Tribunal Reforms Act Case : ट्रिब्यूनल कानून पर केंद्र के रुख से सुप्रीम कोर्ट नाराज़, CJI बोले- सरकार मौजूदा पीठ से बचना चाहती है

Tribunal Reforms Act Case

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Tribunal Reforms Act Case : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को न्यायाधिकरण सुधार (युक्तिकरण और सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 से जुड़ी सुनवाई में केंद्र सरकार के रुख पर सख्त नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि सरकार जानबूझकर सुनवाई के अंतिम चरण में नई आपत्तियां उठाकर मौजूदा पीठ से बचने की कोशिश कर रही है। यह टिप्पणी उस समय आई जब केंद्र ने मामले को एक बड़ी संविधान पीठ (Tribunal Reforms Act Case) के पास भेजने की मांग की।

प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि इस तरह का आवेदन उस वक्त दाखिल किया गया है जब 16 अक्टूबर को ही सुनवाई पूरी हो चुकी थी। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि ऐसी रणनीति न्यायिक प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ जैसी है।

सीजेआई गवई ने सुनवाई के दौरान कहा, “आप (केंद्र) ने पिछली सुनवाई में कोई आपत्ति नहीं उठाई थी और निजी कारणों से स्थगन मांगा था। अब जब सुनवाई पूरी हो चुकी है, तो इस तरह की अर्जी देना अनुचित है। हमें यह टिप्पणी करनी पड़ेगी कि केंद्र मौजूदा पीठ से बचना चाहता है।”

सरकार की मंशा पर सवाल

इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि सरकार की मंशा पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए और बड़ी पीठ को भेजने का आग्रह पहले से ही लिखित जवाब में दर्ज था। उन्होंने दलील दी कि कानून लंबी विचार-विमर्श प्रक्रिया के बाद बना है और इसे स्थिर होने के लिए समय मिलना चाहिए। अदालत को पूरे अधिनियम को खारिज नहीं करना चाहिए।

CJI ने दिया स्पष्ट संदेश

सीजेआई ने कहा, “हम आपका बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन कृपया अपनी प्रतिक्रिया वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार (Tribunal Reforms Act Case) की दलील तक सीमित रखें। सरकार से इस तरह के हथकंडे की उम्मीद नहीं थी।”

न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन ने भी कहा कि केंद्र को यह आपत्ति सुनवाई के शुरुआती दौर में उठानी चाहिए थी, न कि अंतिम चरण में। उन्होंने कहा, “अगर पहले यह तर्क दिया गया होता, तो अदालत स्वयं इसे बड़ी पीठ को भेजने पर विचार कर सकती थी। अब यह प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है।” पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अदालत को लगता कि मामला बड़ी पीठ को भेजने योग्य है, तो वह पहले ही ऐसा कर देती। लेकिन अब सुनवाई पूरी होने के बाद ऐसा नहीं किया जा सकता।

इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने तर्क दिया था कि 2021 का अधिनियम उन्हीं प्रविधानों को दोहराता है जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2021 में ट्रिब्यूनल सुधार अध्यादेश में असंवैधानिक घोषित किया था। अदालत ने तब चार वर्ष के कार्यकाल, 50 वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा और चयन समिति की सिफारिशों में से नाम चुनने के केंद्र के अधिकार को अस्वीकार किया था। अब अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी, जिसमें पीठ केंद्र की इस अर्जी पर निर्णय देगी कि क्या मामला बड़ी बेंच के पास भेजा जाए या मौजूदा पीठ ही अंतिम फैसला सुनाए।

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