Tribunal Reforms Law : हमने जिसे रद्द किया, केंद्र ने फिर वही न्यायाधिकरण सुधार कानून कैसे ला दिया
Tribunal Reforms Law
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीखा सवाल किया है कि जब अदालत पहले ही न्यायाधिकरण सुधार कानून (Tribunal Reforms Law) के कई प्रावधान रद्द कर चुकी है, तो लगभग वही कानून फिर से कैसे बना दिया गया, वह भी बिना उन कमियों को दूर किए जिन पर अदालत ने पहले आपत्ति जताई थी।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने (Madras Bar Association Petition) न्यायाधिकरण सुधार (युक्तिकरण एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली मद्रास बार एसोसिएशन समेत अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा जिस कानून के प्रावधानों को हमने पहले ही खारिज किया था, वही प्रावधान मामूली बदलावों के साथ फिर से कैसे लाए जा सकते हैं? मुद्दों को हल किए बिना वही बात दोहराई नहीं जा सकती।
2021 के कानून में चुनिंदा अपीलीय न्यायाधिकरणों जैसे फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (Tribunal Reforms Law ) को समाप्त करते हुए विभिन्न न्यायाधिकरणों में जजों और अन्य सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल से जुड़े नियमों में संशोधन किया गया था। अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पहले के फैसले की मूल भावना को नजरअंदाज कर दिया गया है।
अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कानून का बचाव करते हुए कहा कि यह सरकार के लंबे अनुभव और विचार-विमर्श का परिणाम है। उन्होंने कहा कि (Judicial Independence Debate) संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह ट्रिब्यूनलों का ढांचा तय करे। नियुक्तियों में सरकार की भूमिका “अत्यधिक” नहीं है, क्योंकि अंतिम वीटो प्रधान न्यायाधीश के पास है। उन्होंने कहा कि पांच वर्ष का कार्यकाल और पुनर्नियुक्ति की सुविधा पिछली आपत्तियों को दूर करती है।
पीठ ने कहा हम यह नहीं कह रहे कि संसद ऐसा कानून नहीं बना सकती, लेकिन फैसले में जिन बिंदुओं को उठाया गया है, उनका निस्तारण किए बिना जस का तस कानून लाना संवैधानिक रूप से उचित नहीं है। याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून न्यायिक स्वतंत्रता और अधिकारों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
