Draupadi Murmu : बदलाव की वाहक बनेंगी मुर्मु

Draupadi Murmu : बदलाव की वाहक बनेंगी मुर्मु

Draupadi Murmu: Murmu will become the vehicle of change

Draupadi Murmu

राजेश माहेश्वरी। Draupadi Murmu : द्रौपदी मुर्मु ने भारत के 15वें राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है। द्रौपदी मुर्मु के देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होना सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की जीत है। लोकतंत्र की यही असली ताकत है कि जहां एक छोटे से छोटा व्यक्ति भी सर्वोच्च पद पर आसीन होने के स्वपन देख सकता है। और आसाीन हो भी जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पारिवारिक पृष्ठभूमि किसी से छिपी नहीं है। पिता चाय की दुकान चलाते थे तो मां दूसरों के घरों में छोटे-मोटे काम करती थीं। देश में ऐसे अनेक व्यक्तित्व आपको मिल जाएंगे जिन्होंने अपनी मेहनत और समर्पण की बदौलत उच्च पद प्राप्त किये हैं।

लोकतंत्र की वास्तविक परिकल्पना भी यही है। यहां लोक ही राजा होता है। विकास के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी बड़े से बड़ा सपना देख सकता है, और संघर्ष और परिश्रम से उसे पूरा भी कर सकता है। श्रीमती मुर्मु आदिवासी समाज से संबंध रखती हैं। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब आदिवासी समाज का कोई व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर विराजित हुआ है। द्रोपदी मुर्मु का राष्ट्रपति बनना भारतीय लोकतंत्र को और मजबूती प्रदान करता है। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सर्वोच्च संवैधानिक पद पर एक आदिवासी समुदाय की महिला आसीन हुई है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होने से आजादी के अमृत महोत्सव की सार्थकता और महत्ता में वृद्धि हो गयी है। हमारे संविधान की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि उसे हम भारत के लोग जैसी विराट स्वीकृति प्राप्त हुई। अन्यथा अनेक लोकतान्त्रिक देशों में संविधान भी जनता पर जबरिया लाद दिया जाता है। 75 साल पूर्व हमारे ही साथ आजाद हुए पाकिस्तान में सत्ता पलट के बाद संविधान के मूल स्वरूप को पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया जबकि हमारे देश में विभिन्न विचारधाराओं की सरकारें बनने के बावजूद संविधान की आत्मा अक्षुण्ण बनी हुई है।

ऐसा नहीं है कि सत्ता में आये सभी लोगों ने आम जनता को चरम संतुष्टि दी हो। समस्याओं का सैलाब भी आता-जाता रहा। पराजय और विजय दोनों देश ने देखी और खाद्यान्न संकट भी भोगा। आर्थिक संकट का वह दौर भी आया जब देश का स्वर्ण भंडार गिरवी रखने की नौबत तक आ गई। लोकतान्त्रिक ढांचे को नष्ट करने का पाप भी 1975 में लगाये गए आपातकाल के रूप में देखने मिला।

जिस अमेरिकी लोकतंत्र का इतिहास 200 साल से ज्यादा पुराना हो, वहां हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद के लिए पहली महिला उम्मीदवार बनी थीं, पर जीत नहीं पायी थीं। उनसे पहले तक अमेरिका के किसी दल ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के योग्य किसी महिला को नहीं माना था। मुर्मु की जीत भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का भी परिचायक है। हाल ही में पड़ोसी श्रीलंका में दिखाई दिया वैसा भारत में नहीं हुआ तो उसका सबसे बड़ा कारण लोकतान्त्रिक संस्कार ही हैं जो हमारी उस सनातन परम्परा का प्रतीक हैं जिसमें भगवान स्वरूप राजा पर एक साधारण नागरिक भी उंगली उठा सकता था।

बीते सात दशकों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, म्यांमार (बर्मा), श्रीलंका और बांग्ला देश में राजसत्ता बदलने के लिए हिंसात्मक विद्रोह और गृहयुद्ध जैसी परिस्थितियां देखने मिलीं। लेकिन भारत में सत्ता जब भी बदली तो जनता ने क्योंकि हमारी शास्त्र परम्परा में जनता को राजा कहा गया है। उस दृष्टि से श्रीमती मुर्मू का देश का प्रथम नागरिक बनना उन पश्चिमी देशों के लिए एक सन्देश है जो खुद को प्रगतिशील और आधुनिक मानते हुए हमें हेय दृष्टि से देखते हैं।

