Extremes of Temperature : तापमान का बढ़ता पारा चिंता की वजह
डॉ. सुरभि सहाय। Extremes of Temperature : इस वर्ष ऐसा लगता है मानो गर्मी अपने तय समय से पहले ही दस्तक दे चुकी है। मार्च के महीने में गर्मी ने मई वाले तेवर दिखाए हैं। अप्रैल का महीना बीतने में एक सप्ताह का ही समय शेष है, और गर्मी नित नए रिकार्ड कायम कर रही है। इस साल तापमान के तीखों तेवरों से मनुष्य, जीव-जंतु तो परेशान है ही, वहीं मौसम के तल्ख तेवर पर्यावरण विशेषज्ञों के लिये भी चिंता की बड़ी वजह हैं। मौसम विभाग लगातार कह रहा है कि इस बार गर्मी ज्यादा पड़ सकती है। राजस्थान और गुजरात में बने प्रति चक्रवातीय सर्कुलेशन में तेजी की वजह से नमी और आद्र्रता नदारद है। सूरज के तीखे तेवर ने लोगों को घरों में कैद कर दिया है। लू ने जनजीवन को प्रभावित कर दिया है। जिसके चलते जिले का पारा लगातार बढ़ रहा है। भारत में 122 वर्षो में इस साल मार्च के महीने में औसत तापमान सबसे अधिक रहा है। भारत के किसी भी शहर में चले जाएं, वहां लोग ये कहते हुए मिल जाएंगे, ऐसा पहले नहीं होता था. जब हम बच्चे थे, इतनी गर्मी नहीं होती थी।
वर्ष 2021 पिछले 90 सालों में सबसे गरम सालों में था। माना गया कि 1901 के बाद जो सबसे गर्म 05 साल आए, उसमें वर्ष 2021 भी एक था। पिछले साल जून में दिल्ली में तापमान 44 डिग्री रहा. हालांकि मई जून के महीने वर्ष 2019, 2014 और 1998 में और ज्यादा गरम रिकॉर्ड किए गए थे। उसकी सबसे बड़ी वजह अगर ग्लोबल स्थितियों के कारण इस साल का पिछले साल से ज्यादा गरम रहना है तो एमजेओ भी भारतीय जलवायु और मौसम पर बहुत असर डालता है। अगर समुद्र की सतह का तापमान इस साल गरम होना शुरू हो चुका है तो उसका असर भारत की जलवायु और गरमी पर पड़ेगा ही। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अप्रैल, मई और जून में तापमान 40 के ऊपर जाएगा और गरमी भी होगी। साथ ही गरम हवाओं के थपेड़े यानि लू भी चलेगी।
भारत में तापमान का रिकार्ड (Extremes of Temperature) वर्ष 1901 से रखा जाना शुरू हुआ था। साल 2022 के मार्च महीने के तापमान ने वर्ष 2010 के मार्च में दर्ज औसत अधिकतम तापमान के सर्वकालिक औसत को पार कर लिया। 2010 के मार्च में अधिकतम तापमान का औसत 33.09 डिग्री सेल्सियस रहा था लेकिन मार्च 2022 में औसत तापमान 33.1 डिग्री दर्ज किया गया। दुनियाभर में भी पिछले दो दशक में सबसे गर्म साल देखने को मिले हैं। जलवायु परिवर्तन का असर मौसम की तीव्रता पर पड़ रहा है, भारत में भी यह भीषण बाढ़, चक्रवात या भारी बारिश के रूप में देखने को मिला है। इसमें उत्तर में पश्चिमी विक्षोभ एवं दक्षिण में किसी व्यापक मौसमी तंत्र के नहीं बनने के कारण वर्षा की कमी का प्रभाव भी एक कारण है। पिछले कुछ सालों में ऐसे दिन ज्यादा रहे हैं जब बारिश हुई ही नहीं। कुछ मामलों में बहुत ज्यादा बारिश हुई और गर्मी भी बढ़ती गई।
इस साल मार्च के उतराद्र्ध में देश के कई हिस्सों में तापमान में वृद्धि देखने को मिली, लेकिन बारिश कम हुई। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर भारत के हिल स्टेशन में भी दिन के वक्त सामान्य से ज्यादा तापमान दर्ज किया गया। दिल्ली, चंदरपुर, जम्मू, धर्मशाला, पटियाला, देहरादून, ग्वालियर, कोटा और पुणे समेत कई स्थानों पर मार्च 2022 में रिकार्ड अधिकतम तापमान दर्ज किया गया। पश्चिम हिमालयी क्षेत्र के पर्वतीय पर्यटन स्थलों पर भी दिन के वक्त काफी ज्यादा तापमान दर्ज किया गया। देहरादून, धर्मशाला या जम्मू जैसे हिल स्टेशन पर मार्च में 34-35 डिग्री सेल्सियस तक तापमान दर्ज किया गया, जो बहुत ज्यादा है। इस बार तापमान उन क्षेत्रों के अधिक रहा, अपेक्षाकृत ठंडा मौसम रहना चाहिए था।
इसका एक उदाहरण पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र है , जहां लंबे समय से ऐसा कुछ नहीं देखने को मिला। अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में लगातार बढ़ रहे तापमान ने जनजीवन को प्रभावित कर दिया है। भीषण गर्मी से जहां इंसान परेशान हैं, वहीं पशु पक्षी भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं। तल्ख धूप और गर्मी के चलते शहर से लगाये ग्रामीण इलाकों में पडऩे वाली गर्मी को लेकर अभी से लोग चिंतित नजर आ रहे हैं। इस समय सुबह होने के साथ ही सूर्यदेव का कहर जारी है। इसी के चलते आसमान से आग सी बरस रही है।
वल्र्ड मेटेरोलॉजिकल आर्गनाइजेशन ने इस साल अनुमान लगाया है कि वर्ष 2021 की तुलना में इस बार ओवरआल तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढोतरी होगी। लिहाजा ये साल पिछले साल की तुलना में और गरम होगा। जाहिर सी बात है कि ये स्थिति गरमी के महीनों को और गर्माएगी। कोई महीना जब तुलनात्मक रूप से ज्यादा गर्म रहता है तब इससे यह संकेत मिलता है कि यह जलवायु परिवर्तन का असर है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव यही है कि इस साल मार्च महीने में तापमान का ज्यादा प्रभाव रहा। ऐसे में पिछले 122 वर्ष में इस साल मार्च महीने में तापमा अखिल भारतीय स्तर पर औसतन सबसे अधिक रहा।
विशेषज्ञों के मुताबिक, अल नीनो प्रभाव पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर (Extremes of Temperature) में सतही जल के असामान्य रूप से तापमान बढऩे की स्थिति को दर्शाता है। हालांकि, भारत में हाल के दिनों में तापमान में वृद्धि का अल नीनो प्रभाव से कोई संबंध नहीं है। भारत बहुत बड़ा देश है और कई मौसमी परिघटनाएं स्थानीय प्रभाव के कारण भी होती हैं । अभी अप्रैल महीना शुरू ही हुआ है और मानसून आने में अभी समय है। हमारे पास ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो मार्च महीने के तापमान के आधार पर मानसून के पैटर्न से कोई संबंध जोड़ता हो । ऐसे में मानसून पर प्रभाव के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। भारतीय शहरों का स्वरूप पिछले कुछ दशकों में काफी बदला है। यहां की हरियाली में दिनों-दिन कमी आ रही है। धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं। इमारतों की संख्या बढ़ रही है।