दिल्ली में बस में छेडऩे वालों को चिकोटी काट लेती थी : टिस्का चोपड़ा
फिल्म तारे जमीं पर से चर्चा में आईं ऐक्ट्रेस टिस्का चोपड़ा अब तक करीब 45 फिल्मों में काम कर चुकी हैं। वह फिल्म राइटर हैं, प्रड्यूसर बन चुकी हैं, फिल्म डायरेक्टर भी बनने वाली हैं। अब वह टीवी शो सावधान इंडिया की होस्ट हैं और वेबसीरीज में भी काम कर रही हैं। हाल में ही दिल्ली आईं टिस्का से हुई यह खास बातचीत:
आप अपने शहर में हैं, मुंबई में इसे कैसे मिस करती हैं?
दिल्ली की सड़कें, गोल चक्कर, खाना-पीना, हरियाली और सर्दी बहुत पसंद हैं। मुंबई में ये सब मिस करती हूं। जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा यहां गुजरा है। यहां ठंड में सुबह-सुबह 7:30 बजे बसों में लटकते हुए डीयू पहुंचते थे। नोएडा से 363 नंबर की बस जाती थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी तक खचाखच भरी बस का सफर करना पड़ता था। उतरने के लिए मेरा लास्ट स्टॉप होता था।
उस दौर में बसों में छेड़छाड़ होती थी? आप कैसे निपटती थीं?
हां, बहुत। मैं सेफ्टी पिन अपने साथ रखती थी और छेड़छाड़ करने वालों को चिकोटी काट लेती थी। अब लड़कियों के लिए सलाह है कि सीधा चांटा मारो।
ऐक्टिंग का शौक कहां से शुरू हुआ?
ढाई साल की उम्र से। मेरे माता-पिता जहां पढ़ाते थे, वह एक बोर्डिंग स्कूल था। वहां बचे 6 या 8 साल से पहले नहीं आते थे। वहीं एक प्ले में छोटे बचे का रोल था, स्टेज पर चलकर जाना था तो उसके लिए मुझे ही चुन लिया गया। मैं जैसे ही स्टेज पर पहुंची, तो वहीं अटक गई, मैं उस जगह को इन्जॉय करने लगी और सोचा कि यहीं मुझे आना था। उसके बाद स्कूल और कॉलेज सभी जगह के प्ले में हमेशा हिस्सा लिया करती थी।
फिल्म तारे जमीं पर में एक मां के रोल को चुनना, डर नहीं लगा था कि उसके बाद बॉलिवुड में टाइप्ड हो सकती हैं?
हां, तारे जमीं पर के बाद ठीक वैसे ही रोल मिले, पर जैसे किसी सिंगर के लिए जिंदगी भर एक ही राग गाना मुश्किल होता है, वैसे एक क्रिएटिव पर्सन के तौर पर आप रुटीन से हटकर रहते हो। रेग्युलर से अलग रहते हैं, बाद में आपका अलग होना भी रेग्युलर हो जाता है। लेकिन क्रिएटिव पर्सन के तौर पर मैंने अलग-अलग रोल किए। उसके बाद मैंने फिल्म दिल तो बचा है जी में काम किया, फिर रहस्य, अंकुर अरोड़ा मर्डर केस, चटनी शॉर्ट फिल्म और 24 टीवी शो।
अब टीवी के लिए आने के लिए आपने एक क्राइम बेस्ड शो क्यों चुना?
टीवी पर बहुत कुछ आता है जिसके लिए मुझे ऑफर आ रहे थे, लेकिन यह एक आइकॉनिक शो है, इस शो के साथ बड़े नाम जुड़े रहे हैं। मुझे इस शो की इंटेंशन अछी लगी, ये मेरे लिए बहुत जरूरी है। यह नेगेटिविटी नहीं बढ़ाता, बल्कि इंफोटेनमेंट का शो है। इसका काम है सोसायटी की नेगेटिविटी दिखाकर समाज को सावधान रखना।
क्या ऐसा नहीं है कि ऐसे शोज क्राइम बढ़ाते हैं, कई क्रिमिनल यह बताते हैं कि फलां शो को देकर क्राइम को अंजाम दिया?
यह तो वही बात हो गई कि आपने टेबल पर खाना देखा और ठूंसठूंस कर खाया और फिर पेट खराब कर लिया। अगर किसी को नीयत होगी और उसे क्राइम करना है, तो वह इस टीवी का इंतजार तो नहीं करेगा। फिर तो इंटरनेट, गूगल भी नहीं होना चाहिए, किताबें भी नहीं होनी चाहिएं। फिल्में और अखबार भी नहीं होने चाहिए, क्योंकि इनसे भी उन्हें क्राइम के बारे में पता चलता है। तो हम सिर्फ यह बता रहे हैं कि कैसे क्राइम होता है और कैसे बचाव करना है। यादातर ऐपिसोड महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हैं, कैसे लोग सोसायटी के दबाव में आकर पैरंट्स की बात मान जाते हैं और फिर क्राइम होते हैं। इसके अलावा मोबाइल फोन से जुड़े बहुत से क्राइम हैं। इसके बारे में तो कोई बात ही नहीं कर रहा।
आप ऐक्ट्रेस, राइटर, प्रड्यूसर हैं और डायरेक्टर के तौर पर भी डेब्यू करने वाली हैं? एक साथ इतना सारा काम कैसे मैनेज कर लेती हैं?
