Finance Minister जी, महामारी के माहौल में सैलरीड क्लास पर दोहरी मार है आपका बजट |

Finance Minister जी, महामारी के माहौल में सैलरीड क्लास पर दोहरी मार है आपका बजट

Finance Minister, your budget is a double whammy on the salaried class in the pandemic environment.

Finance Minister

नवीन कुमार पाण्डेय। Finance Minister : क्या कहूं? कितना दर्द मिला है, कैसे बयां करूं? बजट ने ऐसा मायूस किया जिसकी कल्पना नहीं की थी। बजट भाषण खत्म होते ही दिल से तो यही आवाज आई- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हर वर्ष बेरुखी का नया रेकॉर्ड बना रही हैं। यह थोड़ा कड़वा है, लेकिन सच भी यही है।

भला घटती कमाई और बढ़ती महंगाई के दौर में टैक्स पर राहत की जगह पिछले दरवाजे से हाथ मरोडऩे की ‘बदनीयत’ पर प्रतिक्रिया दी भी जाए तो कैसे? मेरी बातों से नाराज होने वाला कोई भी शख्स दिल पर हाथ रखकर कहे- क्या डिजिटल एसेट्स पर 30 प्रतिशत का भारी-भरकम टैक्स लगाना हाथ मरोडऩे जैसा नहीं है? जब दुनियाभर में बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करेंसी की हनक बढ़ रही है तो इतने बड़े टैक्स के जरिए निवेश की राह रोकने की मंशा की सराहना करें भी तो कैसे?

वित्त मंत्री जी, हमें पता है कि सरकार बड़ी-बड़ी विकास योजनाएं चलाती हैं। देश की बड़ी आबादी को आधारभूत सुविधाएं मयस्सर हो और वो भी सम्मानित जीवन जी सकें, इसके लिए जारी कई कल्याणकारी योजानाओं पर भी बजट का बड़ा हिस्सा खर्च होता है। हम जानते हैं कि इन खर्चों की लागत भी हमारी जेब से ही निकलती है, लेकिन क्या अर्थशास्त्र के सामान्य नियम ये नहीं कहते कि सरकारी खजाने में हमारे योगदान का अनुपात हमारी कमाई और बचत पर ही निर्भर करेगा।

अगर हमारी जेब भरी रहेगी तो हम खर्च भी तो ज्यादा करेंगे। अब वित्त मंत्री जी बताएं कि हमारा कौन सा खर्च है जिससे सरकार की कमाई नहीं होती है? तो हमारी बचत बढ़ाकर, आप अपनी कमाई भी बढ़ा लेते तो वह विन-विन सिचुएशन होता ना? फिर आपने हमें रुलाने का ही रास्ता क्यों चुना?

मैडम, (Finance Minister) यह आप भी जानती हैं कि सरकारें योजनाएं नहीं चलातीं, सिर्फ प्रबंधन करती हैं। अच्छी सरकारें अच्छा प्रबंधन करती हैं और प्रबंधन में फेल होने वाले सरकारों को जनता का आक्रोश सहना पड़ता है। आज आपके बजट ने हमारे अंदर यही आक्रोश पैदा किया है। अगर हमारे अंदर की आग वक्त रहते बुझी नहीं तो इसकी लपटें पांच राज्यों में होने वाली वोटिंग तक पहुंच सकती हैं। अगर दिल बड़ा नहीं कर सकतीं तो कम-से-कम चुनावी नुकसान की आशंका में ही सही, दरियादिली का दिखावा तो कर सकती थीं।

टैक्स स्लैब नहीं बदला कोई बात नहीं, सेक्शन 80ष्ट के तहत मिलने वाली निवेश छूट की सीमा भी नहीं बढ़ाई फिर भी ठीक, कम-से-कम स्टैंडर्ड डिडक्शन में वृद्धि का लॉलिपॉप ही दे देतीं। वित्त मंत्री जी, आपने पिछले वर्ष भी कुछ नहीं दिया था। उससे पहले वर्ष 2020 के बजट में आपने इनकम टैक्स की गणना का एक नया विकल्प दिया। उसमें आपने टैक्स फ्री इनकम की सीमा 5 लाख रुपये तो कर दी, लेकिन स्टैंडर्ड डिडक्शन, एचआरए, एलटीए जैसी सभी छूटों को वापस ले लिया।

इस तरह, नई व्यवस्था भी आपकी एक चाल ही निकली। ऊपर से तमाम तरह की पेचीदिगियां। टैक्स बचत के लिहाज से नया सिस्टम बेहतर है या पुरानी व्यवस्था ही सही, इसके कैलकुलेशन का सरदर्द अलग से मिला। इसलिए, मेरा मन यह भी कहता है कि ठीक ही हुआ, इनकम टैक्स में राहत पर कोई घोषणा नहीं हुई क्योंकि दो सालों से आपने राहत के नाम पर आंखमिचौली का खेल ही खेला है।

इस बार तो हमें विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियाएं सही ही जान पड़ती हैं। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा ही है कि बजट काफी निराशाजनक है। देखिए ना, आपके कैबिनेट सहयोगी के पास भी बजट के बचाव में कुछ खास कहने को है नहीं। वो यूं ही सैद्धांतिक बातें कर रहे हैं। संवाददाता घेर ले रहे हैं तो मजबूरी में बेमन से कुछ ना कुछ बोल रहे हैं- ये अमृत काल तो वो प्राचीन अर्थव्यवस्था, फलां तो ढिमकाज् एक्सपर्ट भी यही कह रहे हैं कि सरकार आम जनता की जेब में थोड़े ज्यादा पैसे छोड़कर महामारी से मिले दर्द को कम कर सकती थी।

खैर, आप सरकार हैं, लेकिन हम सेवक नहीं। लोकतंत्र में हम जनता ही मालिक हैं ना? जिस लोकतंत्र ने हमें मालिक बनाया और आपको हमारा सेवक, उसके सबसे बड़े त्योहार चुनावों के मौसम में हमने बिल्कुल जायज उम्मीदें पाली थीं। हमने यह नहीं सोचा था कि चुनाव है तो सरकार ब्लैकमेल होकर हमें नाजायज फायदे भी देगी। सच कहूं तो हम बहुत पहले से न्यू इंडिया का सपना देख रहे हैं।

ऐसा न्यू इंडिया (Finance Minister) जिसमें सरकारें सिर्फ चुनाव जीतने के लिए मलाई नहीं बांटें बल्कि एक स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ सतत विकास के रास्ते पर आगे बढ़ते रहें। लेकिन, विकास किसका, किस तरह का? वित्त मंत्री जी, इतना तो कह सकता हूं कि आपके इस बजट में कम-से-कम इस गूढ़ प्रश्न का साफ-सुथरा जवाब तो नहीं ही है।

(डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।)

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