Election Promises : चुनावी वादों की बरसात

Election Promises
Election Promises : उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित पांच राज्यों के लिए होने जा रहे विधानसभा चुनावओं के लिए राजनीतिक पार्टियों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र जारी करना शुरू कर दिया है।
इन चुनावी घोषणा पत्रों में लोक लुभावन वादों की झड़ी लग गई है। राजनीतिक पार्टियों के बीच मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए बड़ चढ़कर वादे करने की होड़ मच गई है। ज्यादातर पार्टियां एक बार फिर लोगों के वोट कबाडऩे के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाएं कर रही है।
लगभग सभी पार्टियों ने चुनाव जितने पर किसानों (Election Promises) के कर्ज माफ करने की बात कहीं है। इसी तरह सभी ने सस्ती या नि:शुल्क बिजली देने का भी वादा किया है। कोई 200 यूनिट बिजली फ्री में देने का वादा कर रहा है तो कोई 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का दम भर रहा है।
इसके अलावा पेंशन के नाम पर महिलाओं को हजार रुपए महिना तो पुरूषों को डेढ़ महिना देने का आश्वासन भी परोसा जा रहा है। मुफ्त स्कूटी, नि:शुल्क लेपटॉप सहित और भी कई तरह की चीजें फ्री में देने की प्रतिस्पर्धा चल रही है।
निश्चत रूप से मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना अनैतिक है किन्तु चुनाव आयोग इस पर रोक लगाने में असफल हो रहा है। ऐसी स्थिति में सुप्री कोर्ट को दखल देना चाहिए और मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली ऐसी घोषणाओं पर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए।
सिर्फ न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं भी नि:शुल्क रखी जानी चाहिए। अन्य चीजों का मुफ्त में मिलना लोगों को काहिल बनाता है यह उन टैक्स पेयरों के पैसों का भी दुरूपयोग है जो देश के विकास के काम में लगना चाहिए।
किन्तु राजनीतिक पार्टियां (Election Promises) करदाताओं के गाड़े खुन पसीने की कमाई को मुफ्तखोरो पर लुटाती है। इस पर अब रोक लगाना निहायत जरूरी है। चुनाव के दौरान ऐसे वादे करने से मतदान भी निश्पक्ष नहीं रह जाता। मतदाता ऐसे प्रलोभनों के लालच में आकर वोट करता है।
यह लोकतंत्र का न सिर्फ मजाक है बल्कि उसका अपमान भी है। बेहतर होगा कि राजनीतिक पार्टियां मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़े औैर मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली ऐसी घोषणाओं से बचे। तभी लोकतंत्र मजबूत होगा।