POCSO Act Judgment High Court : पाक्सो एक्ट मामले में आरोपित बरी क्यों, हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर जताई नाराजगी

POCSO Act Judgment High Court

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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा है कि जब किसी मामले में (POCSO Act Judgment High Court) परिस्थितिजन्य साक्ष्य और चिकित्सकीय प्रमाण दोनों मौजूद हों, तो दुष्कर्म के आरोप में अभियुक्त को बरी करना बड़ी कानूनी भूल है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बी.डी. गुरु की बेंच ने बिलासपुर में सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई और कहा कि यह न्यायिक दृष्टि से अस्वीकार्य है।

डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में लिखा कि ऐसे मामले में, जहां पीड़िता के साथ यौन उत्पीड़न कर हत्या की गई हो, ट्रायल कोर्ट को केवल हत्या के आरोप में दोषी ठहराने तक सीमित नहीं रहना चाहिए था। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने विचारण न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ अपील क्यों नहीं की, यह अपने आप में (Legal Lapse Chhattisgarh Case) आश्चर्यजनक है।

हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार की अपील ना करने के बाद भी चिकित्सकीय साक्ष्य और बच्चे के खिलाफ किए गए अपराध की गंभीरता कम नहीं होती। रिकार्ड पर मौजूद सामग्री से यह सिद्ध होता है कि पीड़िता का अपहरण किया गया, उसके साथ बर्बर यौन उत्पीड़न हुआ और बाद में उसकी हत्या कर दी गई।

क्या है मामला (POCSO Case Janjgir-Champa)

जांजगीर-चांपा जिले के जैजैपुर थाना क्षेत्र के निवासी की 12 वर्ष 7 माह उम्र की नवमी कक्षा में पढ़ने वाली बेटी 28 फरवरी 2022 की रात अपनी मां के साथ सोई थी। देर रात जब मां की नींद खुली तो बेटी गायब थी। पिता ने अगले दिन रिपोर्ट दर्ज कराई कि अज्ञात व्यक्ति ने उसकी बेटी का अपहरण कर लिया है। तीन मार्च को लड़की का शव गांव के तालाब में मिला। मामले में पुलिस ने आरोपित (Janjgir Champa Crime Case) जवाहर को गिरफ्तार कर जेल भेजा। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को हत्या और सबूत मिटाने (धारा 302 और 201) के तहत आजीवन कारावास और पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा दी, लेकिन पाक्सो एक्ट के तहत बरी कर दिया।

POCSO Act Judgment High Court हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी

डिवीजन बेंच ने कहा कि जब मेडिकल रिपोर्ट और परिस्थितिजन्य साक्ष्य दुष्कर्म की पुष्टि करते हैं, तो ट्रायल कोर्ट को इसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए था। न्यायालय ने कहा कि “पीड़िता के साथ दुष्कर्म कर हत्या करना दोहरे अपराध की श्रेणी में आता है, ऐसे में केवल हत्या की सजा देना न्याय का अपमान है। राज्य सरकार के अधिवक्ता ने बताया कि अभियुक्त ने नाबालिग को कीटनाशक पिलाकर मार डाला और साक्ष्य मिटाने के लिए बोतल को तालाब में फेंक दिया। बाद में सुसाइड नोट बनाकर बच्ची की जेब में रख दिया गया था ताकि अपराध को आत्महत्या का रूप दिया जा सके।

आरोपित की अपील खारिज

ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अभियुक्त ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। डिवीजन बेंच ने कहा कि अभियुक्त का अपराध बर्बर और जघन्य है, और पाक्सो एक्ट में सजा न देना न्याय की गंभीर त्रुटि है। अदालत ने कहा कि नाबालिग की मौत सीधे यौन उत्पीड़न से जुड़ी हुई है, इसलिए यह अपराध हत्या और दुष्कर्म दोनों की श्रेणी में आता है।