Illegal Encroachment : देश में अवैध अतिक्रमण की बढ़ती बीमारी

Illegal Encroachment : देश में अवैध अतिक्रमण की बढ़ती बीमारी

Illegal Encroachment: Increasing disease of illegal encroachment in the country

Illegal Encroachment

डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। Illegal Encroachment : देश की राजधानी दिल्ली सहित देशभर के हर छोटे-बड़े शहर में अवैद्य अतिक्रमण का रोग तेजी से फैल रहा है। दिल्ली में तो हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं। विडंबना यह है कि जब अवैद्य अतिक्रमण को हटाने के लिये स्थानीय प्रशासन द्वारा कार्यवाही की जाती है, तो इस पर राजनीति शुरू हो जाती है। ताजा घटनाक्रम दिल्ली का है। जहां अवैद्य अतिक्रमण को हटाने के लिये प्रशासन ने बुलडोजर चलाया तो बात शीर्ष अदालत तक पहुंच गई। अदालत ने यथास्थिति बरकरार रखने का हुक्म सुनाया है। लेकिन अहम सवाल यह है कि देशभर में अवैद्य अतिक्रमण क्यों बढ़ता जा रहा है? वो कौन लोग हैं जो अवैद्य अतिक्रमण करने वालों को संरक्षण देते हैं?

क्या कारण है कि अवैद्य अतिक्रमण पर कार्यवाही करते ही अदालत एकदम सक्रिय हो जाती है? सवाल यह भी है कि क्या अवैद्य अतिक्रमण का कोई स्थायी उपाय हमारे पास क्यों नहीं है? सवाल बहुत सारे हैं, लेकिन उनका जवाब किसी के पास नहीं हैं। और जिन सवालों का जवाब है भी उस पर जिम्मेदार लोग मुंह बंद रखना ही बेहतर मानते हैं। मजबूरी के साथ ही साथ अवैद्य अतिक्रमण का मुद्दा राजनीति से भी प्रेरित है।

बात अगर देश की राजधानी दिल्ली की कि जाए तो शायद ही कोई ऐसा इलाका या बस्ती हो, जहां अतिक्रमण नहीं हुआ हो। एक दर्जन से ज्यादा इलाकों में तो जबरदस्त अवैध कब्जा है। इसकी वजह से यहां आना जाना मुश्किल है। ये वही अतिक्रमण हैं, जिसकी वजह से दिल्ली के कई इलाकों में भीषण जाम लगती है। अगर ऐसे इलाकों में कोई हादसा हो जाए, तो जान बचाना मुश्किल हो जाएगा। यहां एंबुलेंस नहीं जा सकतीं। फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां नहीं जा सकतीं। किसी रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देना मुश्किल है। ऐसा कई मामलों में देखा भी गया है।

देश के लिए अतिक्रमण कितनी बड़ी परेशानी का कारण है,ये कितना बड़ा रोग बन चुका है, इसका अंदाजा आप देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट की दो सख्त टिप्पणियों से लगा सकते हैं। जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। ये न्यायपालिका का काम नहीं है। राज्य सरकारें तत्काल प्रभाव से अतिक्रमण हटाएं। इस आदेश का कितना पालन हुआ, ये बताने और जताने की जरूरत नहीं है। इसी तरह दिसंबर 2021 में उच्चतम न्यायालय को यहां तक कहना पड़ा कि अवैध कब्जों की वजह से देश के बड़े शहर स्लम यानि झुग्गी-झोपडिय़ों में तब्दील हो गए हैं।

देश का शायद ही कोई राज्य होगा, जहां अवैध निर्माण नहीं होंगे। यह तो खुद भारत सरकार की एजेंसियों का पुराना खुलासा है कि 60 फीसदी से अधिक राजधानी में अवैध अतिक्रमण (Illegal Encroachment) हैं। यह आंकड़ा अब बढ़ गया होगा, क्योंकि अवैध निर्माण औसत दिल्लीवाले की फितरत है। यहां तो जंगलों, रक्षा मंत्रालय, कृषि-भूमि और आम फुटपाथ पर कब्जे करके बहुमंजिला इमारतें बना ली गई हैं। ओखला में यमुना रिवर बेड पर ही चार मंजिला इमारतें बना ली गई हैं। कल कुछ त्रासदी होगी, तो सरकार जिम्मेदार होगी और मुआवजा देगी। दिल्ली में घर हो या दुकान अथवा फैक्टरी हो, बिना अवैध निर्माण गुजारा संभव ही नहीं है।

