Chanakya Niti In Hindi: नारी का व्यवहार ऐसा हो :चाणक्य
Chanakya Niti In Hindi: अपनी भुजाओं की शक्ति यानी पराक्रम एवं सेना राजाओं का वास्तविक बल है। तत्व ज्ञान ब्राह्मण की वास्तविक शक्ति है। सुन्दरता, यौवन और मधुर व्यवहार नारियों की सच्ची और प्रशस्त शक्ति तथा साधन है।
Chanakya Niti In Hindi: अभिप्राय यह है कि सेना राजाओं की वास्तविक शक्ति और उनकी भुजाओं का बल है। ब्राह्मणों की सच्ची शक्ति जप-तप न होकर ब्रह्म की अनुभूति (सत्य का दर्शन) है। इसी प्रकार स्त्रियों की सबसे अच्छी शक्ति उनकी खूबसूरती, मिठास और जवानी है। जिससे वे बड़े-बड़े योद्धाओं व तपस्वियों को भी क्षण भर में ही पछाड़ देती हैं। ऐसा मनुष्य स्वयं भी देखता है। अतः प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
Chanakya Niti In Hindi: धरती से निकलने वाला जल पवित्र व शुद्ध होता है, पतिव्रता नारी सर्दव शुद्ध पवित्र होती है, प्रजा का कल्याण करने वाला राजा पवित्र होता है और सन्तोषप्रद ब्राह्मण (जो मिल जाये उसी में खुश रहने वाला) भी शुद्ध-पवित्र होता है।
अभिप्राय यह है कि कुएं से निकलने वाला जल, पतिव्रता स्त्री (जो केवल पति के साथ भोग करती हो), प्रजा का कल्याण करने वाला राजा और थोड़े पर सन्तोष करने वाला ब्राह्मण वांछनीय है। अगर यही सभी उक्त गुण ना हों तो घर-परिवार, व्यक्ति व समाज सभी के शत्रु होते हैं। अर्थात् अवगुण होने से अवांछनीय हैं।
उनका जीवन व्यर्थ है, जिन्होंने कभी अपने हाथों से दान नहीं किया, कभी अपने कानों से वेद नहीं सुना, अपने आंखों से सज्जन पुरुषों अर्थात् साधु-महात्माओं के दर्शन नहीं किये, जिन्होंने कभी तीर्थयात्रा नहीं की, जो अन्याय से प्राप्त किये धन से अपना भरण-पोषण करते हैं, घमण्ड से जिनका सिर हमेशा ऊंचा रहा।
दूसरे शब्दों में यह भी कहा कहा सकता है कि स्त्रियां अत्यन्त दुस्साहसी होती हैं, वे अपनी विषय-वासना के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं। मदिरा के नशे में डूबे व्यक्ति का विवेक ठीक कार्य नहीं करता, वे कुछ भी अन्ट-शन्ट बक देते है।। कौवे भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार न करते हुए कुछ भी खा लेते हैं, उनमें धैर्ये नहीं होता।
अभिप्राय यह है कि दुस्साहसी स्त्री, नशा करने वाले व्यक्ति, कौवा का भक्ष्य-अभक्ष्य में अन्तर न कर पाना ऐसे नीच व निन्दनीय प्राणियों का जीवन व्यर्थ है। उन्हें अपने शरीर का त्याग कर देना चाहिए।
धन के लोभियों के लिये मांगन वाला शत्रु रुप है, क्योंकि याचक को देने के लिये उन्हें धन का परित्याग करना पड़ता है। मूरों को समझाने-बुझाने वाला व्यक्ति अपना शत्रु कहलाता है क्योंकि वह उनकी मूर्खता का समर्थन नहीं करता। पर पुरुष से सम्बन्ध रखने वाली दुराचारिणी स्त्रियों के लिए उनका पति ही शत्रु है, क्योंकि उसके कारण ही उनकी स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता में बाधा पड़ती है। चोर चन्द्रमा को अपना शत्रु समझते हैं, क्योंकि उनके लिए अन्धेरे में छिपना जितना सरल होता है, वैसा चांदनी में नहीं।
किसी भी पुरुष को वेश्याओं से सम्बन्ध नहीं रखने चाहिए। वेश्याएं धन प्राप्ति के लिए, धन देने वाले का मनोरंजन करने के लिए हंसती हैं, कामी पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, बातचीत किसी के साथ करती हैं, विलासपूर्वक देखती किसी और को हैं और मन में चिन्तन किसी और का करती हैं। धन लोभ के कारण उनका प्रेम-प्रपंच किसी एक से नहीं अनेक से होता है। यह प्रेम-प्रीति स्थायी नहीं होती।
कहने का अभिप्रायः यह है कि किसी भी पुरुष को चरित्रहीन नारी के बतियाने और प्रेम-पूर्वक देखने को उनका अपने प्रति झुकाव नहीं मानना चाहिए, तथा उनकी निष्ठा पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये।
आजीविका पैदा करने में असमर्थ व्यक्ति बाबा बन जाता है, शक्तिहीन पुरुष प्रायः ब्रहमचारी बन जाता है। असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्ति ईश्वर का भक्त बनकर साधना करता है। तथा बूढ़ी स्त्री पतिव्रता बन जाती है। यह आज के युग में भी देखा जा सकता है।
जबकि सामर्थ्य होने पर भी ब्रहचर्य धारण करने, धन सम्पन्न होने पर भी रिक्त बनने, स्वस्थ होने पर ईश्वर-भक्त बनने तथा रुप यौवन के रहने पर पतिव्रता धर्म का पालन करने का ही महत्व है।
पति की आज्ञा के बिना व्रत-उपवास करने वाली नारी अपने पति की आयु को घटाती है। इस पाप को करने के फलस्वरुप उसे मृत्यु के उपरान्त नर्कगामी माना गया है। पतिव्रता नारी को चाहिए कि वह अपने पति की आज्ञा का पालने करे। पति के निर्देशानुसार उसे आचरण करना चाहिए। नीतिवान महापुरुषों का कहना है कि भूखों मरने वाला व्रत नहीं करना चाहिये, क्योंकि जो नारी इस तरह भूखे रहकर अपने शरीर को कष्ट देती है, उसे फल प्राप्ति तो बहुत दूर, स्वयं कष्टों को भोगती हुई वह अपने पति की आयु ही घटाती है।
अर्थ यह है कि यदि पति अपनी पत्नी के स्वास्थ्य का ध्यान करते पत्नी को व्रत-उपवास करने से मना करता है तो पत्नी को हठ नहीं करनी चाहिए। अन्यथा रोग आदि के बढ़ जाने से धनहानि व शरीर की हानि भी उठानी पड़ सकती है।
हर पदार्थ के अपने-अपने गुण होते हैं। तुण्डी (कुन्दरु) के सेवन करने से बुद्धि तत्काल नष्ट हो जाती है, किन्तु शरीर में असीम ताकत की वृद्धि विकसित हो जाती है। यह आयुवर्द्धक, वात, पित्त, कफ नाशक होती है। नारी शीघ्र ही शक्ति का हरण करने वाली होती है और दूध के पीने से तत्काल खोयी हुई ताकत वापस लौट आती है। नारी का अत्यधिक संग करने से शीघ्र ही बुढ़ापा आ जाता है।
आचार्य चाणक्य ने यही दर्शाया है कि तुण्डी बुद्धिनाशक और वचा बुद्धिवर्धक है। नारी शक्तिरुपा और दूध शक्तिवर्द्धक है।