श्रीमती मुर्मु का राष्ट्रपति पद पर आसीन होना इस बात का भी शुभ संकेत है कि देश की राजनीति जाति की संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर अब समाज के उस वर्ग को प्रतिष्ठित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है जिसे आश्वासनों के झुनझुने पकड़ाकर बहलाया तो बहुत गया लेकिन अधिकारों में हिस्सेदारी देते समय इंसाफ नहीं किया गया। इसका लाभ उठाकर राष्ट्रविरोधी ताकतें उनके मन में भारत की संस्कृति और सामजिक व्यवस्था के प्रति घृणा के बीज बोने में काफी हद तक कामयाब हो गईं।

देश के जनजाति बहुल क्षेत्रों के निवासियों में व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना प्रसारित करते हुए उन्हें अलगाववाद के रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करने का षडयंत्र अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से चलाया जाता रहा है। उसका ही परिणाम लोभ-लालचवश धर्मांतरण और डरा-धमकाकर नक्सलवाद के फैलाव के रूप में सामने आया। उस दृष्टि से श्रीमती मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से समाज के उस वर्ग में एक विश्वास जागा है कि बिना किसी हिंसा और संघर्ष के उन्हें मुख्यधारा में सर्वोच्च पद और सम्मान प्राप्त हो सकता है।

द्रौपदी मुर्मू बेहद सामान्य परिवार से आती हैं। उनका देश के शीर्ष पद पर पहुंचना एक मिसाल है। उनका जन्म ओडि़शा के मयूरभंज जिले में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। अपने गृह जनपद से आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद मुर्मू ने भुवनेश्वर से स्नातक की डिग्री ली। उसके बाद उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्यामाचरण मुर्मू से हुआ. इस दंपत्ति की तीन संतानें हुईं- दो बेटे और एक बेटी। उनके दोनों बेटों और पति का असमय निधन हो गया। इन सदमों से गुजरना द्रौपदी मुर्मू के लिए बेहद मुश्किल दौर था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आदिवासी समाज के लिए कुछ करने के लिए राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ओडि़शा के रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत से की।

फिर वे रायगंज से विधायक बनीं और ओडि़शा में भाजपा व बीजू जनता दल की गठबंधन की सरकार में मंत्री भी रहीं। झारखंड में राज्यपाल के रूप में उनके सफल पांच साल के कार्यकाल को भी याद किया जाता है। एक टीचर, क्लर्क, मंत्री, राज्यपाल पद की जिम्मेदारी के बाद राष्ट्रपति पद पर उनकी भूमिका से बड़ी उम्मीदें देश के वंचित समाज को हैं। खासकर उनके संथाल समाज में इस जीत को लेकर बड़ा उल्लास है, जिन्होंने उनकी जीत से पहले ही दीये जलाकर अपनी आकांक्षाएं जाहिर कर दी थीं।

शांत-शालीन व्यवहार वाली द्रौपदी मुर्मू का व्यक्तिगत जीवन तमाम दुखांत से गुजरा है। पति व दो बेटों को खोने के बाद भी वह टूटी नहीं बल्कि और मजबूती से समाज में बदलाव के लिये सक्रिय रहीं। गरीबों, आदिवासियों व वंचित समाज को न्याय दिलाने के लिये पहल करती हैं। विश्वास किया जाना चाहिए कि श्रीमती मुर्मु के राष्ट्र के सर्वोच्च पद को संभालने के बाद देश की दलित, वंचित महिलाओं व आदिवासी समाज के जीवन में वास्तव में बड़ा बदलाव आएगा। उम्मीद है कि जीवटता की धनी व संघर्षों से तपकर निकलीं मुर्मू अपने पद पर रहते हुए बदलाव की वाहक बनेंगी।

निस्संदेह, द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) का जीवन संघर्ष की मिसाल ही रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि श्रीमती मुर्मु का यह उजाला देश के बेहद पिछड़े व दूरदराज के वन क्षेत्रों में रहने वालों के जीवन में नयी आशा का संचार करे। एक व्यक्ति के रूप में उनका संघर्ष हर भारतीय के लिये प्रेरणादायक है। निस्संदेह, देश के जनजातीय समुदाय को श्रीमती मुर्मु के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद नया संबल मिलेगा। किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए यह बड़े मान की बात है कि देश के सबसे वंचित तबके की कोई महिला देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुई है। यह ऐतिहासिक घटना दुनियाभर के लिए एक नायाब मिसाल है।

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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