संपादकीय: सहकारिता आंदोलन को तेज करने की जरूरत
Co-operative movement: छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन को तेज करने की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। किन्तु पूर्ववर्तीय कांग्रेस शासनकाल के दौरान सहकारिता क्षेत्र की घोर उपेक्षा की गई।
नतीजतन प्रदेश की सहकारी समितियों (Co-operative movement) और सहकारी बैंकों की स्थिति दयनीय हो गई। सहकारी बैंकों से लेकर सहकारी समितियों तक में कर्मचारियों की कमी हो गई।
जिसकी वजह से उनका कामकाज प्रभावित होने लगा और किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बिन सहकार नहीं उद्धार का नारा अपनी सार्थकता खो बैठा था।
बहरहाल यह संतोष का विषय है कि विष्णुदेव साय सरकार ने अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर सहकार से समृद्धि की परिकल्पना को साकार करने का संकल्प लिया है।
ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और ज्यादा मजबूती दी जा सके। इसके लिए छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए ठोस रणनीति बनाई जा रही है।
इसके तहत छत्तीसगढ़ की सभी 11 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों में सहकारी समितियों के गठन का निर्णय लिया गया है। यह बहुत बड़ा फैसला है।
गौरतलब है कि वर्तमान में प्रदेश में सिर्फ 2 हजार सहकारी समितियां (Co-operative movement) हैं और लगभग ढाई हजार धान उपार्जन केन्द्र है। इनमें से भी ज्यादातर सुविधा विहीन हैं।
जहां मुख्य रूप से कर्मचारियों का टोटा विकट समस्या है। सबसे पहले इन सहकारी समितियों में व्याप्त समस्याओं का समाधान प्राथमिकता के आधार पर करना होगा।
क्योंकि जल्द ही धान की खरीदी फिर से शुरू होने वाली है। इसके बाद नई सहकारी समितियों (Co-operative movement) का जाल बिछाने का काम युद्ध स्तर पर शुरू करना होगा तभी किसानों को इसका समुचित लाभ मिल पाएगा।
इसके अलावा प्रदेश के जिन जिला सहकारी बैंकों में जन प्रतिनिधि के रूप में अध्यक्ष नहीं हैं वहां जल्द से जल्द अध्यक्ष का मनोनयन भी किया जाना चाहिए। ताकि बैंकों का काम सुचारू रूप से चल सके।