इति श्री सियासी पुराण-अक्कड़-बक्कड़-बूझ-भूलक्कड़

इति श्री सियासी पुराण-अक्कड़-बक्कड़-बूझ-भूलक्कड़

(मधुकर दुबे)

कहीं खुशी तो कहीं गम
बड़के लड़ाकू और खुर्राट थे नेता जी! जब विपक्ष में थे तो सत्ता पक्ष की बैंड (Ruling party band) बजाकर रख दी थी। गाहे-बगाहे वे हर एक मुद्दे पर जुबानी जंग में भी कूद पड़ते थे। अगर कहीं सत्ता पक्ष के विरोध में विभिन्न संगठनों के आंदोलन होते तो वहां जाकर खुद और पार्टी की ओर से समर्थन व्यक्त करते। जहां माइक पर सत्ता पक्ष की बखिया उधडऩे से भी गुरेज नहीं करते। लंबी-लंबी डींगे हांकते हुए कहते थे कि सत्ता में आए तो ये कर देंगे, वो काम करा देंगे। खैर नेता जी की सरकार आ गई, पर ये क्या, नेता जी की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। ऐसा दंश झेल रहे नेताओं की एक मंडली ने मंडल-आयोग में अध्यक्ष बनने अपने-अपने आकाओं की परिक्रमा की। उनको लगा अब दिन बदलेंगे, पर ये क्या सूची जारी होते ही। कहीं-खुशी तो कहीं गम का दर्द छलक पड़ा। कुछ को कोई पद नहीं मिलने का मलाल तो किसी को छोटे पद मिलने की नाखुशी। इधर, झंडा लेकर जमीनी और पुराने नेताओं को नागवार लगा कि कुछ को छोड़ दिया जाए तो इसमें अधिकांश जनता से कम संगठन से ज्यादा जुड़े हैं। तर्क-वितर्क का दौर सोशल मीडिया में चलने लगा। जिस पर एक मंत्री जी बोले, पार्टी का जो फैसला है, वह सर्वोपरि।

का मैं बोलूं, जो लिखे हैं वो समझ लें

का मैं बोलूं, जो उत्तर में लिखें है, उसे ही मेरा जवाब समझ लीजिए? उस मंत्री के इस मंत्र से उनके ही विधायक जी बिलबिला उठे। कहा-अजीब विडंबना है। जवाब कुछ और सवाल का जवाब उत्तर में कुछ और लिखा है। अब कुछ समझ में आया भाई! ये वाकया था, विधानसभा सत्र का। वैसे ये नजारे कई बार सदन में दिखे, जब छत्तीसगढ़ की राजनीति के महान पुरोधा डॉक्टर साहब को आसंदी के रूप में कमान संभालनी पड़ी। वे खुद आगे आकर पक्ष हो या विपक्ष के सदस्य सबके सवाल मंत्रियों को और उनके जवाब के मायने समझाते दिखे। यानी कहा जाए तो वे एक रक्षा कवच बनकर पूरी सरकार की जवाबदारी तय कर रहे थे। वैसे ये हालिया प्रसंग में फीट नहीं बैठता। फिर भी चर्चा के बहाने यहां जिक्र करना लाजमी होगा कि छत्तीसगढ़ में अभी तक जितने भी विकास कार्य हुए हैं, सब उनके ही कार्यकाल के हैं। क्योंकि कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार ने पांच साल तो सिर्फ आपस में गुटबाजी और खाने-कमाने में लगा दिए। उस दौर का घटनाक्रम आज भी जनता को याद है। खैर साय सरकार की भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी सुशासन की कार्यशैली का पूरा प्रदेश कायल हो गया है। जो जवाब दे पाएं या न दे पाएं लेकिन धरातल पर तो काम ही बोलता है जनाब।

कका बड़े होशियार

कका की चाल! और होशियारी तो काबिल-ए-तारीफ है। हर बात की मीन-मेख निकालने में महारथी थे। उनके दौर में जो काम हुए थे, उसकी तासीर को भलीभांति समझते और जानते हैं। जब सत्ता में थे तो उनके ईद-गिर्द ऐसी मंडली ने घेराबंदी की, उनके सारे काम का गुड़-गोबर कर दिए। इनकी पार्टी में कुछ मंथरा रूपी चालाक और मौका परस्तों ने उनके कान राजा जी के खिलाफ भर दिए। फिर क्या दिल्ली से वरदान में राजा जी को निपटाने का वरदान मांग लाए। उनकी चौकड़ी ने ऐसा रंग दिखाया कि जनता भी हैरान हो गई, क्योंकि राजा जी पर जान से मारने के झूठे आरोप लगाए जाने का नजारा भी लोगों ने देखा। इसी बीच सूर्या बल्ब की रोशनी ने घोटालों की क्रांति की अलख जगाई कि कुर्सी ही उड़ गई। आरोप और जांच झेलने लगे। जब सदन में पैर दबाके आते जब देखते ही अब घिर जाएंगे तो वॉकआउट-वॉकआउट चिल्लाते चले जाते। जैसे देखते कि अब बजट पर चर्चा है तो आते धीरे से शिगूफा छोड़ जाते और फिर सत्ता पक्ष में हंगामा। इनके साथ नेता जी बड़े ही सधे अंदाज में सभी को पस्त करते। खैर, अब कका किसी जांच एजेंसी से डरने वाले नहीं हैं। उनका एक राग है सब मिथ्या आरोप है! लेकिन उनकी मंडली ने भी बहुतेरों पर फर्जी मुकदमे कराए थे, तो क्या वह सही थे ?… शायद वे समझ गए होंगे कि व्यक्ति नहीं समय बलवान होता है। सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं।

