BJP’s defeat : बीजेपी की हार से सांसत में नेता…
भिलाई/नवप्रदेश। BJP’s defeat : भिलाई नगर निगम के चुनाव में बुरी तरह से पराजित होने के बाद अब भाजपा में छटपटाहट मची हुई है और उसके नेता अपनी जमीन बचाने के चक्कर में प्रशासन पर धांधली करने और अवैध रूप से चुनाव जीतने के आरोप लगा रहे है जबकि उन्हे स्वयं भी मालूम है कि यह पराजय पार्टी के नेताओं की गुटबाजी और एक दूसरे को नीचा दिखाने की कवायद के चलते हुई है और उन्हे यह भी पता है कि संवैधानिक रूप से एक बार किसी चुनाव का परिणाम घोषित हो जाने के बाद उसे सिर्फ न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती है। प्रशासन पर दोष लगाकर जनता की सहानुभूति लेने का प्रयास कर रहे भारतीय जनता पार्टी के नेता दरअसल खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचें की कहावत को चरितार्थ कर रहे है।
भिलाई नगर निगम के चुनाव काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे थे और उसमें कांग्रेस ने अब तक हुए पांचों चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करते हुए न केवल पूर्ण बहुमत हासिल किया वरण भारतीय जनता पार्टी को उसके महत्वपूर्ण गढ़ों में भी पराजित किया। यही खिसियाहट अब प्रशासन पर उतर रही है। सांसद विजय बघेल भिलाई में जिस वार्ड मे रहते है वहां के दो कांग्रेसी प्रत्याशियों नीरज पाल और एकांश बंछोर ने एक तरफ ा जीत हासिल की और दोनों की लीड का अंतर लगभग 3000 वोट है।
इसी तरह पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय के पैतृक वार्ड और वर्तमान निवास के वार्ड में भी भारतीय जनता पार्टी को हार (BJP’s defeat) का सामना करना पड़ा है। राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डेय के वार्ड में तो एक निर्दलीय ने ही जीत हासिल कर ली है। इसी तरह जिले के एकमात्र भाजपा विधायक विद्यारतन भसीन के क्षेत्र में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है।
अपने वार्डो में ही अपना प्रभाव न दिखा पाने वाले ये नेता अब जनता के सामने बयानबाजी कर अपनी चमड़ी बचा रहे है। ठ्ठ शेष पृष्ठ 6 पर
काफी वर्षा से राजनीति कर रहे देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल ये प्रतिनिधि मतगणना स्थल पर अपने प्रत्याशियों को संबल देने के लिए उपस्थित नहीं थे और वहां जब इनके अनुभवों की जरूरत थी तक प्र्रत्याशियों को दिशा निर्देश देने वाला कोई नहीं था।
इसी वजह से छोटे अंतरों से हुई जीत हार (BJP’s defeat) में यदि कोई गड़बड़ी भी हुई हो तो उसके लिए संवैधानिक आपत्ति उसी समय वहीं पर दर्ज कराई जाती है और परिणाम घोषित होने से रोका जाता है। एक बार परिणाम घोषित हो जाने के बाद निर्वाचन के प्रमाण पत्र को रद्द करने का अधिकार सिर्फ न्यायालय के पास है।
उसके बाद जिला कार्यालय में धरना देना और अखबारी बयानबाजी करना राजनीति है। नगर निगम के परिणामों ने भाजपा की पूरी जमीन खिसका दी है और यही भय अब नेताओं को साल रहा है। आने वाले दो वर्षो में विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनाव होने है ऐसे में अपने खोते हुए जनाधार से ये विचलित है।