Tribal Cultural Heritage : सरगुजा में राष्ट्रपति मुर्मु, जनजातीय परंपराओं का भव्य प्रदर्शन

Tribal Cultural Heritage

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सरगुजा में जनजातीय गौरव दिवस 2025 के अवसर पर पीजी कॉलेज ग्राउंड में आयोजित बड़े सांस्कृतिक समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। कार्यक्रम में राज्यपाल रमेन डेका, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सहित केंद्र और राज्य सरकार के कई मंत्री, जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे। पूरे कार्यक्रम में जनजातीय समाज की विविध परंपराओं, जीवन-पद्धति, संस्कृति और आध्यात्मिक आस्थाओं को केंद्र में रखते हुए अत्यंत विस्तृत प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था (tribal cultural heritage), जिसमें जनजातीय समुदाय की जीवनशैली से लेकर धार्मिक परंपराओं तक का व्यापक चित्रण देखने को मिला।

स्थल पर लगे स्टॉलों में जनजातीय कला, आभूषण, वस्त्र, जड़ी-बूटियाँ, वाद्ययंत्र, कंदमूल, व्यंजन और पारंपरिक आवास मॉडल शामिल थे। राष्ट्रपति मुर्मु ने प्रदर्शनी का विस्तारपूर्वक अवलोकन किया और विभिन्न समूहों द्वारा प्रदर्शित पारंपरिक तत्वों की विशिष्टताओं को जाना। जनजातीय समाज की सादगी और प्रकृति-आधारित जीवनशैली को दर्शाने वाली सामग्री प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में आगंतुकों की उत्सुकता का केंद्र रही (tribal cultural heritage)।

कार्यक्रम में बनाए गए पारंपरिक अखरा स्थल और देवगुड़ी के मॉडल ने लोगों का विशेष ध्यान आकर्षित किया। अखरा को जनजातीय समाज में सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मुख्य मंच माना जाता है, जहाँ करमा, महादेव बायर, जीवतिया, तीज पर्व, सोहराई, दसेरा और फगवा जैसे पर्वों में सामूहिक नृत्य और लोकगीत प्रस्तुत किए जाते हैं। वहीं देवगुड़ी जनजातीय ग्रामों का धार्मिक केंद्र है, जिसे विभिन्न अंचलों में देवाला, मंदर, सरना आदि नामों से पुकारा जाता है। राष्ट्रपति ने यहां स्थापित देव प्रतिमाओं के समक्ष पारंपरिक रूप से आराधना भी की (tribal cultural heritage)। जनजातीय कलाकारों द्वारा माँदर, ढोल, झांझ, मंजीरा, तंबूरा और बांसुरी की थाप पर प्रस्तुत नृत्य ने पूरे वातावरण को जीवंत कर दिया।

प्रदर्शनी में दिखाया गया जनजातीय आवास मॉडल मिट्टी और लकड़ी से निर्मित पारंपरिक घरों की संरचना को दर्शाता था—खपरैल की ढालदार छत, परछी (बरामदा), एक या दो कमरे और घरेलू उपयोग की पारंपरिक वस्तुएँ जैसे ढेकी, सील-बट्टा और जांता। इन मॉडलों ने दिखाया कि किस प्रकार जनजातीय समाज प्रकृति के अनुकूल सामंजस्यपूर्ण आवास बनाता है, जिसमें उपयोग होने वाली सामग्रियाँ सहज रूप से उपलब्ध होती हैं (tribal cultural heritage)।

प्रदर्शनी में पारंपरिक आभूषणों का बड़ा संग्रह भी रखा गया था। गिलट, चांदी, तांबा और सोने से निर्मित हसुली, बहुटा, ऐंठी, चंदवा, पैरी, बिछिया, ठोठा और छुछिया जैसे आभूषणों को जनजातीय महिलाएँ विशेष अवसरों पर धारण करती हैं। कलिंदर राम ने राष्ट्रपति को पैरी और गमछा भेंट किया, जिसे उन्होंने ससम्मान स्वीकार किया।

कार्यक्रम में जनजातीय समुदाय द्वारा उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों का विशेष खंड भी लगाया गया था। अश्वगंधा, कुलंजन, मुलेठी, सफेद मूसली, गिलोय, लाल झीमटी, गोखरू, अर्जुन छाल और अनेक जड़ी-बूटियाँ उपलब्ध थीं, जिनका उपयोग जनजातीय वैद्य, बैगा, गुनिया और उपचारकर्ता वर्षों से करते आए हैं। यह प्रदर्शनी जनजातीय समाज की पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान-परंपरा का सशक्त परिचय थी।

साथ ही जनजातीय भोजन परंपरा को दर्शाने वाले व्यंजनों की विस्तृत प्रदर्शनी लगाई गई। जंगलों से प्राप्त कंदमूल, फल-फूल, स्थानीय अनाज और देसी मसालों से बने पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद आगंतुकों ने भी जाना। कांदा-पीठारू, नकवा कांदा, डांग कांदा, सखईन कांदा जैसे कंदमूलों के साथ रोटी, चटनी, कोहरी, लड्डू आदि व्यंजनों ने जनजातीय पाक-कला की सरलता और पौष्टिकता को प्रदर्शित किया।