Unrest in Nagaland : नागालैंड में अशांति के मंडराते बादल!

Unrest in Nagaland : नागालैंड में अशांति के मंडराते बादल!

Unrest in Nagaland: Clouds of unrest in Nagaland!

Unrest in Nagaland

राजेश माहेश्वरी। Unrest in Nagaland : पूर्वोत्तर की शांति को लगता है किसी की नजर लग गई है। पिछले कुछ समय से पूर्वोत्तर के राज्यों से ऐसी खबरे सामने आ रही हैं जो चिंता बढ़ाने वाली हैं। इतिहास के पन्ने पलटकर देखे तो पूर्वोत्तर के कई उग्रवादी गुटों और सरकार के बीच कई दौर की शांति वार्ताओं और संवाद के माध्यम से स्थिति बदली थी। संवाद और शांति प्रयासों का ही नतीजा था कि कई आतंकी चेहरे राजनीति के जरिए मुख्यधारा में आए और विधायक, सांसद तक चुने गए, लेकिन अचानक नागालैंड में एक हिंसक कांड, मौतों की त्रासदी और स्थानीय लोगों के पलटवार ने शांति को भंग कर दिया है।

वास्तव में अनिश्चित शांति के एक दशक के बाद, एक समय में बहुत परेशान रहने वाला उत्तर-पूर्वी राज्य, नागालैंड विकास के कई परिणामों पर भारत के सबसे समृद्ध राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। यह जानकारी 10 राज्यों के 20 सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य सूचकों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण में दो वर्ष पूर्व सामने आई थी। हालांकि, राज्य में खराब बुनियादी ढांचे और कभी-कभी अशांति अभी भी समस्या है।

म्यांमार की सीमा के निकट भारत के पूर्वी किनारे पर स्थित, नागालैंड लगभग कुवैत के आकार है और यहां 2 मिलियन लोग रहते हैं, जो इंदौर शहर की आबादी के बराबर है। राज्य में 16 प्रमुख जनजातियां और 20 उप-जनजातियां हैं। प्रत्येक को अलग कपड़ों और आभूषणों द्वारा चिह्नित किया जा सकता है। 87.93 फीसदी आबादी ईसाई है। अंग्रेजी आधिकारिक भाषा हो सकती है, लेकिन राज्य में 30 से अधिक भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं।

नागा विद्रोही गुटों और राज्य सशस्त्र बलों (Unrest in Nagaland) के बीच हिंसक झड़पों से 2007 तक लगभग आधी सदी के लिए नागालैंड विकास से दूर रहा। जब से सबसे बड़े विद्रोही समूह ने भारत सरकार के साथ एक अनिश्चित युद्धविराम में प्रवेश किया, तब से, राज्य ने कई सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर महत्वपूर्ण प्रगति की है। 1963 में नागालैंड के अस्तित्व के बाद पहली बार, केंद्र में सत्ताधारी गठबंधन के प्रमुख भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) राज्य और पूर्वोत्तर के बाकी हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है।

बीते माह मणिपुर में उग्रवादियों ने जिस तरह असम राइफल्स के कमांडिंग अफ सर, उनकी पत्नी और बेटे, चार सैनिकों की एक साथ हत्या की थी, उसके बाद नगालैंड में यह हिंसक कांड हुआ है। ताजा घटनाक्रम में सेना की गोलीबारी में 13 मासूम मौतें हो गईं। पलट हिंसा में 4 और जानें चली गईं। कई सैन्य वाहन फूंक दिए गए। करीब 100-150 ग्रामीणों ने असम राइफल्स के सैनिकों पर हमला बोल दिया, लिहाजा आत्मरक्षा में जवानों को गोली चलानी पड़ी। उसमें भी कुछ घायल हुए हैं।

इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का संसद में दिया गया वक्तव्य भी सामने आया है। उन्होंने कहा कि यह गलत पहचान का मामला है। सेना का पक्ष है कि उसे उग्रवादी गतिविधियों की सूचना मिली थी, लिहाजा उसे ऑपरेशन चलाना पड़ा। फिलहाल यह जांच का विषय है कि ऑपरेशन का निर्णय सही था अथवा गलत, लेकिन चैतरफा गुस्साई प्रतिक्रियाओं के दबाव में सेना ने खेद व्यक्त किया है। कई स्तरों पर जांच के आदेश दिए गए हैं।

