प्रसंगवश- यही अवसर था, है, और रहेगा : यशवंत धोटे

प्रसंगवश- यही अवसर था, है, और रहेगा : यशवंत धोटे

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आज से 30 साल पहले ग्रामीण रोजगार गारन्टी में काम करने वाले अफसरों के साथ हम बातचीत करते थे तो उनकी समस्या बड़ी अजीबोगरीब हुआ करती थी। फंड इतना अधिक था कि काम क्या कराए यही समझ नहीं आता था। एक ही तालाब को कागजों में दो-तीन बार गहरा कर दिया जाता था ।

इसीलिए तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कहा करते थे कि हम दिल्ली से एक रुपया भेजते हैं तो आम आदमी तक 15 पैसे ही पंहुचते थे। क्योंकि उस समय काम के बदले अनाज से लेकर ऐसी कई योजनाएं हुआ करती थीं जो ग्रामीण हाथों को काम देती थीं और गांवों में पैसे का फ्लो बना रहता था। इसी का परिष्कृत रूप मनरेगा है।

लेकिन वैश्विक महामारी के बाद उत्पन्न होने वाले संकट के मद्देनजर मनरेगा को और अधिक परिष्कृत रूप देने की जरूरत हैं। इसे हमे अवसर के रूप में लेना होगा। वैसे तो कोविड 19 पूरी दुनिया की दिशा और दशा बदलने जा रहा हैं। यह मानवीय त्रासदी कई विधाओं में अवसर देकर जाने वाली हैं बस जरूरत है उसे लपकने की।

इस कोरोना वायरस के चलते पिछले तीन महीनों से दुनिया भर में चल रहा मौतों का सिलसिला अपने चरम पर हैं और भारत अभी सामुदायिक संक्रमण के मुहाने पर खड़ा हैंं। मेनस्ट्रीम मीडिया खासकर हिन्दी न्यूज चैनलों ने सामाजिक संक्रमंण फैलाने की कोशिश की है इसका भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ते दिख रहा हैं। देश में निकट भविष्य में आने वाली आर्थिक मन्दी को लेकर पूरा विश्व चिन्तित है।

लेकिन भारत के लिए यह अवसर है कि कम से कम नुकसान के साथ हम कितनी जल्दी हमारी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाते हैं । 2008 में जब पूरा विश्व आर्थिक मन्दी का रोना रो रहा था तब हमें पता नहीं चला कि मन्दी है, लेकिन उस मन्दी में और आने वाली मन्दी में जमीन आसमान का अन्तर है।

आने वाली मन्दी भूख, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ केसाथ अधोसंरचना की चुनौतियां और कोरोना का संक्रमण भी लेकर आ रही हैं। दुनिया भर के अर्थशास्त्री और विषय विशेषज्ञ अपने अनुभवों के आधार पर इससे निपटने की रायशुमारी तो कर रहे हैं, लेकिन जिन कारणों से यह हालात पैदा हुए वह कारण हाशिए पर हैं। आम आदमी के लिए एक अवसर यह भी है कि अपनी जीवन शैली में बदलाव कर मौजूदा हालातों में कैसे संतुष्ट रहे।

मौजूदा संसाधनों के साथ पहला संकल्प हमारा ये हो कि हम आत्म निर्भर बने। हमारे देश में वर्क फोर्स हैं सबसे पहले घरेलू बाजार को इतना मजबूत कर दे कि दूसरों पर हमारी निर्भरता कम हो। हम शुरुआत कर सकते हैं कृषि क्षेत्र से।

हमारी 70 फीदसी आबादी कृषि पर निर्भर है जो मौसम की मार से ही प्रभावित है। समय रहते इसका निदान किया गया तो न केवल किसान बल्कि करोड़ों मजदूरों को काम मिल सकता हैं। लाकडाउन के दौरान पर्यावरण में आए बदलाव को लेकर अलग से कार्ययोजना बन सकती है।

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