संपादकीय: बैलेट पेपर से चुनाव की मांग खारिज
Demand for elections through ballot paper rejected: ईवीएम के बदले बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग को लेकर दायर की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस याचिका पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब आप चुनाव जीत जाते हैं तो ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं होती और जब चुनाव हार जाते हैं तो ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हो जाती है। इसलिए ऐसी मांग स्वीकार नहीं है।
गौरतलब है कि जब भी विपक्षी पार्टियां चुनाव में पराजित होती है तो वे अपनी हार का ठीकरा ईवीएम के सिर पर फोड़ती हैं। और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग उठाने लगती हैं। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की जो करारी हार हुई है। उसे विपक्षी पार्टियां पचा नहीं पा रही हैं।
पहले शरद पवार ने इन चुनावी नतीजों पर सवालिया निशान लगाते हुए ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया। उसके बाद अब शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे भी शरद पवार के सुर में सुर मिलाते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा रहे हैं।
शिवसेना यूबीटी के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य संजय राउत तो महाराष्ट्र की जनता द्वारा दिए गए जनादेश को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं। जिस दिन से महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित हुए हैं। उसी दिन से वे लगातार अपनी पार्टी की हार के लिए ईवीएम को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
अब तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े भी ईवीएम के बदले बैलेट पेपर से चुनाव कराने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं। उनका तो यह भी कहना है कि जिस तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी। उसी तरह की यात्रा बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग को लेकर निकाली जानी चाहिए।
कुल मिलाकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद महाविकास अघाड़ी में शामिल तीनों दलों के नेता ईवीएम पर निशाना साध रहे हैं। इसके पहले भी जब जब चुनाव में विपक्षी पार्टियों को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। तब तब उन्होंने ईवीएम का चरित्र हनन किया था।
उनके ऐसे आरोपों के जवाब में चुनाव आयोग ने इन राजनीतिक दलों को चुनौती दी थी कि वे चुनाव आयोग के दफ्तर में आएं और ईवीएम को हैक करके दिखाएं। लेकिन किसी भी राजनीतिक पार्टी ने चुनाव आयोग की चुनौती को स्वीकार नहीं किया। बाद में ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने भी ईवीएम को क्लीन चिट दे दी थी और यह स्पष्ट कर दिया था कि ईवीएम के साथ किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ संभव ही नहीं है। इसके बाद भी विपक्षी पार्टियां जब भी कोई चुनाव हारती है तो ईवीएम को लेकर विधवा विलाप करना शुरू देती है। अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग को लेकर दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया है। इसी के साथ अब यह बात साफ हो गई है कि बैलेट पेपर से चुनाव नहीं होंगे।
बेहतर होगा कि चुनाव में हारने वाली पार्टियां ईवीएम को लेकर रोना धोना बंद करें और अपनी हार के कारणों की ईमानदारी से समीक्षा करें। इसी याचिका में चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रलोभन परोसने की कोशिशों पर रोक लगाने की भी मांग की गई थी। जिसमें कहा गया था कि मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए पैसे और शराब के साथ ही अन्य वस्तुएं भी बांटी जाती है।
इस पर रोक लगाई जाए। किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के आरोप के सबूत न होने के कारण इस मांग पर भी कोई कार्यवाही करने में असमर्थता जाहिर कर दी। यह तो सर्वविदित तथ्य है कि चुनाव के दौरान पैसे और शराब बांटना आम बात है।
चुनाव के दौरान चुनाव आयोग की जो टीमें हजारों करोड़ रुपए और शराब जब्त करती है वे मतदाताओं को बांटने के लिए होती हैं। चूंकि सभी राजनीतिक पार्टियां इस हमाम में नंगी हैं इसलिए वे ऐसे मामलों की सबूत सहित चुनाव आयोग से शिकायत नहीं करती।
यही वजह है कि मतदाताओं का मनमोहने के लिए खुलेआम इस तरह के भ्रष्ट हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इस बारे में सरकार को ही कड़े कदम उठाने होंगे चुनाव आयोग के तो अधिकार सीमित हैं और सुप्रीम कोर्ट भी बगैर सबूत के इस मामले में कोई निर्णय नहीं दे सकता।
ऐसी स्थिति में चुनाव की निष्पक्षता तय करने की जिम्मेदारी सरकार पर बनती है और वही संसद में कड़क कानून बनाकर चुनाव के दौरान नगद रुपए शराब और अन्य वस्तुएं बांटने पर प्रतिबंध लगा सकती है। और ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ा कानूनी प्रावधान कर सकती है। किन्तु लाख टके का सवाल यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे।