कल दुर्ग में दीक्षा लेगा 13 साल का नन्हा डुग्गू, जैन धर्म के 45 आगम में से 22 आगम कंठस्थ…

ruhaan mehta Diksha
प्राइमरी शिक्षा तो दूर, डुग्गू ने कभी नर्सरी, केजी क्लास की पढ़ाई भी नहीं की
दुर्ग/नवप्रदेश। ruhaan mehta Diksha: माता-पिता का लाड़-प्यार, शरारतें, मस्ती, बेफिक्र जिंदगी और जीवन के हर पल का आनंद लेने का नाम है बचपन… नटखट और नादान जिंदगी का नाम है बचपन… मां के आंचल में लिपट जाने और गोद में सिर रखकर सो जाने का नाम है बचपन… जोधपुर राजस्थान में एक जून 2012 को जन्म लेने वाले बालक रूहान मेहता को सब लोग प्यार से डुग्गू कहते हैं। डुग्गू ने बचपन की शरारतों और खुशियों से भरा जीवन छोड़कर सन्यास लेने का फैसला कर लिया है। खूबसूरत बचपन को छोड़कर वैराग्य का जीवन जीने जा रहे हैं 13 साल के डुग्गू।
30 मई को दुर्ग में आयोजित दीक्षा समारोह में दीक्षा ग्रहण करने के बाद नन्हें रूहान मेहता जीवन की सारी सुख-सुविधाओं को छोड़कर वैराग्य की कठिन राह पर निकल पड़ेंगे। डुग्गू (ruhaan mehta Diksha) कभी स्कूल नहीं गए। प्राइमरी शिक्षा तो दूर, डुग्गू ने कभी नर्सरी, केजी क्लास की पढ़ाई भी नहीं की। बचपन से ही धार्मिकता में रमे रहने वाले इस बच्चे ने खुद में जैनत्व के प्रति आस्था का अथाह सागर समेटने की ललक के साथ अब वैराग्य की कठिन राह पर चलने की तैयारी कर ली है।
यह करिश्मा ही तो है …
इतनी छोटी सी उम्र में डुग्गू को जैन धर्म के 45 आगम में से 22 आगम कंठस्थ हैं। इसे डुग्गू की धार्मिक आस्था का कमाल कहें या ईश्वरीय करिश्मा कहें … डुग्गू ने इस छोटी से उम्र में चार कर्म ग्रंथ के दो हजार सूत्र कंठस्थ कर लिये हैं। प्रतिक्रमण, संस्कृत और अनेक प्राचीन स्तवन (भजन) भी डुग्गू को याद हैं। डुग्गू को दुर्ग में विनय कुशल मुनि जी दीक्षा देंगे। दुर्ग में श्री आदिनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर ट्रस्ट द्वारा दीक्षा कार्यक्रम सत्वनाद संयमोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
सत्यनाद संयमोत्सव समिति के संयोजक कांति लाल बोथरा ने बताया कि 29 मई को सुबह साढ़े 7 बजे से वर्षीदान वरघोडा (शोभायात्रा) के बाद प्रवचन का कार्यक्रम होगा। दोपहर 2 बजे से मेंहदी सांझी और 4 बजे से अंतिम वायणा होगा। सभी कार्यक्रम ऋषभदेव परिसर में होंगे। 30 मई को सुबह साढ़े 7 बजे से लापसी लूट, सुबह 8 बजे से महाभिनिष्क्रमण यात्रा और सुबह साढ़े 8 बजे से दीक्षा विधि प्रारंभ होगी।
दीक्षा लेने के बाद पांच व्रतों का करेंगे पालन
- अहिंसा : किसी भी जीवित प्राणी को अपने तन, मन या वचन से हानि न पहुंचाना
- सत्य : हमेशा सच बोलना और सच का ही साथ देना
- अस्तेय : किसी दूसरे के सामान पर बुरी नजर ना डालना और लालच से दूर रहना
- ब्रह्मचर्य : अपनी सभी इन्द्रियों पर काबू करना और किसी से साथ भी संबंध ना बनाना
- अपरिग्रह : जितनी जरूरत है उतना ही अपने पास रखना, जरूरत से ज्यादा संचित ना करना
दीक्षा के बाद ऐसा होगा डुग्गू का जीवन
दीक्षा लेने के बाद डुग्गू पूरी तरह से सन्यासी जीवन में डूब जाएंगे। दरअसल, दीक्षा (ruhaan mehta Diksha) लेने के बाद सन्यासी जीवन में पदार्पण करते हुए जैन साधु और साध्वियों का जीवन बहुत संतुलित और अनुशासित हो जाता है। सूर्यास्त के बाद जैन साधु और साध्वियां पानी की एक बूंद और अन्न का एक दाना भी नहीं खाते हैं। सूर्योदय होने के बाद भी करीब 48 मिनट का इंतजार करते हैं। उसके बाद ही पानी पीते हैं। जैन साधु-साध्वियां अपने लिए कभी भोजन नहीं पकाते हैं। ना ही उनके लिए आश्रम में कोई भोजन बनाता है।
ये लोग घर-घर जाकर भोजन के लिए भिक्षा मांगते हैं। इस प्रथा को ‘गोचरी’ कहा जाता है। जैन मुनि किसी भी प्रकार की गाड़ी या यात्रा के साधन का प्रयोग नहीं करते हैं। जितना हो सके, पैदल ही चलते हैं और लंबी दूरियां भी चलकर पूरी करने में विश्वास रखते हैं। किसी भी एक स्थान पर अधिक दिनों तक रुकते। बारिश के मौसम के 4 महीने छोड़कर पूरे साल यात्रा ही करते हैं। वे नंगे पैर पैदल चलते हैं। उनका जीवन पूरी तरह से ध्यान और धर्म के प्रति समर्पित हो जाता है।