Global Threat : चीन और पाकिस्तान वैश्विक नकेल की जरूरत |

Global Threat : चीन और पाकिस्तान वैश्विक नकेल की जरूरत

Global Threat: China and Pakistan need global countermeasures

Global Threat

प्रेम शर्मा। Global Threat : चीन और पाकिस्तान केवल भारत देश के लिए नही बल्कि वैश्विक स्तर पर खतरा बन चुके है। एक तरफ जहॉ चीन की विस्तारवादी नीति ने उसे हिंसक बना दिया है वही पाकिस्तान की आतंक परस्त नीति के कारण वह दूसरों की दया पर निर्भर कंगाली के दौर से गुजर रहा है। एक गूरू की भूमिका निभा रहा है तो दूसरा चेलागिरी कर रहा है। ये दोनों ही देश वैश्विक स्तर पर बेपर्दा हो चुके है। चीन भारतीय सीमा पर लगातार विस्तार की नीति अपना रहा है। पहले डोकलाभ, गलवान और अब तंवाग के ताजा घटना क्रम मेंं भारतीय सेना से मूंह की खाने के बाद उसके चेले पाकिस्तान की तरफ से भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ की गई टिप्पणी इस बॉत का प्रमाण है कि चीन और पाकिस्तान एक सिक्के के दो पहलू है।

ऐसे में वैश्विक स्तर पर लगाम लगाने के लिए विश्व के (Global Threat) समस्त देशों को एक मच पर आकर चीन और पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ेगा। चीन और पाकिस्तान की हिमालय से ऊंची और अरब सागर से गहरी दोस्ती के उदाहरण तो आपने बहुत सुन रखे होंगे मगर चीन के दुनिया पर बढ़ते प्रभाव के बारे में जारी सूची चाइना इंडेक्स 2022 में पाकिस्तान दुनिया के उन देशों में सबसे ऊपर है। जहाँ चीन का प्रभाव सबसे अधिक है। समय-समय पर पाकिस्तान को फटकार लगाते रहने वाले भारत को इस पर विचार करना होगा कि विश्व समुदाय पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने में क्यों हिचक दिखाता है। पाकिस्तान तब तक सही राह पर नहीं आने वाला जब तक दुनिया के अन्य प्रमुख देश उस पर दबाव नहीं डालते।

अमेरिका के एक सरकारी दस्तावेज ने पाकिस्तान और चीन की धड़कनों को बढ़ाने का काम किया है। हालांकि, दोनों की वजह अलग है लेकिन परेशानी दोनों के लिए ही है। दरअसल, अमेरिका ने कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति 2022 रिपोर्ट को जारी किया था। इस अहम दस्तावेज में चीन को अमेरिका और विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया गया है। इस दस्घ्तावेज ने जहां अमेरिका-चीन के रिश्घ्तों की खाई को बढ़ाने का काम किया है वहीं उसकी चिंता भी बढ़ा दी है। इस दस्तावेज में पाकिस्तान का कहीं कोई नाम नहीं है। उसकी सबसे बड़ी समस्या और चिंता यही है। दरअसल, पिछले कुछ माह में जिस तरह से दोनों के बीच संबंधों में गरमाहट आई थी, उसको देखते हुए कहा जा रहा था कि दोनों के बीच हालात फिर सामान्य होने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं।

पाकिस्तान ने भी इन पर काफी बढ़चढ़कर बयान दिए थे। पाकिस्तान ने यहां तक कहा था कि वो अमेरिका का करीबी और अहम सहयोगी है। लेकिन, ताजा दस्तावेज ने इसकी पोल खोल दी है। पाकिस्तान को इस दस्घ्तावेज में कहीं कोई सहयोगी करार नहीं दिया गया है। पाकिस्तान के लिए ये उसकी उम्मीदों पर पानी फिरने जैसा ही है। इस दस्तावेज से पाकिस्तान को लेकर जो संकेत आ रहे हैं वो कुछ वैसे ही हैं जो इस वर्ष की शुरुआत में थे। ज्ञात हो कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई और फिर एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने पाकिस्तान को न केवल आतंकवाद का केंद्र बताया, बल्कि आतंकियों को अभी भी पालने-पोसने वाला देश साबित किया। उनकी तथ्यात्मक और तीखी बातों से पाकिस्तान किस तरह बौखलाया, इसे उसके विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर की गईं स्तरहीन टिप्पणियों से चलता है। बिलावल भुट्टो ने अपनी अवांछित टिप्पणियों से यही साबित किया कि उन्हें कूटनीतिक शिष्टाचार की बुनियादी समझ भी नहीं।

