Supreme Court Oral Arguments Time Limit : सुप्रीम कोर्ट में अब वकीलों की मौखिक दलीलों पर लगेगी घड़ी

Supreme Court Oral Arguments Time Limit

Supreme Court Oral Arguments Time Limit

नए वर्ष में सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट में वकीलों को अपनी मौखिक दलीलें तय समय सीमा के भीतर ही पूरी करनी होंगी। मौखिक बहस की इस समय-सीमा व्यवस्था (Supreme Court Oral Arguments Time Limit) के तहत वकीलों को कोर्ट द्वारा निर्धारित समय का कड़ाई से पालन करना अनिवार्य होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार वकीलों की मौखिक बहस को लेकर औपचारिक समय-सीमा का नियम लागू किया है, जिसे त्वरित न्याय की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी सर्कुलर के अनुसार, किसी भी मामले में कोर्ट से नोटिस जारी होने के बाद नियमित सुनवाइयों के दौरान मौखिक बहस के लिए तय समय सीमा का यह नियम तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।

न्यायालय का मानना है कि मौखिक बहस की समय-सीमा व्यवस्था (Supreme Court Oral Arguments Time Limit) लागू होने से मामलों में अनावश्यक देरी रुकेगी और केस का निस्तारण अपेक्षाकृत कम समय में हो सकेगा।

प्रभावी कोर्ट प्रबंधन के लिए नई एसओपी

सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक बहस के लिए जो मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है, उसका उद्देश्य कोर्ट के कार्य घंटों का संतुलित उपयोग, बेहतर केस मैनेजमेंट और न्याय का त्वरित एवं प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित करना है।

एसओपी के अनुसार, किसी मामले की नियमित सुनवाई में वरिष्ठ वकील, बहस करने वाले वकील या एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) को सुनवाई शुरू होने से कम से कम एक दिन पहले मौखिक बहस की पूरी टाइमलाइन कोर्ट में दाखिल करनी होगी।

यह टाइमलाइन सुप्रीम कोर्ट के ऑनलाइन पोर्टल पर एपियरेंस स्लिप के माध्यम से जमा की जाएगी। इससे पहले ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस पक्ष को कितने समय तक दलील रखने की अनुमति होगी। कोर्ट का मानना है कि मौखिक बहस की समय-सीमा व्यवस्था (Supreme Court Oral Arguments Time Limit) से सुनवाई अधिक अनुशासित और समयबद्ध हो सकेगी।

लिखित दलीलों पर भी तय नियम

नई व्यवस्था के तहत बहस करने वाले वकील या वरिष्ठ वकील को अपने एओआर के माध्यम से, या कोर्ट द्वारा नामित नोडल वकील के जरिए, सुनवाई की तारीख से कम से कम तीन दिन पहले संक्षिप्त नोट या लिखित दलीलें दाखिल करनी होंगी। लिखित दलीलें अधिकतम पांच पेज की होंगी और उनकी प्रति दूसरे पक्ष को भी उपलब्ध करानी अनिवार्य होगी।

सर्कुलर में स्पष्ट कहा गया है कि सभी वकीलों को मौखिक बहस तय समय सीमा के भीतर समाप्त करनी होगी और मौखिक बहस की समय-सीमा (Supreme Court Oral Arguments Time Limit) का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।

लंबित मामलों के निस्तारण पर फोकस

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने पद संभालते ही यह स्पष्ट कर दिया था कि लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही बदलाव दिखाई देगा। संविधान पीठों में लंबित मामलों के त्वरित निस्तारण पर भी उनका विशेष जोर है, क्योंकि इन मामलों का असर देशभर की निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों में लंबित मुकदमों पर पड़ता है।

न्यायालय के सूत्रों के अनुसार, मौखिक बहस की समय-सीमा व्यवस्था (Supreme Court Oral Arguments Time Limit) इसी व्यापक न्यायिक सुधार प्रक्रिया का हिस्सा है।

सुप्रीम कोर्ट में 92 हजार से ज्यादा मामले लंबित

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में कुल 92,010 मामले लंबित हैं। इनमें 72,658 दीवानी और 19,352 आपराधिक मामले शामिल हैं। इनमें 219 मामलों की सुनवाई तीन जजों की पीठ, 27 मामलों की पांच जजों की पीठ, छह मामलों की सात जजों की पीठ और चार मामलों की नौ जजों की पीठ में होनी है। वर्ष 2025 में सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों के निस्तारण की दर 87 प्रतिशत रही है। नए नियमों से इस दर में और तेजी आने की उम्मीद है।

सबसे लंबी बहसों का दौर अब खत्म?

अब तक सुप्रीम कोर्ट में सबसे लंबी मौखिक बहस का रिकॉर्ड केशवानंद भारती मामले के नाम है, जिसमें 68 दिनों तक सुनवाई चली थी। दूसरे स्थान पर राम जन्मभूमि विवाद का मामला है, जिसकी सुनवाई 40 दिनों तक चली थी।

लेकिन मौखिक बहस की समय-सीमा (Supreme Court Oral Arguments Time Limit) लागू होने के बाद भविष्य में इतनी लंबी बहसों की संभावना बेहद कम मानी जा रही है। कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला न्याय प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, अनुशासित और समयबद्ध बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।