Hazardous Staff Vehicles In Industrial Groups : स्कूलों से रिजेक्टेड और खटारा यात्री बसें बनीं स्टाफ बसें

Hazardous Staff Vehicles In Industrial Groups : स्कूलों से रिजेक्टेड और खटारा यात्री बसें बनीं स्टाफ बसें

Hazardous Staff Vehicles In Industrial Groups :

Hazardous Staff Vehicles In Industrial Groups :

कंपनियों के पास आउट डेटेड बसें, आरटीओ की ओर से जांच बंद, हादसे कभी भी, परिवहन विभाग का दावा 24 जून तक का है परमिट, बाकी जगहों पर जांच सिफर

रायपुर/नवप्रदेश। Hazardous Staff Vehicles In Industrial Groups : बड़े औद्योगिक समूहों में चंद रुपयों के लिए स्टाफ की जान-माल का सौदा किया जा रहा हैं। निजी कंपनियां अपने स्टाफ के लिए जो बसें उपलब्ध करवा रही हैं वो खटारा बी हैं और कालातीत भी। परिवहन शुल्क से बचने और प्रबंधन के लालच का ही नतीजा है कि स्कूल और यात्री बसों की परमिट वाली रिजेक्टेड बसों में फैक्ट्री स्टाफ को धोया जा रहा है। सवाल उठने लगा है कि क्या जानलेवा हादसों प्रशासन और विभाग एक्शन लेगा उससे पहले नहीं ! केडिया डिस्टलरी की स्टाफ बस के गंभीर हादसे के बाद नवप्रदेश ने रायपुर स्थित निको कंपनी समेत अन्य बड़े उद्योग समूहों की स्टाफ बसों की वास्तविकता की पड़ताल किया तो सनसनीखेज खुलासा हुआ।

निको समेत कई बड़ी ऐसी कंपनियां है जिन्होंने स्कूल बसों और पैसेंजर वाहनों को हायर किये है। परिवहन नियमों की अनदेखी करते हुए रिजेक्डेड बसों में कर्मचारियों को लाया ले जाया जरा है। वहीँ जिम्मेदार विभाग और प्रशासन भी महज फिटनेस और परमिट जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है। निको जैसी बड़ी कंपनी के प्लांट में अटैच की गई गाडिय़ां परिवहन नियमों का पालन किए बगैर सड़क पर बेधड़क दौड़ रही है। कई गाडिय़ां आउट डेटेड हो चुकी है जबकि कई वाहन कंडम होने की कगार पर हैं।

जानकारी के मुताबिक स्टाफ को लाने ले जाने के लिए जिन बसों का उपयोग किया जा रहा है वो सारी बसे ना ही स्टाफ बस है और ना ही सुरक्षा की दृष्टि से सही है। ये कंपनी अपने स्टाफ को लाने ले जाने के लिए दस से पंद्रह साल पुरानी स्कूल बस और अन्य बसों का उपयोग कर रही है जिसकी किसी भी प्रकार से कोई भी जांच परिवहन विभाग या फिर पुलिस विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट के तहत स्टाफ बसों के चलाने के लिए और स्टाफ की सुरक्षा के लिए अलग अलग नियम कायदे है जिसे बिल्कुल दरकिनार कर दिया गया है। जिस तरह के हालात हैं कंडम व अनफिट गाडिय़ों के दौड़ लगाने से सडक़ों पर हादसे कभी भी हो सकते हैं।

तिमाही स्टाफ शुल्क बचाने लापरवाही

परिवहन विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कंपनी में चलने वाली बसों को शासन द्वारा स्टाफ परमिट जारी किया जाता है जो की प्राइवेट सर्विस व्हीकल के नाम से रजिस्टर्ड होता है। इसके लिए तिमाही टैक्स 450 से 600 रुपये तक प्रति सीट हर तिमाही पटाने का नियम है। लेकिन इस खर्च से बचने के लिए कंपनियां स्टाफ के लिए जानलेवा लापरवाही बरत रही है।

प्रतिष्ठित कंपनियों में बरत रहे लापरवाही

निको इंडस्ट्रीज और रिलायंस ट्रेवल्स समेत कई बड़ी प्रतिष्ठित कंपनियां है जो लापरवाही बरत रही है। टैक्स से बचने के लिए स्टाफ की जान जोखिम में डाला जा रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन कंपनियों में आज भी 15 पुरानी बसों का संचालन किया जा रहा है। परिवहन विभाग द्वारा लंबी आयु पूरी कर चुके वाहनों को कंडम घोषित किया जाता है।

वर्सन


कंपनियां जिन वाहनों को स्टाफ बस के रूप में इस्तेमाल कर रही है उनका परमिट लेना जरूरी है। अगर कंडम वाहनों का संचालन किया जा रहा है तो निश्चित ही कंपनियों से जानकारी लेकर आगे वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।

डी.रविशंकर, अतिरिक्त परिवहन आयुक्त

कंपनियों में संचालित बसों के लिए परमिट लेना जरूरी है। इसकी जांच की जिम्मेदारी परिवहन विभाग की है। पुलिस समय-समय पर अपने स्तर पर जांच करती है। नियमों की अनदेखी करने पर वैधानिक कार्रवाई की जाती है।

ओपी शर्मा, एएसपी यातायात विभाग

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