चेक में हस्ताक्षर से साबित होती है देनदारी: हाईकोर्ट
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने कहा है कि चेक में हस्ताक्षर से साबित होता है कि जारीकर्ता ने देनदारी स्वीकार की है। इस आधार पर कोर्ट ने सजा के खिलाफ अपील को खारिज किया है। अपीलकर्ता मदन तिवारी राजनांदगांव जिले के डोंगरगांव में हेल्थ वेल्फेयर फाउंडेशन नाम से संस्था संचालित कर रहा है। उसने ग्राम भदरा गुरुर निवासी यशवंत कुमार साहू समेत 21 को संस्था में नियुक्त किया था। अनुबंध के अनुसार सभी से संस्था के नाम रक्षाधन जमा कराया गया। शर्त रखी गई कि एक वर्ष की परिवीक्षा अवधि होगी। इस दौरान काम संतोषजनक होने पर विनियोजित किया गया जाएगा अन्यथा रक्षाधन लौटाया जाएगा। परिवीक्षा अवधि पूरी होने के बाद उन्हें विनियोजित नहीं किया गया। इस पर यशवंत कुमार साहू समेत अन्य ने जमा रक्षाधन वापस लौटाने की मांग की। इस पर अपीलार्थी ने 20 मार्च 2004 को यशवंत कुमार के नाम तीन लाख सोलह हजार रुपये का चेक दिया। खाता में राशि नहीं होने पर चेक बाउंस हो गया। इस पर यशवंत ने सिविल न्यायालय में धारा 138 के तहत परिवाद पेश किया। सिविल न्यायालय ने चेक बाउंस के मामले में मदन तिवारी को दो वर्ष कैद और पांच हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई। सत्र न्यायालय ने भी सिविल न्यायालय के आदेश को यथावत रखा। इसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की। इसमें कहा गया कि उसने आवेदक यशवंत कुमार साहू समेत अन्य से कोई कर्ज नहीं लिया है। ऋण लेना साबित नहीं होने के कारण निचली अदालत का आदेश गलत है। अपील पर जस्टिस रजनी दुबे के कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अपीलकर्ता द्वारा चेक में हस्ताक्षर करना उसकी देनदारी को स्वीकार करना साबित करता है। इसके अलावा उसने धारा 139 निगोशिएबल की प्रतिपूर्ति को अस्वीकार नहीं किया है। चेक में हस्ताक्षर केवल ऋण के लिए नहीं बल्कि देयता के लिए भी आपराधिक कृत्य में आता है। कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत के आदेश को यथावत रखा है।