Defector Leader : दलबदलुओं को जनता खारिज करें
विष्णु गुप्त। Defector Leader : रामबिलास पासवान भाजपा को भारत जलाओ पार्टी कहते थे और उन्होंने दंगाई और सांप्रदायिक कहकर भाजपा के साथ गठबंधन को तोड़ कर अलग हो गये थे। फिर वे कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव के साथ गठबंधन में रहें। 2009 के लोकसभा चुनाव में बिहार के हाजीपुर सीट से उनकी हार हुई और इसी के साथ रामबिलास पासवान राजनीतिक तौर पर हाशिये पर पहुंच गये और उनकी राजनीति लगभग जमींदोज हो गयी थी। पर राजनीति में मौसम विज्ञानी के तौर पर विख्यात रामबिलास पासवान ने फिर एक बार पैंतरेबाजी दिखायी और जिस नरेन्द्र मोदी को दंगाई व सांप्रदायिक कह कर भाजपा छोड़ी थी उसी भाजपा के साथ 2014 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर लिया।
उस समय भाजपा के एक बड़े नेता अपनी पार्टी के घोषित प्रधानमंत्री उम्मीदवार की जगह खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, इसीलिए उन्हें सेक्युलर नेताओं की खोज थी जो बहूमत नहीं होने की स्थिति में प्रधानमंत्री पद पर उनके नाम का समर्थन कर सकें। हालांकि ऐसी स्थिति आयी नहीं और 2014 में नरेन्द्र मोदी को पूर्ण बहूमत मिल गया। पर रामबिलास पासवान की राजनीति एक बार फिर चमक गयी और अपने मृत्यु पर्यंत मोदी सरकार में मंत्री पद भोगते रहे और साथ ही साथ अपने बेटे तथा अपने परिवार के अन्य लोगों को भी राजनीति में स्थापित कर गये।
रामबिलास पासवान हों या फिर अभी-अभी भाजपा छोड़ कर सुर्खियां बटोरने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या, सभी राजनीतिक अवसर को पकडऩा जानते हैं, सत्ता के साथ-साथ रहना और साथ-साथ चलना इन्हें आता हैं। जब तक ये सत्ता में रहेंगे तब तक ये चुपचाप सत्ता सुख भोगते रहेंगे, उन्हें इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती हैं, उफान और क्रांतिकारी बोल से इन्हें परहेज नहीं रहता है। स्वामी प्रसाद मौर्या की राजनीति का भी एक अवलोकन कर लीजिये। सबसे पहले इनकी शुरूआत लोकदल से होती है।
मायावती की पार्टी का दामन थामने के लिए स्वामी प्रसाद मौर्या चरणवंदना करने से परहेज नहीं करते। मायावती की सरकार में मंत्री बनते हैं और मायावती की पार्टी में बडी जिम्मेदारी का सुख भोगते हैं। जब वे देखते हैं कि मायावती की पार्टी कमजोर पड़ गयी तो फिर वे मायावती के विरोधी हो जाते हैं और भाजपा में चले आते हैं। भाजपा में चार साल और ग्यारह महीने सत्ता भोगते हैं। इस दौरान भाजपा उन्हें बूरी नहीं लगी, पिछड़ा विरोधी नहीं लगी। पर बेटे को विधायक का टिकट नही मिलने पर भाजपा के खिलाफ जमकर बुराइयां निकाली और भाजपा को मिटाने की कस्में भी खायी।
जानना यह जरूरी है कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने अपनी बेटी को भाजपा से सांसद बनवाया फिर बेटे को भी विधायक का टिकट दिलवाया था। पर मोदी लहर में भी उसका बेटा चुनाव हार गया था। इस बार भाजपा ने उनके बेटे को टिकट देने से मना कर दिया तो फिर स्वामी प्रसाद मौर्या के लिए भाजपा खट्टे अंगूर हो गयी।
दलबदलुओं पर भाजपा के पूर्व सर्वमान्य नेता स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की एक बडी मजेदार टिप्पणी है। मैंने एक बार अटल बिहारी वाजपेयी से पूछ दिया था कि भाजपा में दलबलुओंं की संख्या बढ़ रही है, इससे भाजपा के स्वच्छ चरित्र पर दाग लगने की आशंका है। उन्होंने मुझे गौर से देखा और कुछ देर चुपचाप हो गये। कुछ देर बाद बोले तुमनें बाढ़ देखी है? मैंने कहा कि गांव का आदमी हूं बाढ़ तो देखी है। फिर उन्होंने कहा कि बाढ़ में सिर्फ पानी ही नहीं होता है, बाढ़ के साथ साथ गाद भी होती है, पेड़ों की पतियां भी होती हैं, लकडियां भी होती है, जानवर भी होते हैं और सांप जैसे खूंखार जीव भी होते हैं। बाढ़ के पानी की तरह ही राजनीति है। जिस राजनीति का उफान होता है उस राजनीतिक पार्टी के साथ तमाम तरह के लोग सत्ता सुख भोगने के लिए जुड़ते हैं।
भाजपा का उफान है, भाजपा सत्ता की दावेदार हैं, इसलिए सभी प्रकार के लोग भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की बात बहुत ही सही थी। मोदी युग के आगमन के साथ ही साथ भाजपा में दलबलुओं की भीड़ लग गयी। भाजपा के लोकसभा सदस्यों में एक तिहाई ऐसे सांसद हैं जिन्होंने अपनी ईमानदारी बदली, अपनी नैतिकता, अपने विचार और अपनी प्रतिबद्धता बदल कर भाजपा में शामिल हो गये। इसी तरह उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल में ऐसे कई दर्जन विधायक थे जो अपने विचार बदल कर आये थे।
भाजपा छोडऩे वाले अधिकतर विधायक दूसरे दल से आये थे। ये तो सिर्फै अच्छे दिन के साथी होते हैं और बूरे दिन शुरू होने की संभावना को देखते हुए पार्टी और विचार बदल लेते हैं। राजनीतिक पार्टियां सत्ता में आने के लिए दलबलुओं (Defector Leader) को शामिल तो जरूर कर लेती हैं पर इसका खामियाजा भी भुगतती हैं। दलबदलू जिस पार्टी के साथ होते हैं उसी पार्टी के विचारधारा को दीमक की तरह चाट जाते हैं,उसके सत्ता कार्यक्रम की योजनाओं को लूट का शिकार बना डालते हैं। जनता सुलभ योजनाओ को भ्रष्टाचार का शिकार बना डालते हैं।
इस कारण दलबदलुओं की घुसपैठ वाली राजनीतिक पार्टियां को अपनी जनता के बीच कोई अच्छी तस्वर बनाये रखने में कठिनाई उत्पन्न होती है। यही कारण है कि भाजपा ने चुनाव से पहले अपने आप को स्वच्छ बनाये रखने के लिए जिनकों पुन: टिकट नहीं देगी, ऐसा संकेत दिया था। स्वभाविक है कि ऐसे भ्रष्ट और निक्कमे लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं।
राजनीतिक पार्टियां दलबलुओं को सिर आंखों पर बैठाने के लिए दोषी तो हैं पर जनता भी कम दोषी नहीं हैं। जनता भी दलबदलुओं को सिर आंखों पर बैठा लेती है। उदाहरण के लिए यशंवत सिन्हा का नाम यहां लिया जाता था। यशंवत सिन्हा की झारखंड के हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में जमानत जब्त होती थी। चन्द्रशेखर को छोड़ कर भाजपा में आये और हजारीबाग लोकसभा से लगातार जीते।
स्वार्थ की पूर्ति न होने पर यशवंत सिन्हा ने बाद मे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कैसी भाषा का प्रयोग कर परेशानी खड़ी करने की कोशिश और नरेन्द्र मोदी को धूल चटाने की कसमें खायी थी, यह भी उल्लेखनीय है। जब जनता यशवंत सिन्हा, रामबिलास पासवान, स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे दलबलुओं को सिर आंखो पर बैठायेगी और चुनाव जीतायेगी तो फिर ऐसे दलबलुओं को सबक कौन देगा? अगर जनता दलबदलुओ (Defector Leader) को हराना शुरू कर दें तो फिर राजनीतिक पार्टियां दलबलुओ के लिए चारागाह नहीं बनेंगी।