Chanakya Niti Hindi : व्यक्ति की पहचान कैसे करें - चाणक्य

Chanakya Niti Hindi : व्यक्ति की पहचान कैसे करें – चाणक्य

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Chanakya Niti hindi : समय पड़ने पर कौन है जो साथ देता है और सोंपे गये दायित्वों की पूर्ति करता है? आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति के सेवक अपने मालिक के द्वारा सौंपे गये दायित्वों की निष्ठापूर्वक पूर्ति करते हैं, तो वह व्यक्ति समाज में सम्मान पाता है

जिसके भाई-बान्धव बुरी अवस्था में सहयोगी हों अर्थात् संकट-काल में काम आने वाले हों तो उसे फिर कष्ट कैसा? आचार्य चाणक्य का कथन है कि जिस व्यक्ति की पत्नी धन रहित अवस्था में दाम्पत्य निभाती है, उस व्यक्ति का जीवन सार्थक होता है।

Chanakya Niti hindi : मनुष्य को संसार में सहायकों, सेवकों, बन्धु-बान्धवों, परिजनों व मित्रों की आवश्यकता समय-समय पर पड़ती है, तब जिन व्यक्तियों को इनका अभाव रहता है तो उनका जीवन भी मरण के समान ही होता है। वह कहते हैं कि इसके विपरीत इन तत्वों से युक्त व्यक्ति ही सुख भोगता है।

किसी भी व्यक्ति को बन्धु-बान्धव, मित्र व परिजन की यदि पहचान करनी हो तो अपनी विपत्ति काल में करें, क्योंकि किसी व्यक्ति को जब कोई लाइलाज रोग घेरता है, कोई शत्रु आक्रमण करता है या फिर उस पर मुकदमा चलता हो अथवा वह अपने किसी प्रिय को श्मशान ले जाता हो तो ऐसे समय में उसके काम आने वाले ही वास्तव में उसके बन्धु-बान्धव एवं परिजन व मित्र होते हैं।

Chanakya Niti hindi : मनुष्य का जीवन विपत्तियों से भरा हुआ है। ऐसे में जो भी उसके सहयोगी हैं वही उसके अपने हैं। आचार्य चाणक्य का कथन है कि विपदा काल में ही अपने पराये का ज्ञान होता है। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया है कि सुखद अवस्था में तो सभी अपने हो जाते हैं, जबकि वास्तव में अपने तो विपत्ति में ही काम आते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति की अपनी कार्यक्षमता होती है। उसका कार्य करने का लक्ष्य व सामर्थ्य होता है, किन्तु वह यदि इसके विपरीत कार्य करता है तो उसे असफलता का मुंह देखना पड़ता है। अर्थात् व्यक्ति यदि अपने सामर्थ्य से हटकर किसी कार्य में जुटता है तो उसे सफलता मिलना असम्भव हो जाता है। ऐसे में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अपने दायित्वों को उसी रूप में अंगीकृत करना चाहिए जिस रूप में वह कर सकता है। ऐसा न करने पर उसे लज्जित भी होना पड़ सकता है।

आचार्य चाणक्य का कथन है कि सामर्थ्य से बाहर कार्य करने का दावा करने वाला व्यक्ति अन्ततः शेखचिल्ली की उपमा पाता है।

जब से समाज अस्तित्व में आया है तब से ही एक महत्वपूर्ण प्रश्न सदैव से ही प्रभावी रहा है कि कौन विश्वसनीय है और किसका विश्वास करें?

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लम्बे नाखूनों को धारण करने वाले हिंसक पशु, नदियां, स्त्री एवं राजपरिवार सदैव विश्वसनीय नहीं हो सकते क्योंकि इनके स्वभाव परिवर्तनशील होते हैं

आचार्य के कथन को इस रूप में देखें-पालतू जानवर कुत्ता भी कभी-कभी अपना स्वभाव बदलकर कटखना हो जाता है और मालिक को ही कष्ट पहुंचा देता है। फिर वन्य जीवों का जिनकी प्रवृत्ति ही हिंसक है भला कैसे विश्वास किया जा सकता है?

नदी पार करते समय नदी के जल की गहराई व वेग का विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें कभी भी परिवर्तन हो सकता है। स्त्रियों के सम्बन्ध में भी चाणक्य की धारणा कुछ ऐसी ही है। वह कहते हैं कि स्त्री को पूर्णतः विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह कहती कुछ और करती कुछ और है।

https://www.youtube.com/watch?v=Uy2ZfdUaGnc

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