भूपेश सरकार की बेहतरीन पहल की ओर बढ़ा रहा है शिक्षा विभाग
-सरकारी स्कूलों का नख्शा सुधारने पहनाया जा रहा जमलीआमा
-अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलने शिक्षा विभाग तैयार कर रहा है प्रस्ताव
रायपुर/नवप्रदेश। विगत वर्षों (Past years) में सत्ताधारी (Ruling) कोई पार्टी शिक्षा, किसान, गांव की राजनीति किसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) ने नहीं किया था। यहीं कारण है कि बेहतर शिक्षा (education) के नाम पर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के प्राय: सभी निजी स्कूलों में काफी लूट का काम चल रहा है। हालांकि समय-समय पर इन पर लगाम कसने की मांग उठती भी रही है, लेकिन कुछ खास कोई सत्ताधारी नहीं कर पाया।
पहली बार भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) की सरकार ने शिक्षा, किसान व गांव जैसे मुद्दों को गंभीरता से लिया और उन पर कार्य भी किया। इसकी बानगी यह देखने को मिला कि, उन्होंने प्रदेश के सभी जिलों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलने का जो निर्णय लिया है, जिस पर स्कूल शिक्षा विभाग ने प्रस्ताव तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया है।
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इस प्रस्ताव को अमल में लाने के लिए भले ही समय लग सकता है, लेकिन अमल में आने के बाद निश्चित तौर पर प्रदेशभर के लोगों को इसका लाभ मिलेगा। वर्तमान समय में शिक्षा लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। सरकारी स्कूलों में लोग अपने बच्चों को भेजने में हिचकिचाते हैं।
इसके पीछे भी ठोस वजह है, क्योंकि सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता के नाम पर स्कूलों का हाल बहुत बुरा है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को यदि सरकार संचालित करती है, तो जाहिर है कि धनवान परिवार के बच्चे भी इन स्कूलों में दाखिला लेंगे और शिक्षा के नाम पर मची लूट पर विराम लगेगा। इस मामले को जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार शिक्षा विभाग ने प्रस्ताव की तैयारियां शुरू कर दी है।
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इन अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती संविदा आधार पर होगी, जिससे माना जा रहा है कि शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर होगी। यह भी बताया जा रहा है कि इन स्कूलों में कक्षा एक से बारहवीं तक की शिक्षा दी जाएगी। बता दें कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव में हुए ‘आप’ पार्टी को मिली भारी जीत की एक वजह वहां पर संचालित सरकारी स्कूल भी है।
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दिल्ली में नगर निगम द्वारा संचालित स्कूलों में न सिर्फ पढ़ाई, बल्कि अन्य भव्य सुविधाएं मिलती है, जिसकी वजह से दिल्ली में शिक्षा को लेकर कोई लूट जैसी स्थिति नहीं है। बल्कि वहां ज्यादातर धनवान या मध्यमवर्गीय पालक अपने बच्चों को निगम के स्कूलों में दाखिल करवाते हैं, जिसके लिए उन्हें इंतजार भी करना पड़ता है और निराश होने पर उन्हें निजी स्कूलों की तरफ रूख करना पड़ता हैं।