…तो ऐसा रहा पांच साल धान और किसान के नाम पर सरकारी पाखंड

…तो ऐसा रहा पांच साल धान और किसान के नाम पर सरकारी पाखंड

…So five years of government hypocrisy went on in the name of paddy and farmers.

dhan kharidi 2023-24

प्रमोद अग्रवाल
रायपुर/नवप्रदेश। dhan kharidi 2023-24: पिछले पांच साल से धान और किसान नाम पर सरकारी पाखंड सामने आया है। राज्य की राजनीति में मुख्य केन्द्र बिन्दु रहने वाले किसान और धान के मामले में राज्य शासन का रवैया दुर्भाग्यपूर्ण और गैर जिम्मेदाराना रहा है। राज्य शासन अपनी ही बनाई नीतियों का पालन नहीं करता है और इसका लाभ किसानों को देने के बजाए राईस मिलर्स को पहुंचाता हैं। राज्य में आज भी लगभग 2 लाख टन धान का चावल राज्य शासन को नहीं मिल पाया हैं, उसके बावजूद भी राज्य शासन की ओर से राईस मिलर्स के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया हैं।

राज्य की नौकरशाही धान व चावल के इस खेल में भ्रष्टाचार की सूत्रधार है और बजाय अपने दायित्व निवर्हन के वह राजनीतिक दलों के लाभ के लिए काम करती दिखाई पड़ती है। इसके लिए वह आंकड़ों की कलाबाजी और दस्तावेंजों में हेर फेर भी करती हैं।


वर्ष 2022-23 में खरीदे गए धान की कस्टम मिलिंग के मामले मेें भी जांच की जाए तो अनियमितता और भ्रष्टाचार का खुला खेल सामने आ जाएगा। राज्य शासन की धान खरीदी करने वाली ऐंजेंसी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ द्वारा 1 दिसम्बर 2023 को जिला विपणन अधिकारियों को जारी पत्र में कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा चावल जमा करने की निधारित अंतिम तिथि 30 नवम्बर समाप्त हो चुकी है और 1 दिसम्बर की स्थिति में राज्य में 1.60 लाख टन चावल जमा होना शेष है।

उन्होनें कस्टम मिलिंग कर चावल न जमा करने वालो पर अनुबंध की धारा 11.3, 11.4, एवं 11.7 के प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही करने का निर्देश दिया है। दूसरी ओर राज्य सरकार के ऑफिशियल पोर्टल में 30 नवम्बर 2023 की स्थिति मेें जमा करने हेतु शेष चावल की मात्रा 85148 टन बतायी गई है। जबकि एमडी मार्कफैड के उपरोक्त पत्र में जोकि 1 दिसम्बर को लिखा गया है यह मात्रा 1.60 लाख टन दर्शित है।


राज्य में खरीफ वर्ष 2022-23 में लगभग 105 लाख टन धान की सरकारी खरीदी हुई थी जिसकी कस्टम मिलिंग कराने हेतु राज्य सरकार ने मिलिंग की दर 40 रूपये क्विंटल से बढ़ाकर 120 रूपये क्विंटल कर दी थी। राईस मिलर्स ने राज्य में उत्पादित धान में बडी मात्रा में कालाबाजारी की। क्योंकि राईस मिलर्स और राज्य सरकार के बीच एक अलिखित समझौता था जिसके जरिए दोनों भ्रष्टाचार में लिप्त थे। यह धान जुलाई 2023 तक सभी मिलर्स को अनुबंध के तहत कस्टम मिलिंग के लिए प्रदान कर दिया गया था।

इसे 30 सितम्बर तक कस्टम मिलिंग करके निधारित मात्रा में एफसीआई और नॉन के पास जमा करना था। लेकिन राईस मिलर्स ने वह धान खुले बाजारों में बेच दिया यह बात राज्य शासन की सभी एजेंसियों और सरकार को भी पता थी। कार्यवाही के डर से बेखौफ राईस मिलरो की सुविधा के लिए चावल जमा करने की निधारित तिथि को पहले 31 अक्टूबर तक बाद में 30 नवम्बर तक बढ़ाया गया। लेकिन लगभग 6 महीने तक अपने पास राज्य शासन का धान रखने वाले और उसके जरिए अपने स्वयं का व्यापार चमका रहे राईस मिलरों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। हालात ये है कि आज भी लगभग 2 लाख टन धान का चावल राज्य सरकार के पास नहीं आया है और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।


राज्य सरकार के धान के चावल का सबसे बडा खरीददार केन्द्रीय शासन की ऐजेंसी एफसीआई है राज्य सरकार यह आरोप लगाती रही कि केन्द्र सरकार उसके राज्य में दुर्भावनापूर्वक कार्य कर रही है और राज्य सरकार से कम चावल लेने का अनुबंध करती है। जबकि वास्तविकता यह है कि केन्द्र सरकार ने जितना अनुबंध राज्य सरकार से किया है उतना चावल राज्य ने जमा नहीं किया है। इसी कारण राज्य की क्षमता पर केन्द्र हमेशा सवाल खड़ा करता रहा है जिसे राज्य सरकार दुर्भावना बताती रही है।


राज्य में जो मिलर्स निर्धारित समय में कस्टम मिलिंग का चावल एफसीआई में जमा नहीं करते है उन पर कार्रवाई के बजाए राज्य शासन यह सुविधा देती थी कि उनका चावल नान के जरिए राज्य सरकार वापस ले लेती थी। जबकि उन पर नियमत: धान का गबन करने का मामला दर्ज होना था। इसी सुविधा का राइस मिलर्स साल दर साल दुरूपयोग कर रहे हैं और पुराने धान को बेचकर नए सीजन के धान की मिलिंग कर जमा करते हैं। शासन को चाहिए कि वह इस बात की तस्दीक करें की जुलाई 2022 में दिया धान आखिर है कहां? और यदि राइस मिलर्स ने उसे या उसके चावल को खुले बाजार में बेचा है तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।


राज्य के धान में अमानत मेें खयानत करने वाले राईस मिलर्स के इस अपराध का खामियाजा उन राईस मिलरों को भी भुगतना पड़ रहा है जो निधारित समय सीमा में अपना काम पूरा कर चावल जमा कर चुके है क्योंकि राज्य सरकार ने भुगतान के मामले में यह शर्त लगा रखी है कि जब तक पूरा चावल जमा नहीं होगा तब तक किसी भी राईस मिलर्स का भुगतान नहीं किया जायेगा। इस वजह से उन राइस मिलर्स में काफी रोष है कि वे ईमानदारी से काम करके भी अपना भुगतान प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।


राज्य में चुनाव के पूर्व चावल घोटाले को लेकर केन्द्र के प्रर्वतन निदेशालय ने भी छापेमारी कर जांच शुरू की थी और कुछ राईस मिलर्स को बुलाकर पूछताछ भी की गयी थी हालांकि मार्क फेड के एमडी सोनी अभी तक फरार है। उस ऐजेंसी को कस्टम मिलिंग मामले की भी जांच करनी चाहिए जिससे एक बडे भ्रष्टाचार का खुलासा हो सकता हैं।

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