Chanakya Niti: जैसे कर्म मनुष्य करता है वैसे ही फल कर्मानुसार अकेला
Chanakya Niti: वेद के ज्ञान की गहराई न समझकर वेद की निन्दा करने वाले वेद की महानता को कम नहीं कर सकते। शास्त्र निहित आचार-व्यवहार को व्यर्थ बताने वाले अल्पज्ञ लोग शास्त्रों की उपयोगिता को नष्ट नहीं कर सकते।
शान्त, सज्जन व्यक्ति को दुर्बल कहने वाले दुर्जनों का प्रयत्न भी निरर्थक हो जाता है। किसी को झूठी निन्दा (Chanakya Niti) करने से निन्दा करने वाले का अपना ही नाश होता है। अभिप्राय यह है कि वेदों के तत्वज्ञान पर, शास्त्रों के विधान पर और सद्पुरूषों के उत्तम आचारण पर श्रद्धा और सम्मान का भाव रखना चाहिए, इसी से मानव जन्म सार्थक होता है।
काम वासना से सहित व्यक्ति रोग रहित नहीं रह सकता, कामान्धता स्वयं एक रोग है। अधिक मोह भी मनुष्य को कमजोर बना देता है। ममता अच्छा गुण है। मगर मोह उससे अलग है। बुद्धिपूर्वक प्रेम करना अच्छा है। मोह तो अज्ञानतावश होता है।
क्रोध की आग में क्रोधी व्यक्ति ही भस्म होता है। आत्मज्ञान से बढ़कर इस संसार में कोई दूसरा सुख नहीं। (Chanakya Niti) सत्यज्ञान द्वारा ही मनुष्य अज्ञानता द्वारा उत्पन्न दुःखों को दूर करने का उपाय कर सकता है। अतः काम एक असाध्य रोग है, मोह अजेय शत्रु है, क्रोध अग्नि के समान दाहक है तथा आत्मज्ञान परम सुख है।
संगठन में शक्ति निहित है, किन्तु सभी कार्य संगठन से ही पूरे नहीं होते, अपने व्यक्तिगत गुणों का विकास मनुष्य को अपने ही बल पर करना होता है। मनुष्य जन्म भी अकेला ही लेता है और मृत्यु का वरण भी अकेला ही करता है। (Chanakya Niti)
अपने शुभ-अशुभ कर्मों का फल भी स्वयं ही भोगता है। नारकीय कष्टों को भी अपने कर्मफलानुसार अकेला ही भोगता है और मोक्ष की प्राप्ति भी अपने सत्कर्मों के अनुसार अकेला ही पाता है। इन कार्यों में उसके बन्धु-बान्धव व साथी भागीदार नहीं बनते।
यहां आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) ने यह भाव व्यक्त किया है कि जैसे कर्म मनुष्य करता है वैसे ही फल कर्मानुसार अकेला प्राप्त करता है। अतः सत्कर्म ही करना हितकर है।