म्यांमार उनके लिए अभयारण्य साबित होता रहा है। लिहाजा सीमावर्ती जिलों में अपेक्षाकृत ज्यादा निगरानी और सावधानी की जरूरत है और यह काम असम राइफल्स जैसे सैन्य संगठन ही कर सकते हैं। अत्यधिक दबावों के बावजूद सेना और सुरक्षा बलों को स्थानीय आबादी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना पड़ेगा। खुफि या एजेंसियों को भी ठोस और पुष्ट ‘लीड्स के लिए अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ेगा। पड़ोसी देश म्यांमार में बेचैनी, अराजकता और विद्रोहों के कारण मणिपुर और नगा उग्रवादी गुटों को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी पड़ी हैं।

नगालैंड देश की आजादी के बाद से ही उग्रवादी आंदोलनों के लिए कुख्यात रहा है। राज्य के नगा गुटों ने खुद को कभी भारत का हिस्सा समझा ही नहीं। दशकों लंबे चले उग्रवाद के बाद केंद्र सरकार ने 1997 के आखिर में इस समस्या को खत्म कर इलाके में शांति की बहाली के लिए नागा संगठनों के साथ शांति प्रक्रिया शुरू की थी। नागालैंड की दशकों से चली आ रही इंसरजेंसी का अंत करने के लिए नागा शांति समझौते की पेशकश की गई है। इसके बारे में हम 2018 से सुनते आ रहे हैं, लेकिन अब तक शांति समझौता मुकम्मल नहीं हो पाया है। मोदी सरकार 2.0 में केंद्र और नागा सशस्त्र बलों के बीच बात आगे बढ़ी।

अक्टूबर, 2019 में प्रमुख अलगाववादी दल नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-इसाक मुइवाह (एनएससीएन-आईएम) की दिल्ली में केंद्र के साथ बैठक भी हुई। केंद्र सरकार ने उनकी तीन में से दो मांगों को मान लिया। पहली मांग, अरुणाचल, मणिपुर और असम की तरह नागा समुदाय की सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं को संरक्षण देना। दूसरी मांग, समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना। लेकिन बात तीसरी मांग पर अटक गई। नागालैंड के अलग झंडे और अलग संविधान की मांग। फिलहाल गतिरोधों का अंत करने की कोशिश जारी है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूर्वोत्तर शुरूआती दौर से ही बेहद संवेदनशील क्षेत्र रहा है। कई विभिन्नताओं के कारण उग्रवाद के लिए वह अनुकूल भूखंड रहा है। चूंकि अब उग्रवाद अंतिम सांसें ले रहा है, लिहाजा उसे किसी भी तरह की ‘प्राण-वायु प्रदान न की जाए, जिससे वह दोबारा उभर सके। राज्य की एजेंसियों और स्थानीय नगा आबादी के बीच, त्रासदी के बावजूद, भरोसे को नए सिरे से कायम करने की कोशिशें तेज होनी चाहिए। ताजा घटनाक्रम के बाद नगा जनजाति ने त्वरित और सख्त कदम उठाए जाने से जुड़ी मांगों का पांच-सूत्रीय ज्ञापन जारी किया है।

ज्ञापन में कहा गया है कि इस घटना के लिए जिम्मेदार सेना कर्मियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई हो और राज्य में सेना और सुरक्षा बलों को दी गई विशेष शक्तियों को वापस लिया जाए। सेना ने संदिग्ध समझकर फायरिंग की। फि र भी मामले की जांच तो होनी ही चाहिए।
अब यदि राजनीतिक नेतृत्व, सुरक्षा बल-सेना और नागरिक समाज ने नगा लोगों का भरोसा जीतने के प्रयास नहीं किए, तो नगालैंड से अमन-चैन गायब भी हो सकता है।

नगालैंड के राज्यपाल (Unrest in Nagaland) प्रो. जगदीश मुखी ने ‘कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गठित की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विशेष जांच दल के गठन का ऐलान किया है। एक निष्पक्ष, तटस्थ और स्वतंत्र जांच का भरोसा दिया जा रहा है। दरअसल यह भारत सरकार, स्थानीय नगा आबादी और सुरक्षा बलों के बीच भरोसे की ही परीक्षा है।

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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