जी, लेकिन डायरेक्शन में अभी समय लगेगा। अभी तो मैंने फिल्म लिखने की शुरूआत की है। इसमें 6 महीने तो लगेंगे ही। इसके अलावा मैंने हाल में ही करण जौहर के प्रॉडक्शन की फिल्म गुड न्यूज खत्म की है। काम मैनेज करना सीखना है, तो आप अक्षय कुमार को देंखें, मुझे उनसे सीखना है। मैंने अभी उनके साथ फिल्म की है, पांच कमरों में अलग- अलग लोगों के ग्रुप बैठे होते हैं, वह कहीं सॉन्ग के लिरिक्स डिस्कस करते हैं, तो कहीं डायलॉग्स, और साथ-साथ उनका शूट भी चलता है। कैसे मैनेज कर लेते हैं वह?
आपने विमन सेफ्टी की बात की, जब आप फिल्म बनाएंगी तो क्या ऐसे किसी टॉपिक को ध्यान में रखेंगी?
फिलहाल तो मैं थ्रिलर फिल्म बना रही हूं।
खुशवंत सिंह की फैमिली का होने की वजह से जिम्मेदारी बढ़ जाती है?
नहीं, मैं बिल्कुल डिफरेंट प्रफेशन से हूं, करीना, करिश्मा या रणबीर कपूर से तो लोगों की उम्मीदें होंगी। लेखक के परिवार से हूं, और मैं राइटिंग कर रही हूं, तो फिल्म की। वैसे मेरी अपेक्षा खुद से ही इतनी यादा हैं कि लोगों की उम्मीदें कम पड़ जाएंगी। मैं खुद ही अपने से प्रेशर में रहती हूं।
आपकी शॉर्ट फिल्म चटनी काफी सराही गई, आपने नए लुक से चौंका दिया था?
मुझे खुशी है कि मेरी शॉर्ट फिल्म चटनी लोगों को इतना यादा पसंद आई। लोग पूछते हैं कि वह कहानी थी या सच, शायद वह पत्नी दूसरी औरत को चौकन्ना करना चाहती थी।
आपको भी ऐसा लगता है कि बाकी शहरों से दिल्ली के थिअटर यादा मजबूत हैं?
हां, यहां नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा है, तो उसका इन्फ्लूएंस तो है ही। फिर डीयू के कॉलेजों के थिअटर ग्रुप काफी अछे हैं। हिंदू कॉलेज से मैं हूं, विशाल भारद्वाज, रेखा भारद्वाज भी हैं। इसके अलावा शाहरुख खान हंसराज कॉलेज से हैं। किरोड़ीमल कॉलेज से अमिताभ बचन, सतीश कौशिक जैसे नाम हैं। मुझे लगता है कि ये कॉलेज नॉर्थ इंडिया में हैं, तो वहां का सारा टैलंट दिल्ली में आ जाता है। इसलिए यहां थिअटर भी बढिय़ा काम कर रहा है।
पिछले दिनों कलाकारों में सीधे बंटवारा देखा गया था, सरकार के पक्ष या विरोध में पहली बार इतने कलाकार सामने आए थे।
मैं इस पर यादा कुछ नहीं कह सकती, क्योंकि मैं पॉलिटिक्स में यादा इन्वॉल्व नहीं हूं। मैं वोट करती हूं, पर मैं इसमें रुचि नहीं रखती। दुर्भाग्य से मुझे अब तक पॉलिटिकल लीडर्स से निराशा ही मिली है। मैं किसी भी पार्टी से बहुत दूर रहती हूं, सभी देश को बेचने में लगे हैं। मैं वाकई निराश हूं।
पिछले दिनों मीटू मूवमेंट ने जोर पकड़ा था फिर अचानक ठंडा पड़ गया। आपको लगता है कि इसका इम्पैक्ट उतना हुआ जितना जरूरी था? आपके सामने कोई केसेज आए?
मुझे लगता है कि मीटू मूवमेंट का गहरा असर पड़ा है। अब कोई भी आसानी से किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता। बड़े-बड़े नाम सामने आ गए। लोग डर गए हैं। मैं बिल्कुल अलग तरह के परिवार से आई हूं। आप देख ही रही हैं मैं ऐसी नहीं हूं कि कोई आसानी से मुझे कुछ कह सके। मैं स्ट्रेट फॉर्वर्ड और स्ट्रॉन्ग रही हूं। और किसी ने कुछ बोला भी तो हंसकर टाल दिया।