chanakya neeti: मानव स्वार्थ पूर्ति के लिए मनमाना व्यवहार नहीं…
chanakya neeti: मर्यादा पालन के लिए सागर आदर्श माना जाता है। वर्षाकाल में उफनती असंख्य नदियों को अपने में समेटते हुए भी सागर अपनी सीमा का अतिक्रमण नहीं करता, परन्तु प्रलय आने पर सागर का जल तटबन्धों को तोड़कर समस्त धरती को जलमग्न कर देता है।
इससे यह सिद्ध होता है कि सागर भी प्रलयकाल में अपनी मर्यादा (chanakya neeti) में नहीं रह पाता, परन्तु सद्पुरूष सागर से भी महान् होते हैं। जो प्राणों का संकट या भयंकर विपत्ति के समय भी अपनी सज्जनता (मर्यादा) का त्याग नहीं करते, स्वार्थ पूर्ति के लिए मनमाना व्यवहार नहीं करते।
इसीलिए सद्पुरूष (साधु) समुद्र से भी अधिक विशाल हृदय व गम्भीर होने के कारण महान् कहे जाते हैं। मन्दबुद्धि (मूख) व्यक्ति दो पैरों वाला होते हुए भी वास्तविक जीवन में पशु समान है। जिस तरह से पशु बुद्धिहीन होता है अर्थात् उसे उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं होता, उसी तरह मूर्ख को भी करने-कहने योग्य उचित बात का ज्ञान नहीं होता।
उदाहरणार्थ जिस तरह पैर के अन्दर धंसा कांटा दिखायी न देने पर भी पीड़ा पहुंचाता रहता है। उसी तरह मूर्ख व्यक्ति (chanakya neeti) भी अपनी गन्दी आदतों से सम्पर्क में आने वाले लोगों को दु:खी और परेशान ही करता है। इसलिए किसी भी मन्दबुद्धि का साथ न करके उसका परित्याग करना ही अच्छा है।
प्रत्येक अच्छी-बुरी वस्तु अपनी सीमा में ही शोभा देती है। जहां अति हो जाती है, वहां उसे दुर्गति का शिकार होना पड़ता है। आचार्य चाणक्य का कथन है कि अति का तो सभी स्थानों पर परित्याग कर देना चाहिए। अच्छी बातें, अच्छे गुण भी विपत्ति का कारण बन जाते हैं, यदि उनमें अति हो जाये।
अत्यधिक दानशीलता के कारण राजा बलि को बन्ध में बन्धना पड़ा और अत्यधिक अहंकार के कारण ही रावण का वध हुआ। अभिप्राय यह है कि किसी भी कार्य या वस्तु में अत्याधिकता न करें। अन्यथा हानि उठानी पड़ सकती है। (chanakya neeti)