Tabligi Jamat : तबलीगी जमात पर प्रतिबंध से उपजे सवाल

Tabligi Jamat : तबलीगी जमात पर प्रतिबंध से उपजे सवाल

Tabligi Jamat: Questions arising from the ban on Tabligi Jamaat

Tabligi Jamat

डॉ. श्रीनाथ सहाय। Tabligi Jamat : तबलीगी जमात के खिलाफ सऊदी अरब ने बैन लगा दिया है जबकि सऊदी खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी होने का दावा करता रहा है। चैंकाने वाली बात यह है कि सऊदी सरकार ने तबलीगी जमात को आतंकवाद के प्रवेश द्वारों में से एक बताते हुए समाज के लिए खतरा करार दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या जमात के जरिए आतंकी तैयार हो रहे हैं? सऊदी में बैन की खबर पर भारत में भी इस पर प्रतिक्रियाएं आने लगीं।

कई लोगों ने पूछा कि जमात की आलोचना करने पर इस्लामो फोबिक कहने वाले सऊदी अरब के इस कदम पर क्या कहेंगे? दरअसल, जब कोरोना फैलाने का आरोप जमात के लोगों पर लगा था तो विरोध में इसे इस्लामोफोबिया कहा जाने लगा था। अब सऊदी के ऐक्शन पर वह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है।

विदेशी धरती पर जहां सुन्नी मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन तबलीगी जमात के खिलाफ कार्रवाई की गयी है वहीं देश में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर शिकंजा कसा गया है। खास बात यह है कि दोनों ही संगठनों की शुरुआत भारत से हुई है। तबलीगी जमात 100 साल पहले शुरू हुआ और इसे मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में देखा जाने लगा। दूसरा संगठन कुछ साल ही पुराना है पर यह विवादों के कारण ही चर्चा में रहा। कभी विदेशी पैसा तो कभी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आपत्तिजनक वीडियो बनाकर पीएफआई सवालों में घिर गया।

देश में अक्सर इस पर बैन की मांग उठती रहती है। वैसे, तबलीगी जमात की स्थापना देवबंदी इस्लामी विद्वानों द्वारा एक धार्मिक सुधार आंदोलन के रूप में की गई थी। इसका काम इस्लाम के मानने वालों को धार्मिक उपदेश देने के लिए किया गया था। इसे पूरी तरह से गैर-राजनीतिक रखते हुए पैगंबर मोहम्मद साहब की बताई इस्लाम की शिक्षाओं को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए किया गया था। हालांकि बाद में इसके रास्ते से भटकने और कई गंभीर आरोप लगने लगे।

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत कई देशों में इसके लाखों अनुयायी हैं लेकिन आज हालत यह है कि सऊदी जैसा मुसलमानों का हितैषी मुल्क ही इस संगठन के खिलाफ खड़ा हो गया है। उस पर आतंकी तैयार करने के आरोप लगे हैं। सऊदी के इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने जुमे की नमाज के बाद तकरीर में लोगों को जमात के खिलाफ आगाह करने का भी निर्देश दिया है। सऊदी सरकार ने साफ-साफ कहा है कि तबीलीगी जमात के जरिए लोगों के भटकने, ब्रेन वॉश होने का खतरा है। अब वहां की मस्जिदों से लोगों को बताया जाएगा कि यह संगठन समाज के लिए खतरा है।

याद कीजिए, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम अक्सर किसी विवाद के कारण ही सुर्खियों में रहा है। विदेश से धन हासिल करने, विदेश में संपत्ति होने तो कभी अपराध में शामिल होने के आरोप लगे। ऐसे समय में जब तबलीगी जमात पर सऊदी में तगड़ा ऐक्शन हुआ है, तो देश में पीएफआई पर शिकंजा और कस गया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हाल ही में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले की जांच के सिलसिले में केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से संबद्ध कम से कम चार परिसरों पर छापे मारे हैं।

