Akti Tihar : छत्तीसगढ़ का लोक संस्कार अक्ती तिहार

Akti Tihar : छत्तीसगढ़ का लोक संस्कार अक्ती तिहार

Akti Tihar : Folk Sanskar of Chhattisgarh Akti Tihar

Akti Tihar

उत्कर्ष कुमार सोनबोइर। Akti Tihar : छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति, छत्तीसगढ़ की सौंधी माटी की खुशबु, अरपा इंद्रावती महानदी की कल कल अविरल प्रवाहित नदियाँ, पंडवानी की तंबूरे की झंकार, पंथी गीतों में सत का ज्ञान, चित्रकोट की झर झर बहती जलप्रपात, भिलाई की विलास पानी, सरई सगौन से आच्छादित वन, कर्मा ददरिया में झूमते लोग छत्तीसगढ़ की अनुपम पहचान पुरे ब्रम्हांड में है।

अक्ति तिहार (Akti Tihar) छत्तीसगढ़ की लोक त्यौहार में से एक है, अक्ति तिहार को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, अक्षय अर्थात अजर अमर (कभी खत्म ना होने वाला) पवित्र यह एक ऐसा शुभ दिन होता है उस दिन हर कार्य पूर्ण और सफल होता है। बैशाख मास शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाने वाला यह पर्व अपने आप में अनुपम और पवित्र है।

चुकि भारत कृषि प्रधान देश है, कृषि जीवनस्य अधारम और कृषि ही जीवन का आधार भी, कृषि जन जीवन पर ही इंगित छत्तीसगढ़ की तीज त्यौहार रहती है चाहे वो तीजा पोरा हो या हरेली। अक्ति तिहार छत्तीसगढ़ का कृषि नववर्ष है, इस दिन से ही कृषि के नये कार्य आरंभ होते है अपितु अक्षय तृतीया के दिन हर कार्य सफल होने के कारण भी छत्तीसगढ़ का नववर्ष भी माना गया है, धुप दीप से खेत खलिहानो की मातृवंदना करते बीज बोहनी भी करते है। छत्तीसगढ़ महतारी की आशीर्वाद मांगते जन लोक आगामी नूतन वर्ष की अच्छी फसलों की कामना भी करते।

लोक मान्यताएं के अनुसार ग्राम देवी, ठाकुर देव, साहड़ा देवता जिन्हें ग्राम रक्षक भी कहा गया है, देवी शीतला की उपासना वे कोतवालों के हांका पारने के बाद ही वे मंदरो में जाकर तेल हल्दी और महुआ या पलाश के पत्तो से बने दौना में धान भी चढ़ाते, उन्ही के गाँव का एक पूजा और धार्मिक अनुष्ठान करने वाला भी होता जिन्हें वे बैगा कहते, बैगा द्वारा दी गई धान के कुछ अंश को अनाज भंडार घर में भी रखते। इसी पर्व में छत्तीसगढ़ का लोक संस्कार बिहाव भी होता, बच्चे तो इस दिन पुतरी पुतरा के बिहाव अर्थात शादी भी करते, उन्ही बच्चों की टोलियों में एक दल वर पक्ष होता और एक कन्या पक्ष दोनों दल में प्रतियोगियों की तरह ही उत्साह होता।

वे चुलमाटी लेने जाते तो छत्तीसगढ़ी बिहाव गीत भी गाते तोला माटी खोदे ल नइ आवे मीर धीरे धीरे , चुलमाटी- तेलमाटी बिहाव करने से पहले छत्तीसगढ़ के जन लोक माटी की पूजा वंदना करते आखिर जिस धरती पर जन्म लिए उसकी सदा जय होनी ही चाहिए। तेल हल्दी चढ़ते ही चेहरा और शरीर का अंग और भी निखर जाता और शांत मन भी प्रफुलित हो उठता। बच्चों की टोली तो अक्ति तिहार मानाने में मग्न रहती ही पर बड़ो भी दृश्य देख अपने आप को रोक नही पाते वे भी इस लोक खेल में शामिल हो जाते।

एक महिला गा उठती है सरई सगाउन के दाई मड़वा छवाई ले चुकी सरई और सगौन की लकड़ी से बनी साज सज्जाएं की वस्तु जल्दी टूटती नही उसमें दीमक भी नही लगथे, शायद छत्तीसगढ़ के जन लोक यही आशय लेकर गीत गाते है उनकी रिश्ते हमेशा मजबूत रहे, उनके रिश्तो में कभी दीमक रूपी खट्टास न आये। ऐसी अद्धभुत विचार और अविश्वसनीय संस्कृति छत्तीसगढ़ की ही हो सकती है। जब बारात प्रस्थान की बात आती है तो बच्चों की ख़ुशी और भी दुगुनी हो जाती है आखिर वे गढ़वा बाजा की ताल में और गुदुम की थाप में थिरकने वाले होते है, वे नाचते गाते गांव भ्रमण कर कन्या के घर पहुँचथे। यह दृश्य देख कर सच्ची बिहाव जैसी अनुभूति होती।

चुकि यह लोक खेल बच्चों का है, यह बिहाव शाम तक ही सम्पूर्ण होती पूरी नेंग झोंग के साथ बिहाव संपन्न करते फिर बारी टिकान की आती, आशीर्वाद समारोह को छत्तीसगढ़ में टिकान कहते जिसमें बिहाव में शामिल हुए सभी व्यक्ति दो बीज चावल की तिलक लगाकर दान भी करते, नन्ही नन्ही बच्ची गाते चना खाये बर पैसा देदे वो का वो मोरो दाई चटर चटर चुमा ले ले वो इस टिकान में आये पैसे से वे बच्चे टॉफी , चना मुर्रा ले कर सभी लोग बांट कर खाते।

जब घड़ी उस नन्हीं पुतरी को बिदाई देने (Akti Tihar) की बात आती तो वे बच्चियाँ बिलख सी उठते, आज के चंदा निरे निरे मोर दाई मैं काली जाउ बड़ दुरे, अपन दाई के रामदुलउरिन, मोर दाई तै छीन बर कोरा म लेले ये गीत को सुनते ही आखिऱ वो पत्थर दिल ही होगा जिनके आँखों में आँशु ना हो, बड़े भी अपनी या अपनी बेटी की बिहाव को याद करते वे भी भावुक हो उठते।

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