राजधानी दिल्ली का विश्वविख्यात सौंदर्य है-लुटियंस जोन। इस क्षेत्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद भवन के अलावा कैबिनेट मंत्री, न्यायाधीश, सांसद, वरिष्ठ नौकरशाह और कुछ सैन्य अधिकारी विशालकाय बंगलों में रहते हैं। फिलहाल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अधिकृत आवासों की बात नहीं करते, लेकिन दूसरे आवासीय बंगलों में एक भी ऐसा नहीं होगा, जहां अवैध ढांचा न बनाया गया हो। भारत सरकार ने लोकसभा में जो आंकड़े पेश किये थे, उनके मुताबिक देश में 32 लाख 77 हजार 591 एकड़ फॉरेस्ट लैंड पर अतिक्रमण हो चुका है।

डिफंस की 9 हजार 375 एकड़ जमीनों पर अवैध कब्जा है। रेलवे की 2012 एकड़ जमीनों पर अतिक्रमण स्थापित हो चुका है। दिल्ली के 964 सरकारी पार्क की करीब 70 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा हो गया है। लेकिन नगर निगम अब तक इससे अतिक्रमण हटाने में नाकाम रहा है। तो जाहिर है अतिक्रमण एक बड़ी समस्या है। लेकिन अफसोस ये है कि इससे अब तक ना तो निजात मिली है, ना ही भविष्य में मिलती दिख रही है। क्योंकि ये ऐसा रोग बन चुका है, जो लाइलाज दिख रहा है।

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में अतिक्रमण की समस्या बीते एक दशक में ज्यादा भयावह हुई है। इसी का नतीजा है कि तुराबनगर, घंटाघर, गोल मार्केट, चैपला मार्केट, अग्रसेन बाजार, दिल्ली गेट, डासना गेट के बाजार में गलियों की चैड़ाई 6-7 मीटर रह गई है। आग लग जाए तो इन गलियों में दमकल की गाडिय़ां घुस भी नहीं सकतीं। बजरिया, मालीवाड़ा, गांधीनगर, रमते राम रोड की चैड़ाई इनसे थोड़ा ज्यादा है, लेकिन इनके रास्ते भी दमकल के लिए पर्याप्त नहीं। इन बाजारों के साथ-साथ आवासीय मोहल्ले भी हैं, जिनकी गलियां भी अतिक्रमण से अटी पड़ी हैं। यही हाल कल्लूपुरा का है।

दरअसल जीडीए से इन इलाकों का कोई नक्शा नहीं पास था, लोगों ने खुलकर अवैध निर्माण किया। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ भी अवैद्य अतिक्रमण की जद में है। पूर्वोत्तर के राज्य असम में प्रदेश सरकार ने बीते साल जून के महीने में 77 हजार बीघा जमीन को अतिक्रमण-मुक्त कर उनके समुचित इस्तेमाल के लिए एक समिति का गठन किया था। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने 2019 में विधानसभा में कहा था कि राज्य में करीब 400,000 जंगल की जमीन अवैध कब्जे में है। जब अवैद्य अतिक्रमण शुरू होता है तो कोई इस ओर ध्यान नहीं देता। लापरवाह और भ्रष्ट प्रशासन आंखें मूंदे रहता है। अगर ध्यान दिया भी जाता है तो रुपए पैसे लेकर ऐसे लोगों को वहीं बसे रहने दिया जाता है।

नतीजतन धीरे-धीरे ऐसे लोगों का परिवार, इनकी आबादी बढ़ती जाती है। ये उस संख्याबल को प्राप्त कर लेते हैं, जिन्हें आप वोट वोट बैंक कह सकते हैं और यहीं से सियासी खेल शुरू होता है। नेता वोट के लालच में फंस जाते हैं। वो अतिक्रमण हटाने के बजाय इसे बढ़ावा देने लगते हैं। ऐसी अवैध बस्तियों में बिजली, पानी, सीवर और सड़क का इंतजाम तक हो जाता है। चूंकि ये सिलसिला सालों चलता रहता है, इसलिए बाद में किसी बस्ती और वहां के निवासियों को हटाना असंभव हो जाता है।

अतिक्रमण (Illegal Encroachment) को लेकर जानकारों का कहना है कि सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाना जरूरी है। लेकिन साथ ही वहां रहने वाले हजारों लोगों को सड़कों पर रहने के लिए भी नहीं छोड़ा जा सकता। उनके पुनर्वास की कोई ठोस नीति बनाने के बाद ही इस अभियान को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को आपसी तालमेल से इस गंभीर समस्या के समाधान के लिये इस दिशा में कारगार कदम उठाने चाहिएं।

चिकित्सक एवं लेखक

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