संपादकीय: जाति जनगणना को लेकर बवाल
Caste census: देश में एक दशक के बाद होने वाली जनगणना का काम कोरोना काल की वजह से स्थगित हो गया था। अब केन्द्र सरकार जनगणना कराने की कवायद में जुटी हुई है।
इस बीच आईएनडीआईए में शामिल कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों ने जातीय जनगणना कराने की मांग पूरजोर ढंग से उठानी शुरू कर दी है।
जाति जनगणना की मांग को लेकर हो रहे बवाल को भले ही भारतीय जनता पार्टी ने गंभीरता से नहीं लिया हो लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इस मामले को न सिर्फ गंभीरता से लिया है बल्कि इसे बेहद संवेदनशील मुद्दा बताया है।
केरल में हुए आरएसएस के राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान जातीय जनगणना की मांग को लेकर भी गहन विचार विमर्श हुआ है। इसके बाद आरएसएस के प्रवक्ता ने जातीय जनगणना को लेकर आरएसएस का रूख साफ कर दिया है जिसका मतलब यही है कि आरएसएस जातीय जनगणना कराने के पक्ष में है।
उसकी बस एक शर्त है कि जातीय जनगणना का उद्देश्य राजनीतिक फायदा उठाना न हो बल्कि जातीय जनगणना का लक्ष्य पिछड़े वर्गो का विकास हो।
आरएसएस की इस इच्छा के बाद अब भारतीय जनता पार्टी जातीय जनगणना कराने पर सहमत हो सकती है। भाजपा पहले भी जातीय जनगणना की विरोधी नहीं रही है लेकिन उसने कभी खुलकर इसका समर्थन भी नहीं किया है।
दरअसल भाजपा जातीय जनगणना को लेकर असमंजस की स्थिति में रही है लेकिन अब आरएसएस की हरी झंडी मिलने के बाद भाजपा जातीय जनगणना कराने के लिए तैयार हो सकती है। वैसे देखा जाए तो जातीय जनगणना कराने में कोई हर्ज भी नहीें है।
देश के किन किन राज्यों में किस किस जाति की कितनी जनसंख्या है इसका मोटा अनुमान पहले ही सभी को है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव या फिर नगरीय निकायो के चुनाव हो अथवा पंचायत चुनाव हर चुनाव के दौरान जब वोटरलिस्ट बनाई जाती है तो वार्ड स्तर पर भी यह सभी को मालूम हो जाता है कि कहां कितने लोग किस किस जाति के है।
जातीय आधार पर ही राजनीतिक पार्टियां पार्षद से लेकर सांसद तक के लिए अपेन प्रत्याशी का चयन करती है। अब यदि जातीय जनगणना हो जाएगी तो इसके अधिकृत आंकड़े सामने आ जाएंगे। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान 2011 में जातीय जनगणना कराई गई थी।
लेकिन उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये गए थे। उस समय के तात्कालिन गृह मंत्री पी चितंबरम ने तो इसे लेकर यह बयान दिया था कि जातीय जनगणना के आंकड़ो को रद्दी की टोकरी में फेक देना चाहिए।
अब वही कांग्रेस पार्टी जातीय जनगणना की मांग पूरजोर ढंग से उठा रही है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लगातार इस मुद्दे को उठा रहे है। उन्होंने तो लोकसभा के पिछले बजट सत्र में यह दावा भी किया था कि वे इसे संसद में जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित कराकर छोडेंगे।
इसके बाद से अन्य विपक्षी पार्टियों में भी जातीय जनगणना की मांग को जोर शोर से उठाना शुरू कर दिया है। जिसकी वजह से भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने जातीय जनगणना की मांग को संवेदनशील मुद्दा निरूपित करते हुए इस पर विचार करने की जरूरत पर बल दिया है।
इसी के बाद से अब यह अटकलें लगाई जा रही है कि एनडीए सरकार इस मांग पर सहमत हो सकती है। देखना होगा कि इस बारे में एनडीए सरकार कब तक जातीय जनगणना कराने की घोषणा करती है?