Dalai Lama Successor : दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन की नज़र…क्या बौद्ध धर्म को भी 'चीनीकरण' की ज़ंजीर में बांधना चाहता है बीजिंग…?

Dalai Lama Successor : दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीन की नज़र…क्या बौद्ध धर्म को भी ‘चीनीकरण’ की ज़ंजीर में बांधना चाहता है बीजिंग…?

बीजिंग/धर्मशाला, 3 जुलाई| Dalai Lama Successor : तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संस्था दलाई लामा को लेकर चीन ने एक बार फिर राजनीतिक हस्तक्षेप का इशारा दिया है। 14वें दलाई लामा द्वारा उत्तराधिकारी तय करने की घोषणा को चीन ने बुधवार को स्पष्ट रूप से अवैध और अस्वीकार्य कहकर खारिज कर दिया।

गादेन फोडरंग ट्रस्ट बनाम ‘स्वर्ण कलश’ विधि

दलाई लामा ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि उनके उत्तराधिकारी का फैसला केवल गादेन फोडरंग ट्रस्ट करेगा, जो 2015 में उनकी निगरानी में स्थापित संस्था है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उनकी संस्था समाप्त नहीं होगी और उत्तराधिकार की प्रक्रिया यहीं से आगे (Dalai Lama Successor)बढ़ेगी। लेकिन चीन इस धार्मिक प्रक्रिया को भी राज्य नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि उत्तराधिकारी की मान्यता केवल केंद्र सरकार के अनुमोदन से ही मान्य होगी।

चीन का ‘धार्मिक हस्तक्षेप’ क्यों है खतरनाक?

चीन ने 2007 में एक नियमित आदेश जारी किया था, जिसमें दलाई लामा जैसे धार्मिक प्रमुखों के पुनर्जन्म को लेकर सरकारी मंजूरी को अनिवार्य बताया गया। माओ ने 18वीं सदी की “स्वर्ण कलश विधि” का हवाला दिया, जिसे किंग राजवंश के दौरान शुरू किया गया (Dalai Lama Successor)था। उन्होंने कहा कि “विदेशी पार्टियों” को उत्तराधिकार प्रक्रिया में दखल देने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

इतिहास गवाह है: भारत और तिब्बत के बीच संबंधों का मूल

1959 में जब तिब्बत पर चीन ने अधिकार जमाया, तब दलाई लामा भारत शरणार्थी बनकर आए। धर्मशाला में उनका रहना और वैश्विक मंचों पर तिब्बती स्वतंत्रता का समर्थन देना, हमेशा चीन को चुभता रहा है।

क्या अमेरिका से फिर बढ़ेगा तनाव?

अमेरिका का ‘तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम 2020’ सीधे तौर पर चीन की नीति के खिलाफ खड़ा है। अमेरिका ने तिब्बती समुदाय को स्वतंत्र रूप से उत्तराधिकारी तय करने का समर्थन दिया (Dalai Lama Successor)है। अगर चीन जबरन किसी व्यक्ति को उत्तराधिकारी घोषित करता है और गादेन फोडरंग ट्रस्ट उसे मान्यता नहीं देता, तो यह अंतरराष्ट्रीय धार्मिक अधिकारों का बड़ा उल्लंघन होगा और अमेरिका समेत कई देशों से टकराव की स्थिति बन सकती है।

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