Tushar Ghadigaonkar Suicide : जब रौशनी के बीच अंधेरा बढ़ता गया…तुषार घाडीगांवकर की चुप्पी अब सवाल बन गई है…

मुंबई, 21 जून| Tushar Ghadigaonkar Suicide : कभी रंगमंच की रोशनी में चमकते चेहरे को अब मौन ने घेर लिया है। मराठी थिएटर, टीवी और फिल्मों में पहचान बना चुके तुषार घाडीगांवकर ने शुक्रवार को आत्महत्या कर ली। शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, लगातार काम न मिलने और मानसिक दबाव ने उन्हें यह फैसला लेने के लिए मजबूर किया।
जिन रंगमंचों ने उन्हें संजीवनी दी, उन्हीं के पीछे गहराता गया सन्नाटा
तुषार, सिंधुदुर्ग के कंकावली से थे, जहां से निकलकर उन्होंने मुंबई के रूपारेल कॉलेज के नाट्य विभाग में अपनी कला को तराशा। थिएटर से लेकर फिल्मों तक उनकी यात्रा में ‘मन कस्तूरी रे’, ‘हे मन बावरे’, ‘सखा माझा पांडुरंग’ जैसे नाम शामिल (Tushar Ghadigaonkar Suicide)हैं। लेकिन इंडस्ट्री में धीरे-धीरे सिकुड़ते अवसर और आर्थिक अनिश्चितता ने उनका आत्मबल तोड़ दिया।
जब ‘एक और कलाकार’ चला जाता है… सवाल हम सब पर होता है
फेसबुक पर उनके करीबी अभिनेता अंकुर वधे ने लिखा,
“काम आता है और जाता है… लेकिन जान चली जाए, ये मंज़ूर नहीं। अगर तुषार हार गया, तो हम सब हारे।”
ये शब्द सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि इंडस्ट्री के सिस्टम, सहयोग और संवेदनहीनता पर भी सीधा प्रहार हैं।
कलाकारों का संघर्ष सिर्फ कैमरे के सामने नहीं होता
तुषार की मौत अकेली घटना नहीं है — यह एक ट्रेंडिंग लेकिन अनकही ट्रैजेडी (Tushar Ghadigaonkar Suicide)है, जहां हजारों छोटे और मझले कलाकार आर्थिक अस्थिरता और मानसिक दबाव से जूझ रहे हैं।
कोविड के बाद से थिएटर इंडस्ट्री अभी तक उबर नहीं पाई।
OTT और बड़े प्रोजेक्ट्स में अवसर सीमित और चयन बेहद टाइट है।
मेडिकल और मेंटल हेल्थ सहायता कलाकारों के लिए न्यूनतम स्तर पर है।