पालघर की आदिवासी महिलाएं सीख रही हैं बांबु का चंद्रपूर पैटर्न
“बांबू वुमन आॕफ महाराष्ट्र” दे रही हैं प्रशिक्षण
मुकेश वालके,चंद्रपूर, नवप्रदेश। Bambu Pattern : चंद्रपुर की मिनाक्षी वालके “बांबू वुमन ऑफ महाराष्ट्र ” के रूप में विश्व विख्यात हैं। उनके बांबू से कौशल विकास और रोजगार निर्माण के कार्य का संज्ञान देश ने ही नही अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लिया जा चुका है।
नक्सलग्रस्त गडचिरोली में 25 युवतियों का सक्षमीकरण करने के बाद मिनाक्षी वालके अब पालघर की भील, कोरकू आदिवासी महिलांओ को बांबू कला के गुर सीखा रही हैं। वसई तहसील के भालीवली गाव में 20 आदिवासी महिलांओ को बांबू राखी, दीप और गहने बनाने का दस दिनों का प्रशिक्षण शुरु है।
चंद्रपुर की मिनाक्षी मुकेश वालके ने अपने साथ ही अपनी बांबू कलाकृतियों को नई पहचान दिलाई। बांबू से निर्मित उनकी अनेक कलाकृतियो की विश्व स्तरपर सराहना की गई। इस कला (Bambu Pattern)से आर्थिक आय भी संभव हैं, यह उन्होंने दिखा दिया। मीनाक्षी अनेक गरीब, होनहार महीलांओ को वे प्रशिक्षण देती हैं। उसी का संज्ञान लेते हुए पालघर की आदिवासी महीलांओ को प्रशिक्षण देने उन्हें आमंत्रित किया गया। विवेक रुरल डेव्हलपमेंट के सेवा विवेक प्रकल्प में मीनाक्षी का प्रशिक्षण 3 अप्रेल से शुरू हुआ हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल महामहिम भगतसिंग कोश्यारी ने प्रशिक्षण के पहले 2 अप्रैल को इस कार्य का जायजा लेकर शुभकामनाएं प्रेषित की थी।
सेवा विवेक के प्रदीप गुप्ता के मार्गदर्शन तथा लुकेश बंड और प्रगती बांगर के निरीक्षण में यह प्रशिक्षण जारी हैं और बांबू राखी को संपूर्ण देश के अलावा 5 यूरोपीय देशों में लोकप्रिय बनानेवाली मीनाक्षी वालके के प्रशिक्षण से पालघर जिले के बांबू राखी के कार्य को नई ऊर्जा मिलेगी, ऐसा विश्वास व्यक्त किया गया हैं। मीनाक्षी ने फरवरी माह में नक्षलग्रस्त गडचिरोली के 25 युवा युवतियों को 40 दिन बांस की बेहतरीन कारीगरी सिखाई हैं। उसके बाद नाबार्ड और उमेद अभियान के संयुक्त तत्वावधान में औरंगाबाद की MIT संस्था की ओर से रोटेगाव मे मीनाक्षी ने बचत गटकी महिलांओ को बांबू कलाकृतियों के आधुनिक गुर सिखाए। मीनाक्षी को आनेवाले समय में मराठवाडा के उस्मानाबाद, झारखंड के रांची, छत्तीसगड के बस्तर, पश्चिमबंगाल के कोलकाता, उत्तराखंड, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यो से महिलांओ को बांबू कला (Bambu Pattern)के गुर सीखाने के निमंत्रण मिले हैं।
महज 29 साल की मीनाक्षी अपने 6 साल के बेटे को संभालते हुए महिलांओ के सक्षमीकरण का रथ आगे ले जाने निकल पड़ी हैं। इजराइल के जेरुसलेम की एक आर्ट स्कूल मे सिखाने का निमंत्रण प्राप्त मीनाक्षी को कनाडा की इंडो कॅनेडियन आर्ट अँड कल्चरल इनिशिएटिव्ह संस्था का पुरस्कार मिला हैं। इसके अलावा यशवंतराव चव्हाण सेंटर का बांबू उद्योग हेतु विशेष पुरस्कार 23 अप्रैल को प्रदान किया जा रहा हैं। मीनाक्षी स्वयं ग्रामीण क्षेत्र से हैं और बेहद गरिबी तथा अभाव की विपरित स्थितियों में उन्होंने सन 2016-17 से उन्होंने कला से रोजगार की तपस्या शुरू की। उसके बाद उन्होंने बांबू क्षेत्र को 5 नई डिजाइन दी। बांबू का क्यू आर कोड स्कैनर यह उनका डिजाईन विशेष सुर्खियों मे रहा।
मीनाक्षी वालके की माने तो “बांबु को फ्युचर मटेरियल ” के रूप मे आज जान रही दुनिया को बांबु कला का दान देनेवाले भारत में इससे क्रांती हो यह मेरा लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि महिलांओ को शास्वत रोजगार देने की क्षमता बांबु में हैं। आदिवासी महिलांओ में इस कला का पीढ़ीगत ज्ञान होने से उनके उत्कर्ष हेतु मेरा समूचा महाराष्ट्र और देश भ्रमण का विचार है।