Earthquake Tremors : भूकम्प के झटकों से कांपता दिल्ली-एनसीआर |

Earthquake Tremors : भूकम्प के झटकों से कांपता दिल्ली-एनसीआर

Afghanistan Earthquake: Once again earthquake shook Kabul...no news of casualty yet

Earthquake

योगेश कुमार गोयल। Earthquake Tremors : राजधानी दिल्ली में पिछले कुछ समय से बार-बार भूकम्प के झटके महसूस किए जा रहे हैं। 5 जनवरी की रात को तो दिल्ली-एनसीआर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक में 5.9 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए। भूकम्प का केन्द्र अफगानिस्तान के फैजाबाद से 79 किलोमीटर दूर हिंदू कुश इलाका था। इससे करीब पांच ही दिन पहले दिल्ली एनसीआर के लोगों के नए साल की शुरूआत भी भूकम्प के झटकों के साथ ही हुई थी। दरअसल एक जनवरी की सुबह भी दिल्ली-एनसीआर में 3.8 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस हुए थे। नवम्बर माह में तो दिल्ली एनसीआर में दो बार ऐसे बड़े भूकम्प भी आए, जिनमें से एक अति गंभीर श्रेणी का रिक्टर स्केल पर 6.3 तीव्रता का था, जिसका असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित सात राज्यों के अलावा चीन और नेपाल तक महसूस किया गया था। नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी (एनसीएस) के मुताबिक वर्ष 2020 में दिल्ली एनसीआर और आसपास के इलाकों में कुल 51 बार भूकम्प के झटके महसूस किए गए, जिनमें से कई रिक्टर स्केल पर तीन या उससे अधिक तीव्रता के थे।

2020 के बाद से भी दिल्ली-एनसीआर इलाका लगातार भूकम्प से झटकों (Earthquake Tremors) से थर्रा रहा है। हालांकि राहत की बात यही है कि बार-बार लग रहे भूकम्प के झटकों से अब तक जान-माल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है लेकिन दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर भारत में कई हल्के और मध्यम भूकम्प के झटके हिमालय क्षेत्र में किसी बड़े भूकम्प की आशंका को बढ़ा रहे हैं। दरअसल भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे कई छोटे भूकम्प बड़ी तबाही का संकेत होते हैं और बार-बार लग रहे भूकम्प के झटकों के मद्देनजर दिल्ली-एनसीआर इलाके में आने वाले दिनों में किसी बड़े भूकम्प का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में दिल्ली-एनसीआर की आबादी काफी बढ़ी है और ऐसे में 6 से अधिक तीव्रता का भूकम्प यहां भारी तबाही मचा सकता है।

एनसीएस के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा है, जहां 8 की तीव्रता वाले भूकम्प आने की भी क्षमता है। दिल्ली से करीब दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय क्षेत्र में अगर 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकम्प आता है तो दिल्ली के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि ऐसा भीषण भूकम्प कब आएगा, इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कोई सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है। दरअसल भूकम्प के पूर्वानुमान का न तो कोई उपकरण है और न ही कोई मैकेनिज्म। दिल्ली में बड़े भूकम्प के खतरे को देखते हुए भारतीय मौसम विभाग के भूकम्प रिस्क असेसमेंट सेंटर द्वारा कुछ समय पहले दिल्ली-एनसीआर में इमारतों के मानक में शीघ्रातिशीघ्र बदलाव किए जाने का परामर्श दिया गया था। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में आ रहे भूकम्पों को लेकर अध्ययन चल रहा है। उनका कहना है कि इसके कारणों में भू-जल का गिरता स्तर भी एक प्रमुख वजह सामने आ रही है, इसके अलावा अन्य कारण भी तलाशे जा रहे हैं।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या दिल्ली की ऊंची-ऊंची आलीशान इमारतें और अपार्टमेंट किसी बड़े भूकम्प को झेलने की स्थिति में हैं? विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकम्प के झटकों से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट इस समय सक्रिय हैं और इन फॉल्ट में बड़े भूकम्प की तीव्रता 6.5 तक रह सकती है। इसीलिए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बार-बार लग रहे भूकम्प इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मानते हुए दिल्ली को नुकसान से बचने की तैयारियां कर लेनी चाहिएं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में निरन्तर लग रहे झटकों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट भी कई बार कड़ा रूख अपना चुका है। हाईकोर्ट ने कुछ समय पहले भी दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, दिल्ली छावनी परिषद, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि तेज भूकम्प आने पर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? अदालत द्वारा चिंता जताते हुए कहा गया था कि सरकार और अन्य निकाय हमेशा की भांति भूकम्प के झटकों को हल्के में ले रहे हैं जबकि उन्हें इस दिशा में गंभीरता दिखाने की जरूरत है।

अदालत का कहना था कि भूकम्प जैसी विपदा से निपटने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि भूकम्प से लाखों लोगों की जान जा सकती है। दिल्ली सरकार तथा एमसीडी द्वारा दाखिल किए गए जवाब पर सख्त टिप्पणी करते हुए अदालत यहां तक कह चुकी है कि भूकम्प से शहर को सुरक्षित रखने को लेकर उठाए गए कदम या प्रस्ताव केवल कागजी शेर हैं और ऐसा नहीं दिख रहा कि एजेंसियों ने भूकम्प के संबंध में अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश का अनुपालन किया हो। दिल्ली-एनसीआर भूकम्प के लिहाज से काफी संवेदनशील है, जो दूसरे नंबर के सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-4 में आता है। इसीलिए अदालत को कहना पड़ा था कि केवल कागजी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा बल्कि सरकार द्वारा जमीनी स्तर पर ठोस काम करने की जरूरत है। दरअसल वास्तविकता यही है कि पिछले कई वर्षों में भूकम्प से निपटने की तैयारियों के नाम पर केवल खानापूर्ति ही हुई है।

दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ महीनों में आए भूकम्प के झटके भले ही रिक्टर पैमाने पर कम तीव्रता वाले रहे हों किन्तु भूकम्प पर शोध करने वाले इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मान रहे हैं। इसीलिए अधिकांश भूकम्प विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर की इमारतों को भूकम्प के लिए तैयार करना शुरू कर देना चाहिए ताकि बड़े भूकम्प के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में करीब नब्बे फीसदी मकान क्रंकीट और सरिये से बने हैं, जिनमें से 90 फीसदी इमारतें रिक्टर स्केल पर छह तीव्रता से तेज भूकम्प को झेलने में समर्थ नहीं हैं।

एनसीएस के अध्ययन के अनुसार दिल्ली का करीब तीस फीसदी हिस्सा जोन-5 में आता है, जो भूकम्प की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दिल्ली में बनी नई इमारतें 6 से 6.6 तीव्रता के भूकम्प (Earthquake Tremors) को झेल सकती हैं जबकि पुरानी इमारतें 5 से 5.5 तीव्रता का भूकम्प ही सह सकती हैं। विशेषज्ञ बड़ा भूकम्प आने पर दिल्ली में जान-माल का ज्यादा नुकसान होने का अनुमान इसलिए भी लगा रहे हैं क्योंकि करीब 2.25 करोड़ आबादी वाली दिल्ली में प्रतिवर्ग किलोमीटर दस हजार लोग रहते हैं और कोई बड़ा भूकम्प 300-400 किलोमीटर की रेंज तक असर दिखाता है।

(लेखक 33 वर्षों से पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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