दो-दूनी-दो-पानी पिला दियो

दो फॉयर ब्रांड कमल छाप वाले नेता जी। इन्होंने पूरे विस सत्र में दो-दूनी-दो पानी पिला दियो वाली कहावत को चरितार्थ करते दिखे। ये कोई और नहीं पुरातन और जुझारू पद्धति से ओतप्रोत दोनों नेता जी हैं, इनके सवालों के तीखेपन के मुरीद पक्ष और विपक्ष सभी हैं। क्योंकि लोकतंत्र के मंदिर में वे जब होते हैं, वे सिर्फ जनता के लिए लड़ते हैं। वे अपनी सरकार के मंत्रियों को भी घेरने में थोड़ा भी संकोच नहीं करते। ये तारीफ नहीं है भाई, अब तो जनता भी कहती दिख रही है। इसके कारण भी अब चर्चाएं आम है कि ये दो विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने अपने मंत्रित्वकाल में ईमानदारी से काम किए। आरोप लगे लेकिन पूर्ववर्ती सरकार एक भी आरोप सिद्ध नहीं कर पाई। लिहाजा, उनकी हिम्मत और आत्मविश्वास का जलवा तो हर सत्र में दिखेगा ही। वैसे इनके विरोधी कहते हैं कि कोई पद नहीं मिला है इसलिए आक्रामक हैं। जब पीएम मोदी दौर पर आए तो ये दोनों नेता मिलने वालों की कतार में काफी पीछे खड़े थे। लेकिन जैसे ही मोदी जी इनके पास से गुजरे तो खिलखिलाकर हंस पड़े, बहरहाल, क्या कुछ हुआ ये तो पता नहीं। पर ऐसी तस्वीर को लेकर तमाम चर्चाएं हो रही हैं। भले ही कोई सामान्य सी बात रही हो, पर इनकी कीमत इससे पता चलती है।

गुरू छा गया आंय-बांय-सांय

छत्तीसगढ़ की सियासत में इस वक्त सांय-सांय जैसा शब्द बड़ा ही मशहूर हो चुका है। लेकिन विपक्ष ने इसके जवाब में बांय-बांय शब्द का अविष्कार कर लिया है। विकास की बात पर सत्ता पक्ष कहता है कि विष्णुदेव साय के सुशासन में सांय-सांय विकास हो रहे हैं। इधर विपक्ष किसी भी प्रकार की सत्ता की विसंगतियों को लेकर आंय-बांय-सांय का तकिया कलाम पढ़ता है। मोदी की गांरटी में आवास मिल रहे हैं तो विपक्ष कहता है कि हमने पहले ही इतनों को आवास दे दिया था, जिस सत्ता पक्ष के नेता जी कहते हैं, जब जनहित में काम हो रहे हैं तो इनके पेट में दर्द क्यों हो रहा है, इससे विपक्ष आंय-बांय-सांय करने लगा है।

सुरापान पर क्यों बरपा हंगामा

जब समुद्र मंथन करने की बारी आई तो देवता और राक्षस दोनों की सहभागिता थी। दोनों ने मंथन किया तो नवरत्न और अमृत निकला। जिस पर दोनों में टकराव भी हुए। मंथन से निकले विष को शिव ने पान कर उसे गले में रोका तो नीलकंठ कहलाए। इसके बाद मदिरा यानी सुरापान का प्राकट्य हुआ। जिसे बड़ी तमन्यता से दोनों पक्षों ने आधा-आधा बांट लिया। शायद इसकी प्रासंगिकता आज किसी अमृत और लक्ष्मी से कम नहीं। क्योंकि कई राज्यों में हुए शराब घोटालों ने इसे साबित कर दिया कि अब समुद्र मंथन नहीं मदिरा मंथन से लक्ष्मी की प्राप्ति के योग भी बनते हैं। यहां भी टैक्स में छूट देकर सुराप्रेमियों को बड़ी राहत दी गई तो विपक्ष क्यों हंगामा करने लगा

बेचारे पड़ोसी भी घनचक्कर में

सुना है अब जांच एजेंसियां आरोपियों के यहां नहीं, उनके पड़ोसियों के घर भी पहुंचने लगी है। महादेव सट्टा एप ने तो विपक्ष के नेताओं के दांत खट्टे कर दिए हैं। और उनके करीबियों और पड़ोसियों को भी पूछताछ करने से बाज नहीं आ रही है। भ्रष्टाचार रूपी कुएं को जितना खोदेगो, उतने आरोपी जल के साथ उतराए नजर आएंगे। एक भाईजान कहते हैं कि मियां ये प्याज का छिलका है, उतारते जाओ लेकिन प्याज की आत्मा नहीं मिलेगी। क्योंकि वह तो जन्नत यानी दुबई में है। वहां अगर हो तो कुछ हो सके तो हाकिम कराएं, शायद इस पर अंकुश लग सके। वैसे जिन वकील ने शिकायत थी, महादेव एप के जरिए आतंकवादी वित्त पोषित व्यवस्था की जड़ों को सिंचित कर रहा है।

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