संपादकीय: खडग़े के बयान पर योगी की खरी -खरी
Yogi’s criticism on Kharge’s statement: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर जो निशाना साधा था। उसके जवाब में पलटवार करते हुए योगी ने उन्हें खरी खरी सुना दी।
वास्तव में मल्लिकार्जुन खडग़े ने अपने पद की गरिमा का ध्यान न रखते हुए योगी आदित्यनाथ पर व्यक्तिगत हमला किया था। योगी के बंटेंगे तो कटेंगे के नारे का उल्लेख करते हुए उन्होंने योगी के बयान को आतंकी बयान बताया था। और योगी के भगवा वस्त्र पर भी टीका टिप्पणी की थी।
खडग़े के इस बयान को लेकर राजनीति का गरमाना स्वाभाविक है। मल्लिकार्जुन खडग़े देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इस नाते उनसे ऐसे हल्के और निम्न स्तरीय बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती। किन्तु चुनावी गहमा गहमी के माहौल में खडग़े जी ने आपत्तिजनक बयान दे दिया।
इसका उन्हें जवाब तो मिलना ही था। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसका शालीनता पूर्वक जवाब दिया। लेकिन उन्होंने मल्लिकार्जुन खडग़े के पूर्वजों का उल्लेख करते हुए खडग़े जी को आईना दिखा दिया। उन्होंने कहा कि खडग़े जी को मुझपर गुस्सा नहीं निकालना चाहिए। उन्हें तो हैदराबाद के निजाम पर गुस्सा निकालना चाहिए।
जिसने आजादी के पहले मल्लिकार्जुन खडग़े जी के गांव को जला दिया था। इसमें उनकी माता जी सहित परिवार के कई सदस्य मारे गए थे। किन्तु खडग़े जी वोट बैंक की खातिर अपने परिवार का बलिदान भूल गए हैं। उन्होंने कहा कि वे एक योगी हैं और योगी के लिए देश पहले होता है जबकि खडग़े जी के लिए कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति पहले है।
योगी के इस पलटवार के बाद अब कांग्रेस में सन्नाटा पसर गया है। सीधी सी बात है जब आप किसी विरोधी पर व्यक्तिगत हमला करोगे तो आपको भी ऐसे हमले का सामना करना ही पड़ेगा। चुनाव के दौरान नेताओं की जुबान फिसलती रहती है और वे अक्सर मर्यादा की सीमा रेखा लांघ जाते हैं।
नतीजतन जुबानी जंग तेज हो जाती है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नेताओं के बीच यह जुबानी जंग कुछ ज्यादा तेज हो गई है। मल्लिकार्जुन खडग़े और योगी आदित्यनाथ के बीच हुई जुबानी जंग के अलावा महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और एआईएमआईएम के नेता ओवैसी के बीच भी जमकर जुबानी जंग हो रही है।
दोनों एक दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं और खुजली, गीदड़ और चोर डाकू जैसे आपत्तिजनक शब्दों का भी इस्तेमाल करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। नेताओं को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। यह ठीक है कि चुनाव के दौरान एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने का उन्हें अधिकार है। लेकिन ऐसा करते समय उन्हें लक्ष्मण रेखा नहीं लांघनी चाहिए। और व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचना चाहिए।
आपत्तिजनक शब्दों का तो कतई इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इससे उन्हें नुकसान हो सकता है। पूर्व में ऐसे बयानवीर नेताओं की बदजुबानी के कारण ही उनकी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। किन्तु हैरत की बात है कि इससे सबक लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। बेहतर होगा कि नेता ऐसी आपत्तिजनक बयानबाजी से बचे।