Supreme Court Rape Case Verdict : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, शादी के बाद दुष्कर्म दोषी की सजा रद
Supreme Court Rape Case Verdict
सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को रद करते हुए कहा है कि शिकायतकर्ता महिला और आरोपी के बीच सहमति से बना संबंध बाद में गलतफहमी के कारण आपराधिक रंग ले बैठा।
न्यायालय (Supreme Court Rape Case Verdict) ने इस बात को निर्णायक माना कि दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाह कर लिया है और अब साथ रह रहे हैं। अदालत ने कहा कि यह उन दुर्लभ मामलों में से एक है, जहां दोषसिद्धि और सजा दोनों को रद किया जाना न्याय के हित में आवश्यक था ।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जब यह मामला शीर्ष अदालत के समक्ष आया, तब तथ्यों और परिस्थितियों पर गंभीर विचार करने के बाद यह स्पष्ट हुआ कि दोनों पक्षों के बीच संबंध किसी धोखे या आपराधिक मंशा पर आधारित नहीं थे। पीठ ने कहा कि यदि दोनों एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने का निर्णय कर चुके हैं, तो न्यायालय का दायित्व है कि वह पूर्ण न्याय सुनिश्चित करे।
अदालत (Supreme Court Rape Case Verdict) ने अपने निर्णय में कहा कि शिकायतकर्ता और आरोपी ने इसी वर्ष जुलाई माह में विवाह किया था और तब से वे पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे हैं। पीठ ने यह भी कहा कि यह मामला असाधारण है, क्योंकि अदालत के हस्तक्षेप से अपीलकर्ता को अंततः अपनी दोषसिद्धि और दी गई सजा से मुक्ति मिली। इससे पहले निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए दस वर्ष के कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई थी।
यह मामला मध्य प्रदेश से जुड़ा था, जहां ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया था। बाद में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसकी सजा निलंबित करने की याचिका को खारिज कर दिया था।
इसके खिलाफ आरोपी ने शीर्ष अदालत का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी और महिला से उनके माता-पिता की उपस्थिति में बातचीत की और पाया कि दोनों आपसी सहमति से विवाह करना चाहते हैं। इसके बाद अदालत ने आरोपी को अंतरिम जमानत दी, जिसके दौरान दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत प्रदत्त विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए न्यायालय ने शिकायत, दोषसिद्धि और सजा—तीनों को रद किया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस प्रकरण में पूर्ण न्याय करना आवश्यक था, क्योंकि संबंध की प्रकृति को गलत तरीके से समझा गया और उसे आपराधिक मामले का रूप दे दिया गया।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि आरोपी और महिला की मुलाकात वर्ष 2015 में एक इंटरनेट माध्यम के जरिए हुई थी। दोनों के बीच धीरे-धीरे नजदीकियां बढ़ीं और आपसी सहमति से संबंध बने।
महिला का यह कहना था कि उसने विवाह के आश्वासन पर भरोसा किया, जबकि आरोपी द्वारा विवाह की तिथि आगे बढ़ाने से उसे असुरक्षा की भावना हुई। इसी मानसिक स्थिति में महिला ने नवंबर 2021 में प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Rape Case Verdict) ने कहा कि तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि दोनों के बीच प्रारंभ से ही विवाह का इरादा मौजूद था और इसे झूठे वादे का मामला मानना उचित नहीं होगा।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि हर ऐसा मामला, जहां संबंध टूट जाए, उसे स्वतः आपराधिक श्रेणी में नहीं डाला जा सकता। न्यायालय ने इस फैसले के जरिए सहमति, विश्वास और परिस्थितियों की बारीकी से जांच की आवश्यकता पर बल दिया है।
