Teeja Festival : कडुभात खा कर शुरू उपवास, माता पार्वती को इस व्रत से मिले थे शिव
रायपुर/नवप्रदेश। Teeja Festival : छत्तीसगढ़ में तीजा यानी हरतालिका व्रत का खास महत्व है। इस पर्व के लिए कई दिन पहले से ही विवाहित महिलाओं को सम्मान पूर्वक ससुराल से मायके लाने की प्रथा है। जिसे तिजहारिन (तीजा मनाने वाली) कहा जाता है।
परिवार का मुखिया, चारे भाई हो, पिता, चाचा या नजदीकी कोई रिश्तेदार, तिजहारिन यानि घर की बेटी को ससुराल से मायके ले आते है, जिसे लेवाल कहा जाता है। इसी लेवाल का इंतजार नव विवाहिताओं से लेकर उम्रदराज तक की महिलाओं को रहती है। छत्तीसगढ़ में यह एक समृद्ध परंपरा में शामिल है।
तीजा के एक दिन पहले कडू भात (करेले की सब्जी युक्त भोजन) खाने की परंपरा है। इसी के साथ ही महिलाएं उपवास को आरंभ करती है। बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में तो तिजहारिन गांव के नाते रिश्तेदारो के घर कडू भात खाने का आमंत्रण करके बुलाया जाता है, जो मायके में उनके प्रति बड़े सम्मान को प्रदर्शित करता है।
सुहागिनों के लिए यह पर्व मायके में मान-सम्मान के साथ पूर्ण करने वाला तथा माँ-बाप, भाई-बहन के साथ रिश्तो में प्रगाढ़ प्रेम व मिठास का व्रत-त्योहार है। तीजा (Teeja Festival) के दुसरे दिन चतुर्थी को इन व्रत धारी तिजहारिनो को पुन: गांव के नाते रिश्तेदार फरहार (उपवास का पकवान- तिखूर, सिघाडे का हलवा, आदि) करने के लिए आमंत्रित करते है तथा नया साड़ी, श्रृंगार सामग्री देते है। इस तरह छत्तीसगढ़ में तीजा मनाने की परंपरा है।
माता पार्वती ने रखा था व्रत
महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने तीजा (Teeja Festival) हरतालिका व्रत के पीछे के पौराणिक कथाओं को बताते हुए कहा कि साल भर के समस्त तीज त्यौहारो मे यही एक ऐसा त्यौहार है जिसका उपवास माताएँ बहने पिता के घर जाकर पति के लिए रखती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप मे पाने के लिए किया था। जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान शंकर की अर्धागिनी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तब से माताएँ-बहने इस व्रत को रखते आ रही है।
इतनी कठोर थी माँ पार्वती की तपस्या
पंडित मनोज शुक्ला ने कहा कि भविष्य पुराण की कथा के अनुसार राजा हिमाचल व रानी मैना की पुत्री पार्वती जन्म-जन्मांतर भगवान शंकर को पति रूप मे प्राप्त करने के लिए कृत संकल्प थी। लेकिन अपने पिता द्वारा भगवान विष्णु से अपने विवाह की बात सुनकर पार्वती ने दुखी मन से यह बात अपने सखी को बतायी तब उनकी सखी उन्हे जंगल मे ले गई जहाँ पार्वती जी एकांत कंदरा मे रहते हुए घोर तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या रत पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप मे पाने के लिए अन्न-जल का त्याग कर दिया।
पंडित शुक्ला ने कहा कि 12 वर्षों तक केवल हवा पीकर, 24 वर्षों तक पेड़ों के पत्ते खाकर , वैशाख-जेठ की तपती धूप मे पंचाग्नी साधना कर, कड़ाके की ठंड मे जल के भीतर खड़े होकर , सावन माह मे निराहार रहकर तथा भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को बालू की शिव मुर्ति बनाकर जंगली पत्तों व फूलों से सजाकर श्रद्धा पूर्वक पूजन व रात्रि जागरण करती है इससे भगवान शिव प्रसन्न हो गये। और पार्वती जी को पति रूप मे प्राप्त हुए।