एर्नाकुलम और कुछ अन्य स्थानों पर तलाशी ली गई। हालात को संभालने के लिए केंद्रीय अद्र्धसैनिक बल के जवानों ने छापेमारी के दौरान ईडी की टीम को सुरक्षा मुहैया कराई। एजेंसी ने पीएफआई की फंडिंग से संबंधित कई दस्तावेज बरामद किए हैं। पीएफआई का गठन 2006 में केरल में हुआ था और इसका मुख्यालय दिल्ली में है।

केंद्रीय जांच एजेंसी देश में संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शनों को भड़काने, पिछले साल दिल्ली के दंगों और कई अन्य मामलों में पीएफआई के कथित ‘वित्तीय जुड़ाव’ की जांच कर रही है। पीएफआई पर गंभीर आरोपों के कारण उसके खिलाफ प्रतिबंध की मांग उठती रही है। सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार भी कह चुकी है कि पीएफआई के पदाधिकारियों का कनेक्शन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से है।

असम, यूपी समेत तमाम राज्यों में केंद्र सरकार से पीएफआई पर बैन लगाने की मांग होती रहती है। पिछले साल हाथरस जाते समय केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को गिरफ्तार किया गया था। वह दलित युवती की कथित सामूहिक बलात्कार के बाद मौत के बाद वहां जा रहे थे। बाद में प्रदेश सरकार ने कोर्ट को बताया था कि कप्पन पीएफआई से जुड़े हैं। तबलीगी जमात (Tabligi Jamat) का काम पूरे विश्व में फैला हुआ है।

यंह एक तरह से इसाई मिशनरियों जैसा संगठन है जिसके सदस्य घूम-घूमकर इस्लाम का प्रचार करते हैं। इस संगठन की गतिविधियां संदिग्ध मानी जाती रही हैं। लेकिन सऊदी अरब के समर्थन का ही नतीजा रहा कि भारत सरकार अब तक इस संगठन के मुखिया को पकडने से बचती आ रही है।

लेकिन अब जबकि सऊदी अरब जैसे कट्टर इस्लामिक देश ने ही तबलीगी जमात को मस्जिदें खाली करने का निर्देश देते हुए उसे आतंकवाद का द्वार बता दिया तब फिर किसी और प्रमाणपत्र की गुंजाईश ही कहां बचती है। उल्लेखनीय है खुद सऊदी अरब इस्लाम में वहाबी धारा का पालक-पोषक माना जाता है।

तबलीगी जमात की शुरुवात 1927 में भारत से हुई और आज भी इसका मुख्यालय भारत में ही है। गत वर्ष कोरोना के फैलाव के आरोप में इसके दिल्ली स्थित मुख्यालय पर छापा मारकर पूरे देश में जमातियों की धरपकड़ की गई थी। उन पर आरोप था कि दिल्ली स्थित मरकज में देश-विदेश के हजारों वहाबियों के जमा रहने से कोरोना फैला। बहरहाल सऊदी अरब का फैसला चैंकाने वाला है।

भारत में देवबंद नामक इस्लामिक केंद्र ने सऊदी सरकार के निर्णय को अमेरिका के दबाव का परिणाम बताते हुए कहा कि इस फैसले को वापिस लिया जाना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ खबर तो ये भी है कि अफगानिस्तान पर काबिज तालिबान ने भी तबलीगी जमात (Tabligi Jamat) का विरोध किया है। अब जहां तक भारत का सम्बन्ध है तो तबलीगी जमात पर शिकंजा कसने का यही सबसे सही अवसर है। इस संगठन की गतिवधियों को लेकर समर्थन और विरोध दोनों सामने आये हैं।

भले ही ये अपने को शांतिप्रिय बताते हों लेकिन दिल्ली स्थित मरकज में पकड़े गये जमातियों ने जिस तरह का उत्पात मचाया और गिरफ्तारी से बचने यहां-वहां छिपते फिरे उसके कारण भी इस संगठन को लेकर आशंकाएं पैदा हुईं। (यह लेखक के अपने विचार है, लेखक राज्य मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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