Economic Turmoil : बेरोजगारी और वित्तीय असुरक्षा का बढ़ता दायरा
प्रेम शर्मा। Economic Turmoil : वैसे तो रोजगार और आर्थिक स्तर पर पूरी दुनिया में उथल पुथल मची है। पहले कोरोना काल फिर रूस यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर बेरोजगारी और परिवारों की वित्तीय असुरक्षा का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। ऐेसे में भारत को लेकर जो ताजे आंकडे आ रहे है वह देश के परिपक्व विकास के लिए अवरोध के सादृश्य है। भारत में सरकार के लाख प्रयास के बावजूद बेरोजगारी कम नही हो पा रही है। राज्य और केन्द्र सरकार की निजीकरण एवं ठेका प्रणाली वाली नौकरी ने लाखों परिवारों परिवारों को वित्तीय असूरक्षा की चपेट में ला दिया है।
एक ताजा सर्वे के आधार पर भारत के 69 प्रतिशत परिवार वित्तीय असुरक्षा और आर्थिक कमजोरी का सामना कर रहे है। पिछले महिने देश में बेरोजगारी के जो आंकड़े आए थे वे भी कम चौकाने वाले नही थे, बल्कि उन आंकड़ों का सारोकार भी देश की 69 प्रतिशत वित्तीय असुरक्षित परिवारों से जुड़ा है। अगस्त 2022 में देश में बेरोजगारी दर 8.3 प्रतिशत जो जुलाई में 6.8 प्रतिशत थी। अगस्त में शहरी बेरोजगारी दर 9.6 प्रतिशत रही।
वित्तीय समावेशन की दिशा में मजबूत प्रगति (Economic Turmoil) और वित्तीय सेवा उद्योग के विस्तार के बावजूद देश के करीब 69 प्रतिशत परिवार अपनी वित्तीय असुरक्षा और कमजोरी का सामना कर रहे हैं। एक सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट में यह दावा किया गया। आर्थिक खबरों के डिजिटल मंच मनी 9 की तरफ से व्यक्तिगत वित्त के बारे में कराए एक सर्वेक्षण के आधार पर यह रिपोर्ट जारी की गई है। इंडियाज पर्सनल फाइनेंस पल्स नाम के इस सर्वेक्षण में भारतीय परिवारों की आय, बचत, निवेश एवं खर्च से जुड़े बिंदुओं को समेटने की कोशिश की गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, श्देश में 4.2 सदस्यों वाले एक परिवार की औसत आय 23,000 रुपये प्रति माह है। वहीं 46 प्रतिशत से अधिक परिवारों की औसत आय 15,000 रुपये प्रति माह से भी कम है।
इसका मतलब है कि ये परिवार आकांक्षी या निम्न आय समूह से ताल्लुक रखते हैं।रिपोर्ट को सच माना जाए तो देश के सिर्फ तीन प्रतिशत परिवारों का ही जीवन-स्तर विलासिता से भरपूर है और उनमें में अधिकतर परिवार उच्च आय वर्ग से संबंधित हैं। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि करीब 70 प्रतिशत परिवार बैंक जमा, बीमा, डाकघर बचत और सोने के रूप में अपनी वित्तीय बचत करते हैं। इनमें भी उनका सबसे ज्यादा जोर बैंकों एवं डाकघरों पर होता है और जीवन बीमा एवं सोना का स्थान उसके बाद आता है।
भारतीय परिवारों की बचत का 64 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बैंक खातों में जमा के रूप में है जबकि सिर्फ 19 प्रतिशत परिवारों को ही बीमा की सुरक्षा हासिल है। मई और सितंबर के बीच कराए गए इस देशव्यापी सर्वेक्षण में 20 राज्यों के 31,510 परिवारों से बात की गई। इस दौरान शहरी इलाकों के अलावा ग्रामीण परिवारों से भी चर्चा की गई। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी पिछले माह जारी आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में 37.3 प्रतिशत के साथ भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से सबसे अधिक बेरोजगारी दर है, इसके बाद जम्मू और कश्मीर में 32.8 प्रतिशत, राजस्थान में 31.4 प्रतिशत और झारखंड में 17.3 प्रतिशत बेरोजगार हैं। सूची में 0.4 प्रतिशत के साथ छत्तीसगढ़ में सबसे कम बेरोजगारी दर है, जबकि मेघालय और महाराष्ट्र में क्रमश: 2 प्रतिशत और 2.2 प्रतिशत की बेरोजगारी दर है।
अगस्त में देश में बेरोजगारी दर एक साल के उच्चस्तर 8.3 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। इस दौरान रोजगार पिछले महीने की तुलना में 20 लाख घटकर 39.46 करोड़ रह गया था। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में बेरोजगारी दर 6.8 प्रतिशत थी और रोजगार 39.7 करोड़ था। राज्यवार बेरोजगारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त के दौरान हरियाणा में सबसे ज्यादा 37.3 प्रतिशत बेरोजगारी थी। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 32.8 प्रतिशत, राजस्थान में 31.4 प्रतिशत,झारखंड में 17.3 प्रतिशत, त्रिपुरा में 16.3 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर सबसे कम 0.4 प्रतिशत, मेघालय में 2 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 2.2 प्रतिशत,गुजरात और ओडिशा में 2.6 प्रतिशत तक रही। इससे पहले मानसून के दौरान कृषि गतिविधियां बढऩे से जुलाई महीने में देश की बेरोजगारी दर घटकर 6.80 प्रतिशत पर आ गई थी। एक महीने पहले जून में यह 7.80 प्रतिशत पर थी।
यदि हमारी विश्वगुरु बनने की आकांक्षा है तो इसे हासिल करने के लिए भी हमें आम आदमी पर ध्यान देना ही होगा। देश में केवल करोड़पतियों की संख्या बढऩे से काम नहीं बनेगा। संपत्ति और आय का पुनर्वितरण विश्वगुरु बनने के लिए भी जरूरी है। यह जिम्मेदारी सरकार की है कि वह सबको आगे बढ़ाने के लिए हालात पैदा करे। इसमें, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा श्रेष्ठ हैं। इन्हें उप्लब्ध करवाने सरकार को राजस्व बढ़ाने जरूरत है।असमानता हद से ज्यादा बढ़ जाए तो समाज में क्लेश-तनाव बढ़ता है। अपराध की दर बढ़ती है। साथ ही, समाज में लोगों में अपनापन घटता है, अलगाव-अकेलापन आ जाता है। आर्थिक असमानता से जुड़ा नैतिक सवाल शायद सबसे अहम है।
जॉर्ज ऑरवेल (Economic Turmoil) ने कहा था, ‘आइदर वी ऑल लिव इन ए डीसेंट वल्र्ड, ऑर नोबडी डज़Ó, यानी या तो हम सभी सभ्य समाज में रहते हैं, या कोई भी नहीं। ऑरवेल की समाज की रचना का आधार था न्याय, समानता और एकात्मता। यह भावना और लक्ष्य हमारे संविधान की प्रस्तावना में भी है। यह हमारे लिए सवाल है कि क्या हम ऐसा समाज रचने की कोशिश भी कर रहे हैं ? इस पर सरकार को सारे विपक्ष के साथ बैठककर व्यापक मंथन कर रणनीति पर काम करना होगा।