पटवारियों ने ऑनलाइन कार्य नहीं करने का लिया निर्णय

पटवारियों ने ऑनलाइन कार्य नहीं करने का लिया निर्णय

डिजीटल सिग्नेचर का विवाद मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री समेत संबंधितों को किया सूचित
नवप्रदेश संवाददाता
बिलासपुर। आनलाइन साफ्टवेयर भुईयां के संचालन को लेकर पटवारियों और राज्य शासन के बीच उहापोह की स्थिति है। पटवारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी वर्मा ने इसी मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री, मुख्य सचिव, राजस्व सचिव तथा संचालक के नाम ज्ञापन सौंपकर स्पष्ट रुप से कह दिया है कि जब तक पटवारियों को पर्याप्त संसाधन कम्प्यूटर, इंटरनेट आदि के साथ साफ्टवेयर में पुराने वर्सन में ही रिकार्ड अद्यतन से संबंधित सारे विकल्प नहीं दिया जाता तब तक पटवारियों द्वारा डिजीटल सिग्नेचर का टोकन जमा कर आनलाइन कार्य नहीं करने का निर्णय लिया गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के समस्त पटवारियों ने अपने-अपने तहसील के तहसीलदार के पास अपना ऑनलाइन डिजिटल सिग्नेचर यूएसबी किट को जमा कर दिया है और जब तक नये भुईयां सॉफ्टवेयर में संचालक भू-अभिलेख रमेश शर्मा के द्वारा संकलन संशोधन विलोपन का विकल्प चालू नहीं कर दिया जाता है तब बिना हड़ताल में गए ऑनलाइन काम को बन्द किया गया है। यह लड़ाई वास्तव में संचालक भू-अभिलेख रमेश शर्मा और प्रदेश भर के पटवारियों की लड़ाई है।
पटवारियों का कहना है कि हम किसानों के हित में ही रमेश शर्मा से लड़ रहे हैं। भू-अभिलेख को ऑनलाइन करने का पटवारी कभी विरोधी नहीं रहा है बल्कि सॉफ्टवेयर के सरलीकरण की मांग है जिसे आसानी से ऑपरेट किया जा सके। पटवारियों का कहना है कि संचालन भू-अभिलेख रमेश शर्मा यह मान रहे हैं कि प्रदेश के पूरे 4000 पटवारी कंप्यूटर इंजीनयर हैं और प्रदेश के दूर दराज इलाके में इंटरनेट हाई स्पीड चलता है और कवरेज बढिय़ा है, जबकि ऐसा नहीं है। पटवारी केवल दसवीं बारहवीं पास है और आज भी ग्रामीण इलाकों, कस्बों में इंटरनेट की स्पीड और उपलब्धता बहुत जटिल है। ऐसे में भुईयां का यह सॉफ्टवेयर और बहुत जटिल बना दिया गया है। दबी जुबान से प्रदेश में जिलों के इन आई सी के प्रोग्रामर और राजस्व अधिकारी सभी मान रहे है कि इस सॉफ्टवेयर में अत्यधिक त्रुटि हैं और भूमि के संवेदनशील रिकॉर्ड को यह सॉफ्टवेयर और वेबसाइट सुरक्षित नहीं रख पायेगा। अगर कभी किसी हैकर ने इस साइट को हैक कर लिया तो जमीन का पूरा रिकॉर्ड डिलीट हो सकता है जिसका खमियाजा अंतत: किसानों को ही भुगतना है।
मैनुअल अभिलेख सुरक्षित
पटवारियों का कहना है जितना सुरक्षित मैन्युअल अभिलेख था उतना ऑनलाइन नहीं है। उपर से पटवारी का पासवर्ड ऊपर एन आई सी के कई स्तर के प्रोग्रामर के पास है। यदि कभी किसी रिकॉर्ड में कोई ऑनलाइन कूट रचना हो गयी तो जिम्मेदार कौन रहेगा।
सर्वर प्रॉब्लम
पटवारियों का कहना है कि इसके अतिरिक्त अभी सर्वर इतना धीमा है की एक अभिलेख दुरस्ती या डिजिटल सिग्नेचर करने में घंटों लग जाते हैं, जिससे किसान बेवजह परेशान होता है। किसानों के रिकॉर्ड को पटवारी चाहकर भी ऑनलाइन सॉफ्टवेयर के त्रुटि के कारण सुधार नहीं पा रहे हैं।
यहाँ पर यह उल्लेखनीय है की इन्ही संचालक भू-अभिलेख रमेश शर्मा ने भाजपा की सरकार के समय रजिस्ट्री और नामातंरण के लिए नक्शा बटांकन को अनिवार्य करने का तुगलकी आदेश पारित किया था जिसके कारण प्रदेश में हजारों रजिस्ट्रियां और नामातंरण रुक गए थे जिसे कांग्रेस की सरकार आते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबसे पहले हटवाया था। इस नियम को उच्च न्यायालय ने भी सिरे से खारिज कर दिया था। इस नियम के कारण भाजपा से प्रदेश के किसान बहुत नाराज हुए थे और यही गलती कांग्रेस सरकार भी करने जा रही है। छोटे-छोटे आम किसानों को भूमि संबंधी छोटे-मोटे कामों के लिए सॉफ्टवेयर और प्रक्रिया को सरल करने के बजाय सरकार और जटिल कर रही है। इन नियमों से पटवारियों से ज्यादा आम किसान परेशान हो रहे हैं। एक छोटे से बी-वन खसरा को निकालने एवम सुधरवाने के लिए इनको तहसील से पटवारी ऑफिस का चक्कर रोज काटना पड़ रहा है, और पटवारी ऑनलाइन प्रॉब्लम है बोलकर पल्ला झाड़ ले रहा है। संचालक रमेश शर्मा ने इस नये सॉफ्टवेयर को बिना तैयारी के मैदान में उतार दिया न तो उन्होंने इसका किसी को ट्रेनिंग दिया और न संशाधन उपलब्ध करवाया। जानकारी के अनुसार 30 अप्रैल 2019 को सॉफ्टवेयर को लांच करने के बाद प्रदेश में पटवारियों को ट्रेनिंग देने की तैयारी की जा रही है। पटवारियों का मानना है कि इसी काम को लांच करने के पहले करना था। खैर अब देखना यह है की पटवारियो और रमेश शर्मा में कौन पहले मानते है परंतु विडम्बना यह है कि इन दोनो के बीच आम किसान परेशान हो रहे है उनका क्या होगा। शासन प्रशासन को शीघ्र ही हस्तक्षेप करना होगा ताकि इनके बीच में आम किसान बेवजह परेशान न हो।

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