Vinod Kumar Shukla Passes Away : ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन
Vinod Kumar Shukla Passes Away
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ और प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल (89) का मंगलवार को निधन (Vinod Kumar Shukla Passes Away) हो गया। सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें दो दिसंबर को एम्स में भर्ती कराया गया था। वे वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन सपोर्ट में थे, जहां मंगलवार शाम पांच बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर है। लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे शुक्ल को स्वास्थ्य बिगड़ने पर एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। उनके जाने से छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि देश के साहित्यिक परिदृश्य में एक गहरा शून्य उत्पन्न हो गया है।
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हुआ था। उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए साहित्य को जीवन का केंद्र बनाया। उनकी लेखनी में आम आदमी का जीवन, उसकी संवेदनाएं और भीतर की दुनिया बहुत सहजता से अभिव्यक्त होती रही। सरल भाषा में गहरी बात कहने की उनकी क्षमता उन्हें विशिष्ट बनाती है।
हिंदी साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2024 में उन्हें 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। वे हिंदी के 12वें साहित्यकार बने जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ, जबकि छत्तीसगढ़ राज्य से ज्ञानपीठ पाने वाले वे पहले लेखक थे। हाल के दिनों में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एम्स पहुंचकर उनका हालचाल भी जाना था।
साहित्य और लेखन की पहचान
विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla Passes Away) कवि, कथाकार और उपन्यासकार के रूप में हिंदी साहित्य में स्थापित नाम रहे। उनकी पहली कविता ‘लगभग जयहिंद’ वर्ष 1971 में प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने कविता और उपन्यास दोनों विधाओं में सशक्त रचनाएं दीं।
उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं। वर्ष 1979 में प्रकाशित ‘नौकर की कमीज’ पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणिकौल ने इसी नाम से फिल्म बनाई, जिससे उनका साहित्य सिनेमा के माध्यम से भी चर्चा में आया।
उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उनका लेखन प्रयोगधर्मी होते हुए भी आम पाठक से जुड़ाव बनाए रखता है। संवेदनशीलता, मानवीय दृष्टि और भाषा की सादगी उनकी रचनाओं की प्रमुख पहचान रही।
भारतीय साहित्य को दिया स्थायी योगदान
विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla Passes Away) ने हिंदी उपन्यास को नई दिशा दी। उन्होंने लोक जीवन और आधुनिक समाज की जटिलताओं को एक साथ पिरोते हुए मौलिक कथा संरचनाएं गढ़ीं। उनके उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन की सूक्ष्म परतें, मानसिक द्वंद्व और मानवीय संवेदनाएं गहराई से उभरती हैं।
उनकी विशिष्ट भाषिक शैली और सृजनशीलता ने भारतीय ही नहीं, बल्कि वैश्विक साहित्य को भी समृद्ध किया। उनका साहित्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
