पद्मश्री स्व. डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की स्मृति को चिरस्थाई बनाया जाए

The memory of Dr Surendra Dubey should be made everlasting
The memory of Dr Surendra Dubey should be made everlasting: दुर्ग जिले और पूरे छत्तीसगढ़ का देश व दुनिया में नाम रौशन करने वाले अंतर्राष्ट्रीय हास्य कवि पद्मश्री स्व. डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए राज्य सरकार को सार्थक पहल करनी चाहिए। उनकी स्मृति को अक्षुण्य बनाना ही स्व. डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अविभाजित दुर्ग जिले के बेमेतरा में जन्में डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे पेशे से आर्युवेदिक चिकित्सक थे, किन्तु उन्होंने एक हास्य कवि के रूप में देश व दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई थी।
साहित्य सेवा के लिए उन्हें कई सम्मान मिले थे और फिर उन्हें सरकार ने पद्मश्री के गौरवशाली सम्मान से विभूषित किया था। डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे ने अपनी हास्य रचनाओं से न सिर्फ लोगों को गुदगुदाया बल्कि देश व दुनिया में छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति का भी प्रचार किया उनकी छत्तीसगढ़ी रचनायें पूरे देश में सुनी जाती रही है। ऐसी महान विभूति को सही सम्मान देना छत्तीसगढ़ सरकार का दायित्व बनता है।
इस संदर्भ में वैशाली नगर के विधायक रिकेश सेन ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मांग की है कि छत्तीसगढ़ के हर जिले में कम से कम एक सरकारी संस्थान का नाम पद्मश्री डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे के नाम पर किया जाये। उनकी यह मांग न्यायोचित है। उम्मीद की जानी चाहिए की राज्य सरकार उनकी मांग पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगी और यथाशीघ्र उचित निर्णय लेगी। क्योंकि दुर्ग डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की कर्म भूमि रही है। इसलिए दुर्ग जिला मुख्यालय में डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की स्मृति में किसी सरकारी भवन का नामकरण किया जाना सर्वथा उपयुक्त होगा।
इस संदर्भ में दुर्ग के एक सामाजिक कार्यकर्ता शत्रुंजय तिवारी ने सुझाव दिया है कि दुर्ग के प्राचीन व ऐतिहासिक हिन्दी भवन में डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की स्मृति में अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण एक वाचनालय प्रारंभ किया जाये। अन्य सहित्यिक संस्थाओं ने भी डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की स्मृति में इसी तरह के कारगर कदम उठाने की आवश्यकता प्रतिपादित की है। दुर्ग जिला मुख्यालय में स्थित हिन्दी भवन में डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की स्मृति में सार्वजनिक वाचनालय प्रारंभ करना सबसे उपयुक्त कदम होगा।
गौरतलब है कि ब्रिटिश शासनकाल में 1911 में हिन्दी भवन बना था जिसका नाम एडवर्ड हाल रखा गया था। 1915 में जिसके ऊपरी मंजिल पर सार्वजनिक वाचनालय प्रारंभ किया गया था। आजादी के बाद भी हिन्दी भवन अविभाजित दुर्ग जिले की साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र रहा और इसे हिन्दी भवन का नाम दिया गया था। सातवें दशक में दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति की गतिविधियां यही से संचालित होती थी।
बाद में यहां ऊपरी मंजिल पर आयुर्वेद महाविद्यालय प्रारंभ हुआ था जहां आयुर्वेद रत्न और साहित्य रत्न की परिक्षायें आयोजित की जाती थी उसी समय कुछ समय तक वीणा पाणि साहित्य समिति की सहित्यिक गतिविधियों का भी यह केन्द्र बना रहा और नीचे की मंजिल पर दुर्ग नगर निगम का सार्वजनिक वाचनालय संचालित होता रहा। इस तरह हिन्दी भवन लगभग सौ सालों तक साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बना रहा और हिन्दी भवन के नाम को सार्थक करता रहा।
2006 में यहां दुर्ग नगर निगम का मुख्यालय स्थापित कर दिया गया और 2013 से हिन्दी भवन को संभाग आयुक्त का कार्यालय बना दिया गया। अब जबकि दुर्ग नगर निगम का नया मुख्यालय बन चुका है तो संभाग आयुक्त का नया कार्यालय भी जिला कचहरी के पास स्थापित किया जाना चाहिए और हिन्दी भवन की पुरानी गरिमा लौटाई जानी चाहिए। हिन्दी भवन में पद्मश्री डॉक्टर सुरेन्द्र दुबे की स्मृति में अत्याधुनिक सार्वजनिक वाचनालय प्रारंभ किया जाना चाहिए। ऐसा करके ही हम डॉक्टर सुरेन्द्र दूबे को सच्ची अर्थों में श्रद्धांजलि अर्पित कर पायेंगे।
दुर्ग जिले के साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी ऐसी भी मंशा है इसलिए प्रदेश की विष्णुदेव सरकार से अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह जनभावनाओं के अनुरूप दुर्ग के ऐतिहासिक हिन्दी भवन को एक बार फिर साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बनाये और डॉक्टर सुरेन्द्र दूबे की स्मृति को अक्षुण्य बनाये।