Weekly Column By Sukant Rajput : बातों…बातों में : अरुणदेव को ही छ.ग.पु. की कमान; तीसरे को प्यार और जहर ने ले डूबा…

Weekly Column By Sukant Rajput : बातों…बातों में : अरुणदेव को ही छ.ग.पु. की कमान; तीसरे को प्यार और जहर ने ले डूबा…

साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में :

साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में :

Weekly Column By Sukant Rajput : साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में : दैनिक नवप्रदेश में सुकांत राजपूत द्वारा इस साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में देश से लेकर प्रदेश तक के सियासी और नौकरशाही से ताल्लुक रखती वो बातें हैं, जिसे अलहदा अंदाज़ में सिर्फ मुस्कुराने के लिए पेश है।

अरुणदेव को ही छ.ग.पु. की कमान…

नाम में अगर देव लगा है तो मानकर चलिए.. वही बाजी मारेगा। तुर्रा यह कि अरुण और नाम के साथ देव भी लगा हो तो सोने पे सुहागा समझिये। डबल पावर नाम वाले को छ.ग.पु. की कमान हासिल करने से अब कोई नहीं रोक सकता। नाम के अलावा दरअसल चाल, चरित्र और चेहरे के मुताबिक भी अपने दो अन्य प्रतिस्पर्धियों से अरुणदेव को क्लीन स्वीप मिलेगी ही। फिर उनके नाम में अरुण भी है और देव भी है। निर्विवाद अरुणदेव का विवादों से कभी नाता भी नहीं रहा। प्रतिस्पर्धियों की तुलना में मातहत भी उन्हें ज्यादा पसन्द करते हैं। बातों ही बातों में हेडक्वार्टर के जानकार ने बोल ही दिया… एक की कंजूसी और धमतरी का चर्चित किस्सा तो दूसरे का बिलासपुर का किस्सा और राजनांदगांव में गलती से कुछ खा लेने के बाद की कहानी ऊपर तक पहुंच गई है।

दूसरे को विवाद से जुडऩे का खामियाजा…

डीजीपी बनने का ख्वाब लिए साहब राजस्थान से छत्तीसगढ़ तो आ गए। धमतरी एसपी रहते हुए उनके रंगीलो राजस्थान वाले मूड की खासी चर्चा है। ससुराल पीडि़त प्रार्थिया के लिए उनकी उदारता ने मामले का कुछ और ही रुख अख्तियार कर लिया था। धमतरी के कारोबारी परिवार से लेकर उनके इस मामले की शौर्यगाथा की शिकायत वाली फाइल मंत्रालय तक पहुंच गई थी। काफी जद्दोजहद के बाद हाल ही में उन्हें इन सब से निजात मिली और कंजूसी से खाखी-खादी दोनों वाकिफ हैं। ऐसे में छ.ग.पु. की कमान के लिए भले ही दौड़ में हैं, लेकिन दूसरी पंक्ति में। उनके चाहने वालों ने तो बातों ही बातों में यह भी वमन किया कि साहब तो धमतरी केस के बाद कैडर चेंज करने तक का मन बना लिए थे।

तीसरे को प्यार और जहर ने ले डूबा…

इनके नाम में देव होने के बाद भी कोई जादू नहीं चला। हालांकि लिफाफा बंद रखा गया है.. रद्द नहीं किया गया है। फिर भी बिलासपुर में इनकी प्यारभरी भूल, राजनांदगांव में जहरभरी गलती से वे पिछड़ गए हैं। वैसे भी छ.ग.पु. की कमांड ऐसी मानविक भूल करने वालों को नहीं दी जा सकती। ऊपर वाले भी नहीं चाहते कि फिर से कोई इतिहास दोहराया जाये, क्योंकि सब जानते हैं साहब के शौक। उनके लैपटॉप में लबरेज चीजें और किसी सिविलियन जैसे शौक वर्दी वाली नौकरी में पालना विभागीय दौड़ में पछाडऩे के लिए काफी होते हैं। फिर बीती सरकार में विवादों के बीच भी रवाना हो चुके लोगों से मेलजोल इस सरकार के कानों तक पहुंच गई है।

अमरेश नहीं अमरेंद्र बाहुबली…

दोनों चुनावों के चंद रोज पहले ईडी का देशभर में कार्रवाई का जो सिलसिला चला वो शुरुआत में तो बड़ा ही रोमांचक था। खबरनवीसों के लिए और अखबार का खबरों से दोंदर भरने वाली इस कार्रवाई में कैश भी मिला और पूछताछ भी खूब हुई। ईडी की नोटिस और उनके पूछताछ का खौफ भुक्तभोगी कोर्ट में सुनते भी रहे, लेकिन ईडी के कई मामलों में आरोपी बने लोगों को एक के बाद एक सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने से कार्रवाई पर ही सवाल उठने लगे थे। ऐसे में जो ईडी नहीं खोज निकाल पाई वह ईओडब्ल्यू ने जमीं खोदकर निकाल लिया। अब लगने लगा है कि पीएमओ वाले नृपेंद्र मिश्रा जी के आशीर्वाद रायपुर रेंज आईजी, ईओडब्ल्यू-एसीबी चीफ और सायबर पुलिस के प्रभारी अमरेंद्र बाहुबली ने साबित कर दिया कि रायपुर पुलिस ईडी से किसी भी तरह कमतर नहीं है। उनके मातहतों का कहना है जिला पुलिस के माईबाप भी हैं तो नकली होलोग्राम कहां दफ्न है ये सोर्स तो मिलना ही था….खोद कर निकाल लिए!

गोटीबाजी, गणितबाजी अब गुटबाजी…

बीजेपी देश की कैडर बेस्ड पार्टी कही जाती है, लेकिन केंद्र से लेकर कई राज्यों में वर्षों से सत्ता सुख भोग रही बीजेपी में भी वही सब बुराइयां घुसपैठ कर गई हैं जिसके लिए सबसे पुरानी पार्टी बदनाम थी। गणितबाजी मंत्री बनने को लेकर हो रही है। वहीं गोटीबाजी किस मंत्री को खो करके उसे हासिल किया जाये इसके लिए तो गुटबाजी इसलिए कि ज्यादातर उनके ही लोग आये जिनसे बनती है। मिलजुलकर काम करने की भावना तो अच्छी है, लेकिन टंकराम, लक्ष्मी और श्यामबिहारी की अग्नि परीक्षा तय है और सांसदीय मिलने के बाद मिनिस्ट्री से चूक गए बिरजू की जगह भी भरने के लिए पार्टी में सब बेकरार हैं। राजेश तो इतने जज्बाती हो गए थे कि विधायक बनते ही पीडब्ल्यूडी अफसरों की बैठक घर पर ले लिए थे। बैठक में आये कई मलाईदार विभाग देख रहे अभियंताओं ने नजराना भी लाया था, वे अब सब ठगे महसूस कर रहे हैं। राजेश की तर्ज पर अमर, अजय, भी जल्दबाजी कर रहे हैं। वैसे अजय की प्रबल संभावना है, पर अमर के क्षेत्र से डिप्टी सीएम और केंद्रीय राज्य मंत्री हैं ऐसे में राह आसान नहीं। पुराने दिग्गज, नए बाजबहादुर अपनों के लिए जुट गए हैं।

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