Hijab Controversy : अब हिजाब पर विवाद
Hijab Controversy : हमारे देश में राजनीति करने के लिए व्यर्थ का बवाल खड़ा करने की होड़ लगी हुई है। अब कर्नाटक में हिजाब को लेकर विवाद खड़ा किया गया है। जो कर्नाटक की सीमा लांघ कर कई राज्यों में फैल गया है। हिजाब के समर्थन और विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन हो रहा है। इस विवाद में अब पाकिस्तान भी कूद गया है।
पाकिस्तान के एक मंत्री फवाद चौधरी ने बयान दिया है कि हिजाब पहनने से छात्राओं को नहीं रोका जाना चाहिए। नोबल पुरस्कार प्राप्त मलाला यूसूफजई ने भी इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया दी है और उन्होने कहा है कि हिजाब न पहनने देना भयावह है। भारत के राजनीतिक दलों के नेता तो पहले ही इस मामले को लेकर आग में घी डालने का काम कर रहे है। जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर पाबंदी (Hijab Controversy) लगाए जाने के आदेश को अल्पसंख्यक लड़कियों को शिक्षा से वंचित करने का षडयंत्र करार दे दिया है।
जम्मू कश्मीर के एक और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इसी तरह का बयान दिया है। असउद्दीन ओवैसी भी इस मामले को जोर शोर से उठा रहे है, उनका कहना है कि किसी को क्या पहनना है यह उसका संवैधानिक अधिकार है। इसी तरह की बातें कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों के नेता भी कर रहे है। कुल मिलाकर बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है और दो समुदायों के बीच दूरी बढ़ाने की कोशिश की जा रही है जबकि सीधी सी बात यह है कि किसी भी स्कूल या कालेज में पढऩे वाले विद्यार्थियों के लिए क्या पहनना है यह तय करना उन स्कूलों और कालेजों का काम है।
हर शिक्षण संस्थान का अपना ड्रेसकोड होता है। वहां पढऩे वालों को ड्रेसकोड का पालन करना पड़ता है। कोई भी कुछ भी पहनकर नहीं जा सकता। ऐसे में कर्नाटक में राज्य सरकार के फैसले को लेकर विवाद खड़ा करना शुद्ध राजनीति है। यह ठीक है कि हर राजनीतिक दल को विभिन्न मुद्दों को लेकर राजनीति करने का अधिकार है लेकिन मासूम छात्रों के कंधों पर बंदूक रख के निशाना साधना कतई उचित नही है। हिजाब (Hijab Controversy) को लेकर जो विवाद खड़ा किया गया है।
वह संयोग नहीं बल्कि एक प्रयोग नजर आता है। बहरहाल अब यह मामला कोर्ट में पहुंच गया है जिसका फैसला आने के बाद ही इस विवाद का पटाक्षेप होगा। राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि वे इस मामले में राजनीति न करें और वैमनस्यता न फैलाएं।