगढ़ के किसान संगठनों द्वारा किसान कानूनों के खिलाफ आहूत ‘भारत बंद -छत्तीसगढ़ बंद’ का प्रदेश की पांच वामपंथी पार्टियों – मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भाकपा, भाकपा (माले)-लिबरेशन, भाकपा (माले)-रेड स्टार और एसयूसीआई (सी) ने समर्थन किया है। गुरुवार को यहां जारी एक बयान में संजय पराते, आरडीसीपी राव, सौरा यादव, बृजेन्द्र तिवारी और विश्वजीत हारोड़े ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार की छह साल की किसान विरोधी नीतियों के चलते कृषि और किसानों का संकट और विकराल हुआ है।
कोरोना काल में जब किसान और गहरे आर्थिक संकट में फंस गए हैं, तब नरेंद्र मोदी सरकार ने इन किसान विरोधी बिलों को लाकर और राज्य सभा में बिना मतविभाजन के अलोकतांत्रिक तरीके से पारित करवा कर यह साबित कर दिया है कि कारपोरेट कंपनियों के मुनाफों की खातिर हमारे कृषि क्षेत्र से किसानों को बेदखल कर यह सरकार खेती और खेत भी कारपोरेट को सौंप देना चाहती है। सरकार के इस आचरण से साबित हो गया है कि यह सरकार किसानों की नहीं, कोरपोरेट घरानों की सरकार है।