Chanakya Niti: ऐसी स्त्री के साथ संभोग न करें – चाणक्य
Chanakya Niti: सभी स्त्रियों (युवती, वृद्धा, स्वस्थ-अस्वस्थ, खूबसूरत-बदसूरत, जाति की, शूद्र जाति की, कम उम्र बाला से सम्भोग करने वाला, आय की उपेक्षा करके अनाप-शनाप खर्च करने वाला, किसी सहयोगी के न होने पर भी लड़ाई झगड़ा करने वाला व्यक्ति असमय ही मृत्यु को प्राप्त होता है।
Chanakya Niti: अभिप्राय यह है कि मनुष्य को अच्छी तरह परीक्षा किये बिना बीमार यौन व्याधि से पीड़ित तो नहीं, कम उम्र तो नहीं, शूद्र जाति की तो नहीं, पर-स्त्री से सम्भोग नहीं करना चाहिए। अपनी आय के अनुसार ही खर्च करना चाहिए, बिना किसी की सहायता लिये झगड़ना नहीं चाहिए।
Chanakya Niti: दुर्जन व्यक्ति के लिए गुण-अवगुण और आयु का कोई मेल नहीं होता। जिस प्रकार इन्द्रायण का फल पक जाने के बाद भी अपनी कडुवाहट को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार आयु बढ़ जाने के पश्चात्, अर्थात्, बुढ़ापा आने के बाद भी दुष्टता कभी उससे छूट ही नहीं पाती। अभिप्राय यह है कि दुष्ट व्यक्ति के प्रौढ हो जाने के बाद उसे बूढ़ा समझकर भी विश्वास नहीं करना चाहिए।
जिस प्रकार से इस संसार में खुदाई करके मनुष्य पृथ्वी के नीचे विद्यमान जल को प्राप्त कर लेता है, ठीक उसी प्रकार अपने गुरू की निःस्वार्थ सेवा करने वाला शिष्य भी गुरू के हृदय में स्थित विद्या को प्राप्त कर लेता है।
अभिप्राय है कि सच्चे मन से पुरूषार्थ करने पर हर व्यक्ति सम्भव फल की प्राप्ति कर सकता है।
बसन्तऋतु में फलने वाली आम्रजरी के स्वाद से प्राणीमात्र को पुलकित करने वाली कोयल की वाणी जब तक मधुर और कर्णप्रिय नहीं हो जाती, तब तक वह मौन रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करती है।
कहने का अभिप्रायः यह है कि हर मनुष्य को किसी भी कार्य को करने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अन्यथा असफल होने का भय बना रहता है।
इस संसार में कुछ प्राणियों के किसी विशेष अंगों में विष होता है, जैसे सर्प के दांतों में, मक्खी के मस्तिष्क में और बिच्छू की पूंछ में विष होता है। इन सबसे हटकर दुर्जन एक ऐसा व्यक्ति है जिसके हर अंग में विष भरा रहता है। उसके मन, वचन और कर्म विष में बुझे तीर की तरह हर किसी के हृदय को बेंधकर दुख देते हैं।
अतः बुद्धिमान व्यक्ति को दुर्जन से बचना चाहिए व उसके संग से भी दूर रहने में ही बुद्धिमानी है।