Strong Opposition : लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी
Strong Opposition : लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना निहायत जरूरी होता है। यदि विपक्ष कमजोर रहा तो सत्ताधारी पार्टी निरंकुश हो जाती है और तानाशाही करने से बाज नहीं आती। भारत में हमेशा विपक्ष मजबूत रहा है ऐसा नहीं है। कई बार चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें वहां सत्तारूढ़ दल बेहद मजबूत स्थित में रहा है और विपक्ष बहुत ही कमजोर। नतीजतन सत्तारूढ़ पार्टी अपनी मनमर्जी करती रही है और विपक्ष संख्या बल में कम होने के कारण उसपर अंकुश लगाने में विफल रहा है। वर्तमान में केन्द्र सरकार में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को भारी बहुमत प्राप्त है जबकि प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस की स्थिति यह है कि उसे विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त करने लायक सीटें भी नहीं मिल पाई है।
अन्य विपक्षी पार्टियों की स्थिति तो और भी दयनीय है। ये सभी विपक्षी पार्टियों भी आपस में एकजूट नहीं हो पाती है। नतीजतन केन्द्र सरकार अपनी मनमर्जी करने के लिए स्वतंत्र है। कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टी है जिसे सबसे ज्यादा समय तक देश में सरकार चलाने का अनुभव है। लोकतंत्र के हित में यह आवश्यक है कि कांग्रेस पार्टी मजबूत रहे लेकिन कांग्रेस पार्टी (Strong Opposition) इस समय संक्रमण काल से गुजर रही है। जिसकी वजह से उसे चुनाव दर चुनाव पराजय का सामना करना पड़ रहा है। एक समय था जब देश के अधिकांश राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार हुआ करती थी लेकिन अब सिर्फ दो राज्यों में ही उसकी सरकार बची हुई है।
एक राज्य में वह सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। कांग्रेस पार्टी ही मजबूत विपक्ष की भूमिका निभा सकती है लेकिन इसके लिए उसे खुद भी मजबूत बनना पड़ेगा। बहरहाल यह संतोष का विषय है कि कांग्रेस पार्टी के हाईकमान ने अब कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाने के लिए गंभीरता पूर्वक विचार करना शुरू किया है। इसके लिए चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवाएं ली जा रही है। प्रशांत किशोर ने पार्टी आलाकमान को आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महत्वपूर्ण सुझाव दिए है। जिसके अनुसार पार्टी को देशभर में क्षेत्रिय पार्टियों के साथ गठबंधन कर के चुनाव लडऩे का फार्मूला सुझाया गया है।
जिन राज्यों में कांग्रेस की स्थिति बेहतर है वहां कांग्रेस अकेले अपने बलबूते पर चुनाव लड़ेगी और जिन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत स्थिति में है वहां कांग्रेस उन दलों के साथ गठबंधन कर के चुनाव समर में उतरेगी। निश्चित रूप से यह फार्मूला कारगर साबित हो सकता है। कांग्रेस पार्टी के कर्णधारो को यह बात समझ लेनी चाहिए कि कंाग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा है और अब वह एकला चलो रे की नीति पर चलकर नुकसान ही उठाएगी।
बंगाल और उत्तरप्रदेश इसके ज्वलंत उदाहरण है। बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Strong Opposition) में उसे मुश्किल से दो सीटें ही नसीब हुई। अधिकांश सीटों पर तो कंाग्रेस प्रत्याशियों की जमानत ही जप्त हो गई। इन पराजयों से सबक लेकर कांग्रेस ने अब नई रणनीति बनाने का फैसला किया है और प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकार को काम पर लगाया है। इसके सार्थक परिणाम सामने आने की उम्मीद की जानी चाहिए।