संपादकीय: एक देश एक चुनाव की राह आसान नहीं

संपादकीय: एक देश एक चुनाव की राह आसान नहीं

The path to one country, one election is not easy

The path to one country, one election is not easy

The path to one country, one election is not easy: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भारी हंगामों के बीच सरकार ने बहुप्रतिक्षित एक देश एक चुनाव विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया जिस पर मतदान के दौरान विपक्ष ने हंमागा किया लेकिन बहुमत से यह प्रस्ताव सदन में स्वीकृत हो गया केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह विधेयक पेश किया जिस पर प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित आईएनडीआईए में शामिल सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और इस विधेयक का जमकर विरोध किया।

कांग्रेस पार्टी की ओर से इस विधेयक पर चर्चा के दौरान सांसद मनीष तिवारी ने एक देश एक चुनाव विधेयक को संविधान के खिलाफ बताया। वहीं समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेन्द्र यादव ने तो इस विधेयक को अल्पसंख्यकों और दलितों के खिलाफ बताया। अन्य विपक्षी नेतओं ने भी इसमें मीन मेख निकाले और इसे संविधान तथा संघवाद के विरूद्ध बताया।

इस विधेयक के पक्ष में 269 मत पड़े। वहीं इसके विरोध में 198 वोट पड़े। सदन में पारित होने के बाद इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समीति के पास भेजने का प्रस्ताव पारित हुआ। इस विधेयक पर सरकार का पक्ष रखते हुए केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंंत्री मेघवाल ने विपक्ष की आशंकाओं को दूर करने के लिए यह तर्क दिया कि यह विधेयक संविधान सम्मत है और इससे किसी भी रूप में राज्यों की शक्तियां कम नहीं होंगी।

इस विधेयक से संविधान के मूल ढांचे में भी किसी तरह की कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। इसके बावजूद विपक्ष ने एक देश एक चुनाव विधेयक का भारी विरोध किया। विपक्ष का यह विरोध समझ से परे है। आजादी के बाद 1967 तक देश में लोकसभा और देश के सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराये जाते थे।

दो दशकों तक देश में एक देश एक चुनाव होते रहे है ऐसी स्थिति में इस विधेयक को संविधान विरोधी कैसे कहा जा सकता है। यदि यह संविधान के खिलाफ है तो क्या देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडि़त जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक सब क्या संविधान विरोधी थे।

जाहिर है यह विधेयक संविधान सम्मत है। किन्तु इसका विरोध सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि विपक्षी पार्टियों को अगले होने वाले चुनावों में अपनी हार का खतरा नजर आ रहा है। यदि एक देश एक चुनाव विधेयक पारित होकर कानून का रूप ले लेगा तो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने पर चुनाव में होने वाले हजारों करोड़ रूपये कि बचत होगी और बार बार चुनाव होने के कारण लगने वाली आचार संहिता की वजह से जो विकास कार्य रूकते हैं वे भी अब अवरोध नहीं बनेंगे।

जिससे देश का तेजी से विकास होगा और ऐसा हुआ तो विपक्ष के लिए एनडीए को हरा पाना और भी ज्यादा मुश्किल हो जायेगा। यही वजह है कि विपक्ष इस विधेयक की खिलाफत कर रहा है। वैसे भी एक देश एक चुनाव विधेयक की राह आसान नहीं है। इस विधेयक के लिए संसद में सरकार के पास दो तिहाई बहुमत होना चाहिए जो लोकसभा में नहीं है।

जिस तरह पूरा विपक्ष इस विधेयक के विरोध में उठ खड़ा हुआ है उसे देखते हुए सरकार के लिए कुछ विपक्षी पार्टियों का समर्थन जुटाना कठिन होगा। देखना होगा कि सरकार एक देश एक चुनाव विधेयक के पक्ष में दो तिहाई बहुमत जुटाने में कितनी सफल हो पाती है।

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