उन्होंने अपने साथ पाकिस्तान के छिछले स्तर को ही प्रमाणित किया।किसी भी देश के विदेश मंत्री से ऐसी गिरी हुई हरकत की उम्मीद नहीं की जाती, लेकिन पाकिस्तान के नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं। वास्तव में बिलावल भुट्टो ने कूटनीतिक क्षुद्रता के मामले में अपने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को ही मात देने की कोशिश की और वह भी उस समय जब विश्व बांग्लादेश की स्वतंत्रता का स्मरण कर रहा था। जुल्फिकार अली भुट्टो का नाती होने के नाते बिलावल भुट्टो को यह अच्छी तरह पता होना चाहिए कि पाकिस्तानी सेना ने तब के पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में कैसे भीषण अत्याचार किए थे। वह इससे भी अनजान नहीं हो सकते कि संयुक्त राष्ट्र के हिसाब से भी पाकिस्तान दर्जनों आतंकियों की शरणस्थली है। बिलावल भुट्टो ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बेजा टिप्पणियां करने के साथ ही जिस तरह भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, उससे यदि कुछ स्पष्ट हुआ तो यही कि पाकिस्तान के साथ संबंधों में सुधार की कहीं कोई गुंजाइश नहीं।

पाकिस्तान को पता होना चाहिए कि भारत की उसमें कहीं कोई दिलचस्पी नहीं। होनी भी नहीं चाहिए, क्योंकि वह अपने ही कर्मों से समस्याओं के गहरे दलदल में धंसता जा रहा है। पाकिस्तान भले ही एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आ गया हो, लेकिन दुनिया उसे आतंकवाद के केंद्र के रूप में ही देखती है और इसी कारण कोई देश उसके इस प्रलाप को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं कि वह स्वयं आतंकवाद से पीडि़त है। भारत इससे संतुष्ट नहीं हो सकता कि उसे पाकिस्तान को एक बार फिर विश्व मंच पर बेनकाब करने का अवसर मिला, क्योंकि दुनिया के अन्य प्रमुख देश उसकी हरकतों पर उसे आड़े हाथ लेने के लिए उस तरह आगे नहीं आ रहे हैं, जैसा अपेक्षित है। स्पष्ट है कि समय-समय पर पाकिस्तान को फटकार लगाते रहने वाले भारत को इस पर विचार करना होगा कि विश्व समुदाय पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने में क्यों हिचक दिखाता है?

ध्यान रहे कि वह तब तक सही राह पर नहीं आने वाला, जब तक दुनिया के अन्य प्रमुख देश उस पर दबाव नहीं डालते। अब बात करे चीन के बारे में तो चीन को सही सबक सिखाने के लिए उस पर आर्थिक निर्भरता कम करना जरूरी है।बेलगाम चीन को सही संदेश देने के लिए भारत को उन देशों से संपर्क-संवाद बढ़ाकर आर्थिक एवं सैन्य सहयोग कायम करने के लिए भी सक्रिय होना चाहिए जो उसकी दादागीरी से पीडि़त हैं। इसके अतिरिक्त भारत को तिब्बत और ताइवान के मसले पर भी मुखर होना होगा।

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सेना की आक्रामक हरकत ने दो वर्ष पहले लद्दाख के गलवन में हुई खूनी झड़प की याद दिलाने के साथ यह भी स्पष्ट कर दिया कि चीन अपनी शुत्रतापूर्ण गतिविधियों से बाज आने वाला नहीं है। तवांग की घटना ने यह भी साफ कर दिया कि चीनी सेना आगे भी भारतीय सीमा में अतिक्रमण करने की कोशिश कर सकती है।
यह ठीक है कि गलवन की घटना के बाद से भारतीय सेनाएं सतर्क हैं, लेकिन अब केवल सतर्कता बरतना ही पर्याप्त नहीं। हमारी सेनाओं को चीनी सेना के खिलाफ रक्षात्मक के बजाय आक्रामक रवैया (Global Threat) अपनाना होगा।

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