रायपुर के तालाबों को मरने से बचाने के लिए जिला वेटलैंड संरक्षण समिति को भंग कर उच्च स्तरीय समिति गठित करे: डॉ. गुप्ता

save ponds of Raipur
रायपुर/नव प्रदेश । save ponds of Raipur: रायपुर की जिला वेटलैंड संरक्षण समिति की निरंतर निष्क्रियता और तालाबों (वेटलैंड्स) की रक्षा करने में विफलता और अक्षमता के मद्देनजर रायपुर के सामाजिक कार्यकर्ता एंव ईएनटी विशेषज्ञ ने छत्तीसगढ़ राज्य वेटलैंड अथॉरिटी के वाईस चेयरमैन सह छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर मांग की है कि रायपुर की जिला वेटलैंड संरक्षण समिति को भंग कर दिया जाए और तालाबों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए वैज्ञानिकों सहित एक उच्च स्तरीय समिति गठित की जाए।
मार रहे हैं तालाब तो समिति की क्या जरूरत
डॉ गुप्ता ने चर्चा में बताया कि जिला वेटलैंड संरक्षण समिति (save ponds of Raipur) के अस्तित्व में रहते हुए सभी तालाब मारे जा रहे हैं, ऐसे में जिला वेटलैंड संरक्षण समिति की क्या जरूरत है? जिसने वर्षों से आदेश के बावजूद सभी तालाबों की जांच ही नहीं की है और जिन तीन तालाबों की अधूरी जांच की है उनकी भी रिपोर्ट दबा रखी है। गौरतलब है कि जिला कलेक्टर, वेटलैंड संरक्षण समिति के अध्यक्ष होते है और जिले के वन मण्डल अधिकारी सदस्य सचिव।
कैसे मारते है तालाब, उजाड़ते है चिड़ियाओं का आशियाना
डॉ गुप्ता ने कहा कि अगर किसी स्वच्छ जल वाले तालाब को मारना है, तो बस उसके चारों ओर एक रिटेनिंग वॉल बना दीजिए – इससे जल का रिसाव (पारगमन) रुक जाता है और तालाब धीरे-धीरे मर जाता है और यही रिटेनिंग वाल बना कर सभी तालाबों को मार दिया गया है। करबला तालाब में पहले से ही रिटेनिंग वाल है और खबर आई है कि अब और नई रिटेनिंग वाल बनाई जायेगी। यहाँ तक कि तालाब के बीच में जहा भरपूर जैवविविधता पेड़ पौधे है, जहां वर्ष भर पक्षी चिड़ियाए रहती हैं, उनका घर उजाड़ कर मूर्ति स्थापित की जायेगी। तालाबों के मेंढ पर पहले से ही कंक्रीट पेवर का पाथ वे बना कर जल जाना बंद कर दिया गया है।
मई 2023 की जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं
डॉ गुप्ता ने बताया कि मई 2023 को वेटलैंड अथॉरिटी द्वारा रायपुर जिले की सभी 2.25 हेक्टेयर या उससे अधिक क्षेत्रफल वाले सभी तालाब (आर्द्रभूमियों) की जांच के आदेश दिए गए थे, जिनमें बूढ़ा तालाब, तेलीबांधा, महाराजबांध और करबला तालाब शामिल हैं। इसके बावजूद जुलाई 2023 में कलेक्टर रायपुर द्वारा केवल तीन तालाबों – करबला, झांझ और सेंध – की जांच के लिए तत्कालीन डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) की अध्यक्षता में एक सीमित समिति का गठन किया गया। समिति को दिसंबर 2000 से अब तक का सबसे उच्च औसत बाढ़ जल स्तर (HMFL) निकालना था जिसका कि प्रयास ही नहीं किया गया। नियमों के अनुसार इस स्तर से 50 मीटर के आगे तक कोई भी स्थायी निर्माण कार्य वर्जित है।
जांच के दौरान करोडों में काम सौन्दर्यीकरण के नाम से
डॉ गुप्ता ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि रायपुर प्रशासन और तत्कालीन DFO को पूर्ण जानकारी होने के बावजूद, 2024 की शुरुआत में करोड़ों रुपये के स्थायी निर्माण कार्य जैसे 1.13 करोड़ के सीएसआर फण्ड से पक्के पथों का निर्माण बिना किसी रोक-टोक के करबला तालाब में होते रहे। सेंध जलाशय में जांच चालू रहने के दौरान 17 करोड के कार्य सौन्दर्यीकरण के नाम से करवाए गए और अभी तक वेटलैंड अथॉरिटी को कोई रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं की गई है।